
राघवेंद्र सिंह बलौदाबाजार/दैनिक अमर स्तंम्भ
भ्रष्टाचार रूपी अजगर ने निगल लिया,
95 लाख की लागत से बना स्कूल भवन डर के साये में पढ़ाई करने मजबूर स्कूली बच्चेयह सिर्फ इमारत नहीं टूटी,
टूटे हैं बच्चों के सपने, उनके भविष्य की नींव और टूट चुका है जनता का भरोसा
आजादी के 75 वर्षों बाद भी अगर किसी देश की शिक्षा व्यवस्था इस कदर जर्जर हो, तो यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या वास्तव में हम विकसित भारत की ओर बढ़ रहे हैं, या फिर भ्रष्टाचार की दलदल में और गहरे धँसते जा रहे हैं। बलौदाबाजार जिले के नगर पंचायत लवन के समीप स्थित ग्राम पंचायत करदा का हाई स्कूल भवन इस वक्त भ्रष्टाचार का ऐसा बदनुमा उदाहरण बन चुका है, जो न केवल शर्मनाक है, बल्कि भविष्य की एक पूरी पीढ़ी के साथ की गई क्रूरता का जीवंत प्रमाण भी है।ग्राम करदा के हाई स्कूल की हालत खस्ताहाल, शिक्षा विभाग और लोक निर्माण विभाग पर गंभीर सवाल राज्य सरकार भले ही शाला प्रवेश उत्सव जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयासरत हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। बलौदाबाजार विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत करदा स्थित हाई स्कूल इसकी ज्वलंत मिसाल बन चुका है। स्कूल की जर्जर स्थिति किसी कबाड़खाने से कम नहीं है, जहां बच्चों का भविष्य नहीं, बल्कि जान जोखिम में नजर आती है।
शिक्षा विभाग ने सिर्फ कागजी कार्रवाई कीस्थानीय लोगों और स्कूल स्टाफ ने इस गंभीर समस्या को लेकर कई बार शिक्षा विभाग को अवगत कराया। यहां तक कि सुशासन त्यौहार के दौरान भी लिखित में आवेदन प्रस्तुत किया गया, लेकिन अधिकारियों ने सिर्फ कागजी घोड़ा दौड़ाकर औपचारिकता निभाई और फाइलों में समस्या को दबा दिया गया।शिक्षा की नींव मजबूत करने के सरकार के तमाम दावे तब तक अधूरे हैं जब तक ऐसे जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत नहीं करवाई जाती और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती। वरना “शाला प्रवेश उत्सव” जैसे अभियान भी बच्चों के भविष्य को रोशन करने के बजाय केवल एक दिखावा बनकर रह जाएंगे।
लाखों की लागत, चार साल में ही खंडहर
2017 में 95 लाख रुपये की लागत से निर्मित इस स्कूल भवन को देखकर आज यही प्रतीत होता है कि यह निर्माण कार्य शिक्षा के नाम पर किया गया मज़ाक था। इमारत के छज्जे झूल रहे हैं, दीवारें दरक चुकी हैं, फर्श उखड़ चुका है, शौचालय जर्जर होकर जहरीले जीव-जंतुओं का अड्डा बन चुके हैं। छात्रों की कक्षाएँ अब खंडहर में बदल चुकी दीवारों के बीच, दरारों वाली छतों के नीचे और गंदगी से भरे फर्श पर लग रही हैं। छत इतनी कमजोर हो चुकी है कि बारिश के मौसम में उसके गिरने का डर बना हुआ है।
पीडब्ल्यूडी और ठेकेदार की ‘सांठगांठ’ का गंदा खेल
सूत्र बताते हैं कि भवन निर्माण के दौरान पीडब्ल्यूडी विभाग की कमीशनखोरी के चलते ठेकेदार द्वारा जमकर भ्रष्टाचार किया गया है । निर्माण सामग्री में भारी अनियमितता बरती गई — ईंटों की जगह मिट्टी, सीमेंट की जगह बालू, और गुणवत्ता की जगह लालच ने ईमारत की नींव रखी। जब वर्ष 2021 में भवन में शिक्षा की शुरुआत हुई, उस समय भी इसकी हालत बेहद चिंताजनक थी। परंतु इसके बावजूद जिम्मेदार अफसरों ने कमीशन पाकर आंख मूंदकर भवन को हेंडओवर कर लिया।
क्या यह लापरवाही मात्र है या सोची-समझी साजिश
शौचालय में बिच्छू, परिसर में गड्ढे — यह कैसी पढ़ाई?
