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संघर्ष से नेतृत्व तक: शालिनी सिंह पटेल बनीं जनसेवा की मिसाल

“ना राजनीतिक विरासत, ना कुर्सी का सहारा – फिर भी जेडीयू को खड़ा किया”

गांव की बेटियों, ज़मीनी कार्यकर्ताओं और जनबल से गढ़ी नई राजनीति की इबारत

बांदा लखनऊ, 6 जुलाई। उत्तर प्रदेश में जनता दल (यूनाइटेड) की राजनीति अब नए दौर में प्रवेश कर रही है, और इस परिवर्तन के केंद्र में हैं — प्रदेश उपाध्यक्ष शालिनी सिंह पटेल, जिनका संघर्ष, दृष्टि और जनसंपर्क आज युवा और महिला नेतृत्व के लिए आदर्श बनता जा रहा है।

“संघर्ष मेरी पहचान है… मैंने कोई विरासत नहीं पाई, बल्कि अपनी राह खुद बनाई है।”
यह कथन केवल उनका व्यक्तिगत अनुभव नहीं, बल्कि आज की राजनीति को नई दिशा देने वाला दर्शन बन गया है।

शालिनी सिंह पटेल का राजनीतिक सफर किसी राजनीतिक परिवार से नहीं, बल्कि ज़मीनी जनसंघर्ष से शुरू हुआ। जब प्रदेश की राजनीति जातिवाद, बाहुबल और महिला नेतृत्व को ‘सज्जा’ की तरह इस्तेमाल करने तक सिमटी हुई थी, तब उन्होंने भीड़ में रास्ता नहीं खोजा, बल्कि खुद रास्ता बनाया।

उन्होंने स्पष्ट कहा, “जब प्रदेश में जातिवाद, बाहुबल और महिला नेताओं को केवल ‘मोहरा’ बनाकर पेश करने की प्रवृत्ति हावी थी, तब मैंने सत्ता से टकराना और सच्चाई के पक्ष में खड़ा होना चुना।”

शालिनी का यह संघर्ष केवल वैचारिक नहीं, संगठनात्मक भी है। बिना किसी राजनीतिक गॉडफादर, बिना कुर्सी के सहारे, उन्होंने जेडीयू को उत्तर प्रदेश में एक संगठित और जीवंत पार्टी के रूप में स्थापित किया।

“ना कोई राजनीतिक परिवार, ना कोई कुर्सी का सहारा — फिर भी मैंने जेडीयू को उत्तर प्रदेश की ज़मीन पर मजबूती से खड़ा किया,” वे कहती हैं।
वे मानती हैं कि उनकी असली ताकत गांव की बेटियों, समर्पित कार्यकर्ताओं और लोकतांत्रिक मूल्यों से आती है।

महिला सशक्तिकरण की अग्रदूत

शालिनी सिंह पटेल ने राजनीतिक मंचों पर महिलाओं की भागीदारी को सिर्फ “प्रतीकात्मक” बनकर नहीं रहने दिया। उन्होंने गांव-कस्बों की उन बेटियों को आवाज़ दी, जो वर्षों से घूंघट और सामाजिक डर के पीछे खामोश थीं।

“मेरी असली ताकत वे महिलाएं हैं जो चूल्हे-चौके से निकलकर पंचायत और विधानसभा की बात कर रही हैं,” वे भावुक होकर कहती हैं।

संगठन को दी ज़मीन से ऊर्जा

प्रदेश के कोने-कोने में उन्होंने जेडीयू संगठन को नये सिरे से खड़ा किया। बूथ से लेकर ब्लॉक तक समर्पित कार्यकर्ताओं की एक नई पीढ़ी तैयार की, जिसमें जाति-धर्म की सीमाएं नहीं, सिर्फ जनसेवा और सामाजिक न्याय का मंत्र है।

“मेरे कार्यकर्ता किसी जाति या वर्ग से नहीं बंधे — वे उस बदलाव से जुड़े हैं, जो हाशिए पर खड़े व्यक्ति को केंद्र में लाने के लिए लड़ा जा रहा है।”

वर्तमान संघर्ष और भविष्य की दिशा

आज जब सत्ता की राजनीति चकाचौंध और प्रचार के इर्द-गिर्द घूम रही है, शालिनी सिंह पटेल सड़क से सदन तक जनता के मुद्दों को लेकर संघर्षरत हैं।
“अन्याय के खिलाफ मैं आज भी उतनी ही ताकत से खड़ी हूं जितनी पहले दिन थी — और तब तक रहूंगी जब तक आखिरी व्यक्ति को न्याय नहीं मिलता,” उन्होंने दो टूक कहा।

उनका मानना है कि राजनीति में बदलाव केवल चेहरे बदलने से नहीं, सोच और सरोकार बदलने से आता है।

संदेश युवाओं और बेटियों को

अपने बयान को उन्होंने इन शब्दों में समाप्त किया —
“संघर्ष अब भी जारी है… मैं झुकूंगी नहीं।”
यह केवल उनके लिए नहीं, बल्कि उन लाखों युवाओं और बेटियों के लिए एक स्पष्ट संदेश है — राजनीति सेवा का माध्यम है, शोर या सौदेबाज़ी का नहीं।

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