सांँझ होते ही नुपुर थके कदमों से पेड़ों के झुरमुटों के बीच से चलते हुए …अपने अतीत के पन्नों को पलटती हुई तालाब के पास जा बैठी ।वहीं पास में एक कबूतरों का खूबसूरत सा जोड़ा सूख चुके पेड़ पर आकर बैठ जाता है और अपनी गोल गोल आंँखें घूमा घूमा कर एक दूसरे को देखते हैं …प्यार से चोंच मार मार कर मानो चुहल कर रहे हों…कभी गुटरगूं की आवाज़ में बातें करते …बड़ा ही मनोरम दृश्य ..उन्हें देख कर नुपुर डूब जाती है अपने प्यार के ख्यालों में…ऐसा ही तो था उसका प्यार … यूंँ ही निश्छल…यूंँ ही पवित्र …असीम विश्वास से भरा …आंँखों से छलकता प्यार ..अपनी ओर खींचता था … हांँ यही दो आंँखें ही तो थी जिनमें डूब कर सारी दुनिया ही तो भूल जाती थी ।
हांँ कभी कभी उन्हें खोने का एक अनजाना सा डर पलकें भिगो देता था …लेकिन प्रियांश का हम कभी दूर नहीं होगें …कहना मानो उसमें एक नई जान फूंँक देता था ..
यही कोई चार साल पहले की ही तो बात है जब प्रियांश उसकी जिंदगी में अचानक आए । और प्यार जैसी भावना जिससे वो बिल्कुल अनभिज्ञ थी जगाई ।
वो चंचल सी मस्त मौला लड़की कब उनके प्यार में डूब गई कब वो उसकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन गए समझ ही न पाई ।प्रियांश की बातें उसके दिल को गुदगुदाने लगी …उनका बेसब्री से इंतजार रहने लगा । कभी दूर नहीं होगें इस भरोसे ने उसके प्यार को इबादत तक पहुंचा दिया…अब तो नुपुर का वजूद ही प्रियांश थे उनके बिना तो उसने जीवन की कल्पना भी करना छोड़ दिया था । नुपुर के मानो पंँख ही लग गए थे प्यार की सुखद अनुभूति उसका रोम रोम पुलकित कर रही थी ।प्रियांश से बेसिर पैर की बातें करना उन्हें बेवजह छेड़ना उसके प्यार की अभिव्यक्ति बन गया ।
प्रियांश में उसे कई रूप दिखने लगे कभी पिता के जैसी जिद्द करती कभी भाई जैसा दुलार प्रेमी रूप में तो वो आए ही थे बस उसकी पूरी दुनिया ही उनके चारों ओर घूमने लगी । कभी कभी प्रियांश उसकी बेवकूफी भरी बातों से नाराज हो जाते तो जब तक उन्हें मना नहीं लेती चैन नहीं पाती और वह भी डांटते समझाते और वह उनकी हर बात पर हांँ अब से नही करूंँगी का वादा करती और फिर सब भूल जाती फिर वही हरकतें … क्योंकि दिल में जो प्यार और विश्वास था कि वो उससे कभी दूर नहीं हो सकते …उसके चंचलता को या कहूंँ बचपने को खत्म नहीं होने दे रहा था..
और एक दिन अचानक प्रियांश ने एलान कर दिया कि उसे जाना होगा…नुपुर जो अपना वजूद ही खो चुकी थी भरी आंँखों से निःशब्द प्रियांश को एकटक देखने लगी कि वो अभी कहेंगे … मैं तो मजाक कर रहा था । लेकिन ऐसा नहीं हुआ …वो रोती रही गिड़गिड़ाती रही प्रियांश पर कोई असर नहीं हुआ उन्हें जाना था चले गए ।साथ ले गए उसकी बिंदास हंँसी चुलबुलापन जिंदगी जीने की उमंग … वो घंटों पागलों की तरह प्रियांश की तस्वीर से बातें करती और उनके साथ गुजारे हुए पलों को याद करके बिलख बिलख कर रो पड़ती ।उसे यकीन ही नहीं होता कि प्रियांश जा चुके हैं और धीरे धीरे वो चुलबुली सी लड़की एकदम शांत हो गई और ढक लिया अपने आप को मौन के आवरण से …कभी कभी दिल में अजीब से जलजले उठते मन करता जोर से चिल्लाए फूट फूट कर रोए कि कायनात भी कांँप उठे और मजबूर कर दे प्रियांश को वापस आने को …
क्या ऐसा होता है प्यार…क्या यही मिलता है सच्चे प्यार को…क्या किसी की भावनाओं की कोई कीमत नहीं …क्यों वीरान कर दी जाती हैं हंँसती खेलती जिंदगियांँ …. क्या वो समझ पाएंगे उसके प्यार को …तमाम सवालों से घिरी नुपुर दूर आसमान को निहारती है …..और उसका अनंत प्यार फिर प्रियांश के प्रतिबिंब के रूप में उसे ढाढस देता है कि मैं लौट करआऊंँगा ….जरूर आऊंँगा…और फिर … तिर जाती है उसके होठों पे चिरपरिचित मुस्कान …दिल में उठता है फिर वही विश्वास …आंखों में मिलन के मधुर सपने …पलकें उठती हैं उस सुनसान पड़े रास्ते की ओर …. हांँ इसी रास्ते से तो आयेंगे वो ….
निवेदिता शुक्ला
इटावा , उत्तर प्रदेश