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नौकरी देते समय आप जाति कैसे पूंछ सकते हैं :सुनील यादव

पप्पू यादव (सह सम्पादक)

कानपुर (अमर स्तम्भ)। कानपुर के आईआईटी में कैंपस प्लेसमेंट के दौरान पिछले सत्र में कुछ कंपनियों ने छात्रों से उनकी जातीय पृष्ठभूमि या संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) में प्राप्त रैंक का उल्लेख करने के लिए कहा था. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग के राष्ट्रीय महासचिव सुनील यादव ने आशंका जताई कि इस डेटा का इस्तेमाल प्लेसमेंट प्रक्रिया के दौरान और संभवत: बाद में कार्यस्थल पर उनके साथ भेदभाव करने के लिए किया जा सकता है। इस सत्र में दुबारा जाति पूछने वाली त्रुटि की आशंका पर निदेशक को ज्ञापन देने आईआईटी कानपुर पहुंचे। सुनील यादव ने बताया कि आईआईटी में कैंपस प्लेसमेंट साक्षात्कार आयोजित करने वाली पिछले सत्र में कुछ कंपनियों ने छात्रों से उनकी जातीय पृष्ठभूमि या तीन साल पहले संयुक्त प्रवेश परीक्षा में प्राप्त रैंक का उल्लेख करने के लिए कहा है, इस सत्र में भी जिसको लेकर भेदभाव का डर है। यह डेटा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के करिअर के लिए संभावित जोखिमपूर्ण हो सकता है.
कानपुर और गुवाहाटी में भी आईआईटी में कुछ एससी और एसटी/ओबीसी छात्रों को कैंपस प्लेसमेंट साक्षात्कार में उपस्थित होने के लिए फॉर्म जमा करने के लिए कहा गया था, जिसमें जेईई एडवांस्ड में उनकी रैंक और उनके समुदाय के विवरण मांगे गए थे।मिली जानकारी के अनुसार लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने आईआईटी कानपुर के छात्रों के बीच जो फॉर्म बांटें, उनमें उनकी जाति संबंधी जानकारी मांगी गई थी एवं निवा बूपा और मेरिलिटिक्स ने जेईई एडवांस में आईआईटी कानपुर के छात्रों द्वारा हासिल की गई रैंक मांगी थी, जो उन्हें 2020 में मिली थी.जगुआर और लैंड रोवर (जेएलआर) ने आईआईटी गुवाहाटी के छात्रों की जेईई रैंक मांगी थी। उन्होंने बताया एससी/ एसटी/ओबीसी जेईई रैंक से उनके संभावित नियोक्ताओं को पता चल जाएगा कि उन्होंने आरक्षित श्रेणियों में आईआईटी में प्रवेश प्राप्त किया है, जिनके कट-ऑफ अंक सामान्य श्रेणी के छात्रों की तुलना में कम हैं। जिससे यह माना जा सकता है की आईआईटी जातिगत भेदभाव करने की कथित कोशिश में कंपनियों के साथ मिले हुए हैं? डेटा का इस्तेमाल प्लेसमेंट प्रक्रिया के दौरान और संभवतः बाद में कार्यस्थल पर उनके साथ भेदभाव करने के लिए किया जा सकता है. सुनील यादव ने पूछा जब इंजीनियरिंग ज्ञान के आधार पर नौकरियां दी जाती हैं तो चार साल के जेईई डेटा का क्या मतलब है?’
वंचित समुदायों के कई छात्र शर्म के कारण इन फॉर्मों को नहीं भरते हैं और इसलिए प्लेसमेंट के अवसरों से चूक जाते हैं।सुनील यादव ने निदेशक आईआईटी से ज्ञापन के माध्यम से कहा कि आप यह सुनिश्चित करे की कोई भी कंपनी छात्रों को उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि या जेईई रैंक का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है, यह कैसे पता चलेगा कि डेटा लीक या इसका दुरुपयोग नहीं होगा?’आईआईटी निदेशक कानपुर से पूछा की यह किसके दबाव में हो रहा है।यह अत्यंत दुखद है , ज्ञापन देने वालो में मुख्यत मुकेश कुमार, ओसान सिंह, राजेश कश्यप, तन्मय राय आदि मौजूद रहे।

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