पाँव में घाव सिर पर बोझ कुछ ऐसी गिरानी लिख।
पसीने में डुबोकर लेखनी मेरी कहानी लिख।।
उदर में मुझको रख के माँ ईंट गारे उठाती थी,
जरा सी देर होने में मालकिन कहर ढाती थी,
लगी जो चोट गिरने से अभी तक है निशानी लिख।
पसीने ०
ग़रीबी ने कहर ढाया किताबें छू नहीं पाया,
धुली जो थालियाँ जूठी उन्हें मैं भूल कब पाया,
बहा है आँख से अब तक वही अश्के बयानी लिख।
पसीने ०
तुम्हारी सौ तली मंजिल खड़ी मीनार के पत्थर,
कटगये हाथ चुनने में न जाने था कहाँ ईश्वर,
रस्सियों पर चली जब ज़िन्दगी टूटी कमानी लिख।
पसीने ०
बुढ़ापा क्या जवानी क्या सिर्फ श्रम ही नजर आया,
गरीबी के शिकंजे से कहाँ मैं छूट कब पाया,
शेष ओला कभी तूफान से बिगड़ी किसानी लिख।।
शेषमणि शर्मा ‘शेष’