धान के कटोरे में पहली बार काला गेहूं की खेती

खरखरा गांव निवासी तेजराम साहु के खेत में लहलहा रही काला गेहूं की फसल

छुरा (अमर स्तम्भ)। किसानों को मालामाल करने वाले काला गेहूं की खेती अब गरियाबंद जिलेे में धान का कटोरा कहे जाने वाले इलाके भुइली परगना में भी शुरू हो गई है। जिसके तहत प्रयोग के तौर पर छुरा ब्लॉक के खरखरा गांव निवासी किसान तेजराम साहु के आधे एकड़ खेत में काला गेहूं की फसल लहलहा रही है। इसकी पहली सिंचाई कर फसल तैयार हो चुकी है। आवश्यक पौष्टिक तत्व देने के हेतु केवल जैविक खाद का प्रयोग किया गया है।

काला गेहूं की खेती आजकल आम गेहूं की खेती से चार गुना फायदेमंद है। पंजाब के बाद उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसान इसकी खेती कर मोटी कमाई कर रहे हैं। बाजार में यह चार से छह हजार रुपये प्रति कुंतल पर बिकता है। साथ ही वैज्ञानिकों का दावा है कि काला गेहूं साधारण गेहूं से ज्यादा पौष्टिक है। यह 12 बीमारियों में फायदेमंद है।

नाबी ने तैयार किया है इसे
गरियाबंद जिला के उप संचालक कृषि संदीप कुमार भोई ने बताया कि नेशनल एग्री फूड बायो टेक्नॉलजी इंस्टीट्यूट नाबी मोहाली ने काला गेहूं तैयार किया है। इसका पेटेंट नाबी के ही नाम है। इसका नाम नाबी एमजी रखा गया है। यह कृषि वैज्ञानिक डॉ. मेनिका गर्ग की रिसर्च का परिणाम है।

नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट का खजाना है यह
अधिक एंथोसाएनिन की वजह से फलों, सब्जियों, अनाजों का रंग काला, नीला या बैंगनी हो जाता है। एंथुसाएनिन नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट भी है। इसी वजह से यह सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। नाबी ने काले के अलावा नीले व जामुनी रंग के गेहूं की किस्म भी विकसित की है। इसमें सामान्य गेहूं से अधिक पोषक तत्व होते हैं। सामान्य गेहूं में पिगमेंट की मात्रा पांच से 15 पीपीएम के बीच होती है। काला गेहूं में पिगमेंट की मात्रा 100 से 200 पीपीएम तक होती है। इसमें सामान्य गेहूं के मुकाबले 60 फीसद आयरन ज्यादा होती है। जिंक की भी मात्रा कुछ ज्यादा होती है। दावा है कि इसकी रोटी के सेवन से कैंसर, शुगर, मोटापा, कोलेस्ट्राल, दिल की बीमारी आदि में फायदा होता है।

छुरा में एक किसानों ने की है इसकी खेती
किसान तेजराम साहु ने बताया कि उन्होंने काले गेहूं के बारे में काफी पढ़ने के बाद इसकी खेती करने का निर्णय लिया। अब समस्या बीज की थी। कई जिलों के जिला कृषि अधिकारी से बात की। खेती करने की सलाह तो सभी ने दी, लेकिन बीज की समस्या बरकरार रही। एक दिन एक अखबार में खबर पढ़ी की उत्तर प्रदेश में महिलाएं इसकी पैकिंग कर कमा रही हैं। इसके माध्यम से संबंधित व्यापारी तक पहुंच गए, लेकिन दुख इस बात का रहा कि तब तक उनके पास मात्र 20 किग्रा बीज बचा था। उतना ही ले आया। बीज देने वाले व्यापारी ने बताया कि इसका उत्पादन अन्य गेहूं की ही तरह है। खेती भी खरखरा की उपजाऊ भूमि पर अन्य गेहूं की तरह से की जा सकती हैं।

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