टीकमगढ़।
नगर पालिका बारिश से पहले शहर को जलभराव से बचाने के दावे तो कर रही है, लेकिन क्या हकीकत भी इतनी ही साफ है जितनी नालियों की सतह? जेसीबी की गड़गड़ाहट और सफाईकर्मियों की भागदौड़ के बीच एक चौराहा ऐसा भी है, जहां पूरा सिस्टम गूंगा-बहरा बन बैठा है।
बात हो रही है शहर के मध्य – सेल सागर चौराहा की, जहां नाले के ऊपर ही बाकायदा दुकानें खड़ी कर दी गई हैं। जी हां, जहां से बरसाती पानी निकलना था, वहां अब मुनाफा कमाने की दुकानें खड़ी हैं। सवाल यह नहीं कि ये दुकानें क्यों बनीं, सवाल यह है – नगर पालिका को ये दुकानें दिखाई क्यों नहीं देतीं? क्या ये दुकानें चश्मे से पार हैं या फिर सत्ता और सिस्टम की मिलीभगत से इन पर “सफेद चादर” डाल दी गई है?
बारिश आएगी तो पानी जाएगा कहां?
स्थानीय लोग खुलकर कह रहे हैं कि नाला न केवल अतिक्रमण का शिकार है, बल्कि उसकी दिशा भी तकनीकी रूप से गलत है। इसका मतलब साफ है – बरसात होते ही आसपास की सड़कें, गलियां, और दुकानें पानी में डूबेंगी और फिर नगर पालिका हाथ मलती रह जाएगी।
अभियान या दिखावा?
नगर पालिका का सफाई अभियान अगर केवल फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने तक सीमित है, तो यह जनता के साथ मज़ाक है। ऐसे में जब सेल सागर जैसा महत्वपूर्ण चौराहा नजरअंदाज हो रहा है, तो क्या यह मान लिया जाए कि यह ‘सफाई महाअभियान’ केवल शोपीस है?