पप्पू यादव (सह सम्पादक)
कानपुर (अमर स्तम्भ)। कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला के बारे में बताया जा रहा है कि आतंकवादियों ने पर्यटकों से उनका धर्म पूछकर गोलीबारी की, निश्चित रूप से एक निंदनीय और अमानवीय कृत्य है। यह घटना न केवल धार्मिक आधार पर नफरत और हिंसा को दर्शाती है, बल्कि “राजनीतिक दृष्टिकोण से भी गहरे निहितार्थ रखती है।”
धार्मिक आधार पर यह हमला नफरत और कट्टरता का प्रतीक है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आतंकियों ने हिंदुओं को निशाना बनाया और कुछ मामलों में जबरन कलमा पढ़ने के लिए दबाव डाला, जो न मानने वालों को गोली मार दी गई। यह कृत्य किसी भी धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, क्योंकि सभी धर्म मानवता, शांति और सह-अस्तित्व की बात करते हैं। इसे किसी “धार्मिक चोले में ढालना केवल हिंसा को औचित्य देने की कोशिश है, जो किसी भी नैतिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से स्वीकार्य नहीं है।”
राजनीतिक दृष्टिकोण से यह हमला कश्मीर में शांति और पर्यटन के पुनरुत्थान को अस्थिर करने की साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है। पहलगाम, जिसे “मिनी स्विटजरलैंड” कहा जाता है, पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है, और हाल के वर्षों में कश्मीर में पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह हमला, क्षेत्र में अशांति फैलाने और भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास हो सकता है।
लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है, और सूत्रों के अनुसार, आतंकी पाकिस्तान से संचालित हो सकते हैं।
इस हमले ने कश्मीर के पर्यटन उद्योग पर गहरा आघात पहुंचाया है, क्योंकि कई पर्यटक क्षेत्र छोड़ रहे हैं। अगर ऐसे नजारे और बढ़े तो यहाँ के लोगों का रोजगार प्रभावित हो जाएगा।
यह मेरा निजी विचार है कि
यह हमला न केवल धार्मिक कट्टरता का घिनौना प्रदर्शन है, बल्कि “एक सुनियोजित राजनीतिक रणनीति भी प्रतीत होती है। जो कि मानवता के खिलाफ एक जघन्य अपराध है।”
-श्याम सिंह ‘पंवार’
कानपुर।