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कोरबा में सियासी भूकंप: बीजेपी के भीतर ही भीतरघात, कांग्रेस के लिए संजीवनी?

भागवत दीवान

कोरबा। नगर निगम सभापति चुनाव के नतीजों ने बीजेपी के भीतर गहरे राजनीतिक मतभेदों को उजागर कर दिया है। पार्टी द्वारा अधिकृत प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल की हार और नूतन सिंह की अप्रत्याशित जीत ने यह संकेत दिया कि संगठन के अंदर असंतोष अपनी चरम सीमा पर है। इस घटनाक्रम से कांग्रेस को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा हो सकता है, जबकि बीजेपी की अंदरूनी कलह पार्टी की पकड़ कमजोर कर सकती है।

बीजेपी में भीतरघात की पटकथा कैसे लिखी गई?

1. पर्यवेक्षक की मनमानी: चुनाव के लिए रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया, लेकिन उन्होंने स्थानीय पार्षदों की राय को दरकिनार कर हितानंद अग्रवाल को जबरन प्रत्याशी घोषित कर दिया।

2. हितानंद अग्रवाल पर संदेह: कई पार्षदों ने उनके कांग्रेस नेता जयसिंह अग्रवाल के करीबी होने और भीतरघात के आरोपों के कारण समर्थन देने से इनकार कर दिया।

3. स्थानीय बनाम बाहरी नेतृत्व का टकराव: बीजेपी के ही एक धड़े को कोरबा में उभरते छत्तीसगढ़िया नेतृत्व से समस्या है, इसलिए स्थानीय नेतृत्व को कमजोर करने का प्रयास किया गया।

4. मंत्री लखनलाल देवांगन को घेरने की चाल: इस घटनाक्रम का उपयोग कर पार्टी के अंदर ही कुछ नेता उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन की स्थिति कमजोर करना चाहते हैं।

बीजेपी की टूट से कांग्रेस की जीत?

बीजेपी में उठे इस बवंडर का सीधा फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। जिस प्रकार बीजेपी के पार्षदों ने खुद के प्रत्याशी को नकार दिया, उससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी के अंदर असंतोष गहरा चुका है। कांग्रेस इस मौके को भुनाने की तैयारी में है और यदि बीजेपी जल्द ही अंदरूनी कलह को नहीं सुलझाती, तो आगामी चुनावों में यह नुकसानदेह साबित हो सकता है।

अब क्या होगा?

गौरीशंकर अग्रवाल को इस पूरे मामले की जांच की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी अपनी टूट को जोड़ पाएगी? क्या पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व स्थानीय कार्यकर्ताओं की आवाज सुनेगा या फिर यह असंतोष पार्टी के लिए बड़ा संकट बन जाएगा? कोरबा की राजनीति में आने वाले दिनों में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

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