महाराष्ट्र दिवस!

संदीप यादव संवाददाता

दैनिक (अमर स्तम्भ) / कोकण, मराठवाडा,विदर्भ,खानदेश को शामिल कर २२९ तालुका वाले महाराष्ट्र राज्य की स्थापना १ मई, १९६० ई. को हुई थी, इसके पीछे की एक कहानी है। महाराष्ट्र के पहले प्रसिद्ध शासक सातवाहन (ई.पू. २३० से २२५ ई.) थे जो कि महाराष्ट्र के संस्थापक थे। अल्लाउद्दीन खिलजी से लेकर औरंगजेब तक मुगलों ने लंबे समय तक यहाँ पर शासन किया। इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके मराठों ने महाराष्ट्र को मुगलों से मुक्त कराया। अठारहवीं सदी के अंत तक पूरे महाराष्ट्र पर छत्रपति शिवाजी महाराज का भगवा लहराने लगा था और उनका साम्राज्य दक्षिण में कर्नाटक के दक्षिणी सिरे तक पहुंच गया था। आज
का महाराष्ट्र १०६ शहीदों के बलिदान की देन है। हमारा उन शहीदों को विनम्र अभिवादन।
१६७४ई. में मराठा साम्रज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज के उद्भव के साथ ही इस क्षेत्र को एक नई पहचान मिली। मुगल हुकूमत को चुनौती देने की वजह से पूरे भारतवर्ष ने मराठों का लोहा माना। १८वीं सदी के अन्त तक मराठे पूरे महाराष्ट्र के अलावा दक्षिण में कर्नाटक के दक्षिणी सिरे तक पहुँच चुके थे। छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद उनके बेटे शंभाजी इस क्षेत्र की कमान संभाले,पर वे अपने पिताजी जैसे कुशल प्रशासक साबित नहीं हुए। इसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के पौत्र शाहूजी भोसले ने राज्य की सत्ता
संभाली। १७४९ ई. में शाहूजी की मृत्यु के बाद सत्ता पर पेशवा का कब्जा हो गया। इसके बाद धीरे-धीरे मराठा साम्राज्य क्षीण होने लगा। इसी दौरान ईस्ट इंण्डिया कंपनी व्यापार करने की गरज से भारत आयी और देश के कई अन्य भागों की तरह उसकी नजर इस राज्य पर पड़ी। मराठों और ब्रिटिश के बीच कई लड़ाइयाँ हुईं पर अन्तत: ब्रिटिश यहाँ अपनी सत्ता स्थापित करने में कामयाब रहे। १९२० ई. तक आते-आते अंग्रजों ने पेशवाओं को पूरी तरह से हराकर इस प्रदेश पर अपना कब्जा जमा लिया। समुद्र के किनारे होने की वजह से मुंबई (तब बम्बई) व्यापार के प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा था। यहाँ अपनी सत्ता कायम करने के बाद अंग्रेजों ने मुंबई में ढाँचागत विकास पर ध्यान दिया। २० वी शताब्दी में जब देश में आजादी के लिए संर्घष की शुरूआत हुई तो महाराष्ट्र की धरती से कई चेहरे आजादी हासिल करने की लड़ाई में आगे आए। इनमें गोपालकृष्ण
गोखले, बालगंगाधर तिलक व चाफेकर बंधु प्रमुख थे। ऐसे तो यहाँ के काफी लोगों ने आजादी में अपने प्राणों की आहूति दी और बढ़चढ़ कर इसमें हिस्सा लिया। कांग्रेस का जन्म भी यहीं हुआ था। गांधीजी ने राष्टीय आंदोलन का केन्द्र महाराष्ट्र को ही बनाया था। देश १५ अगस्त,१९४७ को आजाद हुआ। १९५६ में, मराठी भाषी मराठवाड़ा के शामिल होने से महाराष्ट्र का और विस्तार हो गया।
संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन पर लिखी एक पुस्तक के आधार पर संयुक्त महाराष्ट्र की हलचल १९३८ से ही शुरू हो गई थी। उस समय यह भू-भाग सीपी एंड बरार प्राविंश का भाग था। इस क्षेत्र में शामिल ज्यादातर क्षेत्र हिन्दी भाषी थे। आजादी के बाद भाषा के आधार पर मराठी भाषी क्षेत्रों को मिलाकर अलग राज्य की मांग और जोर पकड़ने लगी। इसी दौरान देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी भाषा के आधार पर अलग राज्य की मांग शुरू हो गई । १५ दिसंबर,१९५२ को आंध्रराज्य स्थापना की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे कांग्रेस
