जो हमारा था तुम्हारा हो गया है
ये समझ लो बस गुजारा हो गया है
जो सहारा था न जाने कितनों का
आज खुद वो बेसहारा हो गया है
मान या अपमान जो कुछ भी मैं पाऊं
अब हमें सब कुछ गवारा हो गया है
आ गये है दूर हम फंस कर भंवर में
दूर अब हमसे किनारा हो गया है
गैर में खुशियां तुम्हारी बंट गयी सब
बस तुम्हारा गम हमारा हो गया है
सुनीता पाठक आभा