बलात्कार केस में विवेचक ने लगाई फाइनल रिपोर्ट, पॉक्सो कोर्ट ने सरेआम लगाई फटकार
रवेन्द्र जादौन की खास रिपोर्ट
एटा~ बलात्कार मामला : एटा का एक ऐसा मामला जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर कब तक हमारा प्रशासनिक सिस्टम ऐसी लापरवाही और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करता रहेगा? पॉक्सो कोर्ट का यह फैसला एक उम्मीद की मरीजों किरण है, लेकिन इतना ही काफी नहीं है।”
“एटा : उत्तर प्रदेश के एटा जनपद में एक ऐसा अनोखा रिश्वत कांड का मामला उजागर होकर सामने आया है, जो सुनने में जितना हास्यास्पद है, उतना ही गंभीर भी है। और शर्मनाक भी। यहां 12 साल की अबोध बच्ची के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की जांच करने वाले दारोगा ने मात्र 6 समोसे में अपना ईमान व कर्तव्य बेच दिया। नाबालिग से बलात्कार की जांच कर रहे जांच अधिकारी ने छह समोसों की रिश्वत लेकर न केवल मामले को दबाने की कोशिश की, बल्कि न्याय की पूरी प्रक्रिया को ही तेल में तले समोसे की तरह चटपटा बना दिया।
नाबालिग से बलात्कार के आरोपी ने मामले में जांच करने वाले पुलिस अफसर को 6 समोसे खिलाए और उसने पूरा केस पलट दिया। जब मामला कोर्ट पहुंचा तो, पॉक्सो कोर्ट ने दारोगा को फटकार लगाते हुए विवेचक के खिलाफ सख्त कार्यवाही का आदेश दिया। ये पूरा केस न सिर्फ कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारा प्रशासन सिस्टम इतना सस्ता हो गया है कि 6 समोसे की कीमत में न्याय बिक सकता है”
“6 समोसों में फाइनल रिपोर्ट दाखिल
बलात्कार केस में जांच करने पहुंचे अफसर पर पीडित पक्ष द्वारा आरोप लगे हैं कि उसने 6 समोसों की रिश्वत लेकर अंतिम रिपोर्ट (FR) दाखिल कर दी। आरोपी वीरेंद्र समोसे की दुकान करता है। जांच अधिकारी ने चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए और पीड़ित के बयान को भी नजर अंदाज कर दिया। एफ आर को आम भाषा में “केस बंद” करने की रिपोर्ट भी कहते हैं। स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट को रद्द कर दिया है। पॉक्सो न्यायालय के जज ने आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी है।”
” वास्तविक मामला क्या है ?
1 अप्रैल, 2019 को स्कूल से घर लौट रही 12 साल की किशोरी के साथ बलात्कार की घटना कारित हुई थी। इसका आरोप गांव के ही वीरेंद्र पर लगा था। पीड़ित ने हिम्मत दिखाते हुए थाने में एफ आई आर दर्ज कराई, लेकिन कहानी यहीं से एक अजीबोगरीब मोड़ लेती है। जांच के लिए नियुक्त दारोगा ने, इस मामले की गंभीरता को समझने के बजाय, अपनी भूख को तरजीह दी। पीडित पक्ष का आरोप है कि दारोगा ने आरोपी वीरेंद्र की दुकान से छह समोसे रिश्वत के रूप में लिए और बदले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी। दारोगा ने न चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज कराये और न ही पीड़िता की बात को गंभीरता से लिया गया।”
“कोर्ट ने दिखाई सख्ती
इस मामले को स्पेशल पॉक्सो कोर्ट के जज एमपी सिंह राणा ने गंभीरता से लिया। पीड़ित के भाई ने एफ आर के खिलाफ कोर्ट में आपत्ति दर्ज की, जिसके बाद यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि दारोगा ने 6 समोसों के बदले केस को दबाने की कोशिश की थी। कोर्ट ने एफ आर को रद्द कर दारोगा के खिलाफ सख्त कार्यवाही के आदेश दिए हैं।
यह मामला हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर कब तक हमारा प्रशासन सिस्टम ऐसी लापरवाही और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करता रहेगा? क्या एक बच्ची का दर्द, उसका न्याय, छह समोसों से कम कीमती है? पॉक्सो कोर्ट का यह फैसला एक उम्मीद की नई किरण के समान है, लेकिन अभी यह काफी नहीं है। जरूरत है ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त नियमों और उनको सही ढंग से लागू करने की। ताकि भविष्य में कोई दारोगा समोसे के लालच में किसी मासूम का हक न छीन सके।