कार्यकर्ता पोट्टी रामल्लू की ५८ दिन के उपवास के बाद मृत्यु हो गई । यह मामला लोकसभा में बड़े जोर-शोर से उठा और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सदन में स्वतंत्र आंधप्रदेश राज्य के गठन की घोषणा कर दी पर पं. नेहरू ने कहा कि भाषा के आधार पर राज्यों का गठन ठीक नहीं। इस महानगर पर महाराष्ट्र के अलावा स्वतंत्र
महाराष्ट्र की रूपरेखा अब तैयार होने लगी। पर मुंबई को लेकर विवाद शुरू हो गया। इस महानगर पर महाराष्ट्र के अलावा गुजरात के लोग भी दावा कर रहे थे। कुछ का विचार था कि मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल किया जाए। कुछ का मानना था कि मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल किया जाय,तो कुछ का मानना था कि मुंबई को गुजरात में शामिल किया जाए। कुछ लोगों का सोचना था कि मुंबई को एक अलग राज्य बना दिया जाए। कुछ का मानना था कि मुंबई को किसी राज्य में शामिल न कर इसे स्वतंत्र घोषित किया जाए। इससे मराठी मानूस का खून खौल उठा। तनाव को देखते हुए पुलिस ने आँसू गैस छोड़े। गोलियाँ चलाई लेकिन महाराष्ट्र की आम जनता पीछे नहीं हटी। महाराष्ट्र एकीकरण समिति का पक्का इरादा था कि मुंबई शहर को महाराष्ट्र में ही शामिल किया जाए। इस सिलसिले में यह समिति आखिरी क्षण तक संघर्ष
की और सफलता भी हासिल की। उस समय राज्य की राजनीतिक परिस्थितियाँ अलग तरह की बन गई थीं। उस समय यहाँ के मुख्यमंत्री मोरारजी देशाई थे। दूसरी तरफ केन्द्र भी नहीं चाहता था कि मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी बने लेकिन एसएम जोसी के नेतृत्व में चलाए गए आंदोलन ने मजबूत केन्द्र सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। इसे महाराष्ट्र में तमाम मराठी समाज का दृढ़ निश्चय ही कहा जाएगा। कालांतर में १९५९ में इन्दिरा गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद महाराष्ट्र मसले के लिए एक सदस्यी समिति गठित की। इस समिति ने महाराष्ट्र के अलावा अलग राज्य बनाने की सिफारिश की जिसके बाद भारतीय संसद में महाराष्ट्र के रूप एक नए राज्य के गठन के
प्रस्ताव को मंजूरी मिली। इसी के चलते यहाँ बड़े पैमाने पर खून-खराबा हुआ। इस संर्घष में कुल १०६ लोगों की जान चली गई। हिसंक आंदोलन और काफी उठापटक के बाद अन्तत: १ मई ,सन् १९६० ई. को कोंकण, मराठवाड़ा, खानदेश, विदर्भ को शामिल कर ६१ जिले व २२९ तालुका वाले महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई।
मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल करने के बाद मराठी समाज ने अपने दरवाजे पूरे भारत के लिए
खोल दिए। इस बात पर गौर किया जाना जरूरी है कि मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल करने के लिए भले लंबा संघर्ष चला लेकिन मराठी समाज ने कभी भी राज्य पुनर्गठन के बाद संकीर्णता का परिचय नहीं दिया। नतीजे में यह राज्य निरन्तर विविध क्षेत्रों में प्रगति पथ पर बढ़ता रहा। मराठी समाज की यही विशेषता उन्हें अलग सम्मान प्रदान करती है। अगर