स्कूल के शौचालय इस हद तक क्षतिग्रस्त हैं कि उनमें अब इंसान नहीं, सांप-बिच्छुओं और जहरीले जीवों ने डेरा जमा लिया है। यह स्थिति सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि बच्चों के लिए मौत का खतरा बन चुकी है।स्कूल परिसर में तीन-चार बोरिंग कराए गए, लेकिन कहीं भी हैंडपंप या मशीन नहीं लगाया गया। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इन बोर खनन का उद्देश्य केवल सरकारी राशि का बंदरबांट करना था, न कि पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता को पूरा करना।
सड़क नहीं, कीचड़ भरा संघर्ष
स्कूल तक पहुंचने का मार्ग भी कम दुर्दशाग्रस्त नहीं है। बरसात में पूरा रास्ता कीचड़, गड्ढे और पानी से लबालब हो जाता है।स्कूली बच्चों को स्कूल पहुंचने में एक जंग लड़नी पड़ती है। और जब वे पहुंचते हैं, तब उन्हें बैठने को मिलता है — दरकी दीवारें, टूटी फर्श, और टूटती उम्मीदें। प्रदेश सरकार एक ओर ‘शाला प्रवेश उत्सव’ जैसे कार्यक्रमों में करोड़ों खर्च कर रही है — मंच, पोस्टर, गुब्बारे और लाइटिंग से सजे आयोजन। लेकिन दूसरी ओर हकीकत इतनी भयावह है कि वह दिल दहला देती है। किसी उत्सव की शोभा तब है, जब हर बच्चे को एक सुरक्षित, स्वच्छ और प्रेरणादायक शिक्षा का वातावरण मिले — लेकिन करदा गांव के बच्चे उत्सव नहीं, एक त्रासदी के हिस्सेदार हैं।भ्रष्टाचार ने निगल लिया भविष्ययह मामला सिर्फ एक स्कूल भवन तक सीमित नहीं है। यह एक प्रणालीगत विफलता और सरकार की प्राथमिकताओं पर गंभीर प्रश्नचिह्न है। क्या शिक्षा, जो देश के निर्माण की नींव है, को इस तरह जर्जर और असुरक्षित छोड़ दिया जाना चाहिए?क्या बच्चों की ज़िंदगियों से खेलने वालों को बख्शा जाना चाहिए?अब जनहित में यही मांग उठ रही है कि मामले पर उच्चस्तरीय जांच की जाए और दोषी ठेकेदार, इंजीनियर, अफसरों पर सख्त कार्यवाही हो।बच्चों के लिए तत्काल वैकल्पिक सुरक्षित भवन की व्यवस्था हो।सड़क, पानी, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं प्राथमिकता में लाई जाएं। विद्यालयों के निर्माण व रखरखाव में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।अव्यवस्थाओं के कारण बच्चों की मानसिक स्थिति पर विपरीत असर जर्जर भवन और गिरती दीवारों से बच्चों में डर बना रहता है, जिससे पढ़ाई में ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता। खराब भवन, गंदगी, गड्ढों भरे रास्ते और असुविधा से बच्चे निराश और तनावग्रस्त रहते हैं। असुविधाजनक माहौल के कारण बच्चों का स्कूल आने का मन नहीं करता, जिससे उनकी रुचि और प्रेरणा घटती है।गंदगी, मच्छर और जहरीले जीवों के डर से बच्चे शारीरिक रूप से भी अस्वस्थ होते हैं, जिसका सीधा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।साथ ही जब बच्चों को अच्छी सुविधा नहीं मिलती, तो उनमें आत्मगौरव की भावना कम होती है और वे अपने आप को उपेक्षित महसूस करते हैं।यह सब मिलकर उनके संपूर्ण मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक विकास में बाधा उत्पन्न करता है। इस सब का एक ही वजह है भ्रष्टाचार!भ्रष्टाचार सिर्फ पैसे नहीं निगलता, वो सपनों को खा जाता है, भविष्य को खोखला कर देता है। करदा स्कूल भवन की कहानी आज हर उस नागरिक को झकझोरने के लिए काफी है, जो शिक्षा को देश का भविष्य मानता है। अब भी अगर हम नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियाँ माफ नहीं करेंगी।