
अमर स्तम्भ प्रतिनिधि की खास रिपोर्ट
*तिरंगा, मोदी फेस, गुलाल बम, बेलन, झाड़ू पिचकारी की मांग बढ़ी*
एटा/जलेसर- होली त्योहार की तैयारियां तेज हो गई हैं। बाजारों में रंग और पिचकारी की दुकानें सज गई हैं। इस साल मोदी फेस, तिरंगा, गुलाल बम, बेलन, झाड़ू पिचकारी धमाल मचाए हुए हैं। बच्चे मोदी फेस लगाकर होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं। बाजार में अबीर-गुलाल के साथ हर्बल रंग की मांग बढ़ गई है। ग्राहकों को लुभाने के लिए आकर्षक मॉडल के पिचकारी और मुखौटे मंगाए गए हैं। हथौड़ा, कुल्हाड़ी, फावड़ा पिचकारी ₹200 से ₹300 तक बाजार में बिक रही है। दो किलो का फायर सिलिंडर ₹800 और 6 किग्रा का ₹1800 सौ रुपये तक बाजार बेचने के लिए आर्डर दिया गया है। मोदी मुखौटा 50 रुपये तो शेर, चिंपैंजी मुखौटा 50 से 100 रुपये में उपलब्ध है। फैंसी टोपी, फैंसी गुब्बारा, हर्बल गुलाल आदि से दुकानें सजने जा रही हैं।
फुटकर दुकानदार थोक दुकानों से रंग पिचकारी की खरीदारी कर रहे हैं। दुकानदारों के मुताबिक, पिचकारी के दाम में पिछले साल के मुताबिक 20 फीसदी की बढ़त आई है। होली के लिए बाजार में तरह-तरह के कार्टून वाले फेस, मोदी फेस और पिचकारी दुकानों पर दिख रहे हैं। चेहरे पर लगाने के लिए मोदी फेस के अलावा इस बार हैकर्स (बैंक खाते से पैसा हैक करने वाले) के फेस की मांग अधिक है। भगवान हनुमान, गणेश समेत अन्य फेस 25 से 50 रुपये में मिल रहे हैं। गुलाल बम खास है। 90 रुपये का मिलने वाले गुलाल बम को जलाने पर पर गुलाल निकलता है। गुब्बारा 180 से 100 रुपये पैकेट, तरह-तरह के पिचकारियों के अलग-अलग दाम हैं। गणेश टैंक 220 रुपये, मछली 30 रुपये, टोपी 20 से 25 रुपये में बिक रहा है। दुकानदारों के मुताबिक, केमिकल वाले रंगों से होने वाले नुकसान को लोग समझने लगे हैं। इस वजह से हर्बल रंगों की इस साल मांग है। हर्बल रंग की एक छोटी शीशी 50 रुपये की है।
घरों में शुरू हुईं तैयारियां
होली पर घरों में पकवान बनाने की तैयारियां तेज हो गई हैं। गुझिया, कचौड़ी आदि बनाने के लिए सांचा की खूब बिक्री हो रही है। 10 से 50 रुपये तक के सांचा बाजार में मिल रहे हैं।
*हथौड़ा-कुल्हाड़ी से निकलेगा रंग तो दादा की छड़ी भी होगी पिचकारी*
होली पर इस साल गुलाब बम, बेल, झाड़ूपिचकारी खास है। मांग ठीक है। पिछले साल के मुकाबले पिचकारी के दाम में पांच से 10 रुपये तक की बढ़ोत्तरी आई है। हर्बल रंगों को भी ग्राहक पसंद कर रहे है। ग्राहकों में केमिकल वाले रंगों से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूकता बढ़ी है।