मराठी समाज चाहता तो १ मई ,१९६० के बाद से ही राज्य के लिए अपने दरवाजे,खिड़कियाँ बन्द कर लेता लेकिन प्रगतिशील मराठी समाज ने खुलेपन की नीति को अपनाना पसंद किया। इसके सुखद नतीजे भी सामने आए। प्रगतिशीलता ने राज्य को औद्योगिक विकास का सबसे बड़ा केन्द्र बना दिया। मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी बना दिया। इसके साथ ही मुंबई देश का एकमात्र अहिन्दी भाषी कास्मोपोलिटन शहर बना दिया गया।
मुबई महाराष्ट्र की आर्थिक राजधानी है। महाराष्ट्र की गिनती समृद्धशाली राज्यों में होती है।
यह देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। २००१ की जनगणना के अनुसार महाराष्ट्र राज्य की कुल आबादी ९६,७५२,२४७ थी। प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह देश में दूसरे क्रमाँक का राज्य है। निवेश के मामले में महाराष्ट पहले पायदान पर है। साक्षरता के मामले
में केवल केरल ही महाराष्ट्र से आगे है। यहाँ पर लोकसभा की कुल ४८ सीटें हैं। महाराष्ट्र
देश की राजनीति में अहम् भूमिका निभाता है। यहाँ पर कई राजनीतिक पार्टियाँ हैं,जैसे कांग्रेस,
शिवसेना,राष्ट्रवादी कांग्रेस,भारतीय जनता पार्टी, महाराष्ट्र नव निर्माण सेना
,समाजवादी पार्टी ,आर.पी.आई.आदि । महाराष्ट्र राज्य के ५० साल पूरे होने पर मुंबई
स्थित बान्द्रा-कुर्ला कांप्लेक्स में शिवसेना की तरफ से ५० वाँ स्थापना स्वर्ण जयंती वर्ष
मनाया गया । इस समारोह में मैं खुद अपने स्टाफ और अपने विद्यालय के बच्चों के
साथ वहाँ उपस्थित था। ऐसा समारोह मैंने कभी नहीं देखा था। समारोह ठीक ७ बजे प्रारंभ
हुआ। पारंपरिक पोशाकों में शिवसैनिक कलाकारों ने महाराष्ट्र की जो झलक पेश की ,उसे
शब्दों में बयां करना कठिन है। नवयुवकों के हाथों में तलवार ,ढाल और उनके लड़ने के
तरीके देखते ही बनते थे। उनके हाथों में छत्र -चामर और दूसरे पुराने राज चिह्न
सुशोभित हो रहे थे। नवयुवतियों का पारंपरिक नृत्य देखते ही बन रहा था।
लोग झूम रहे थे। महाराष्ट्र की संस्कृति पर हर किसी को अभिमान हो रहा था। ठीक ७:
१५ मिनट पर हिन्दू-हृदय सम्राट माननीय बाला साहेब ठाकरे जी ,उद्धव जी ठाकरे, और
ठाकरे परिवार ,महान लेखक बाबा साहेब पुरन्दरे, भारत रत्न सुर-साम्राज्ञी सुश्री लता
मंगेशकर ,उषा मंगेसकर, साधना सरगम, महेश मांजेकर, सुरेश वाडकर, शंकरमहादेवन
सहित न जाने कितनी महान हस्तियाँ वहाँ मंच पर विराजमान थीं और सामने लाखों की
संख्या में दर्शकगण उपस्थित थे। महाराष्ट्र की संस्कृति वहाँ देखते ही बनती थी। दीप
प्रज्जलित कर सबसे पहले वहाँ पर छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति पर माननीय बाला
साहेब ठाकरे ने माल्यार्पण किया। पारंपरिक शाही बाजे बजाए गए। आतिशबाजी जहाँ सभी
को मंत्रमुग्ध कर रही थी वहीं पर आसमान भी थिरकने के लिए विवश हो गया था। महाराष्ट्र
की जय,महाराष्ट्र की जय.. के जयघोष से अंबर गूँज रहा था। गर्जा जय-जयकार प्रतिध्वनित
हो रहा था। हर किसी की जुबान पर महाराष्ट्र की जय ,बस यही जयघोष सुनाई दे रही थी।
कार्यक्रम के दौरान प्रस्तावकी पेश की गई।
पण्डित हृदयनाथ मंगेशकर और साथियों ने जब गर्जा जय जयकार, गीत सुनाया, वहाँ
उपस्थित हर कोई रोमांचित हो उठा और तरह-तरह के गीत पेश किए गए। देश प्रेम,राष्ट्रप्रेम के गीतों सुनकर क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या स्त्री, क्या पुरुष
सभी झूम रहे थे। ठीक ९ बजे हिन्दू हृदय- सम्राट माननीय श्री बाला साहेब ठाकरे उपस्थित लोगों को संबोधित किए। उनके भाषण पर वहाँ उपस्थित सभी लोगों को अभिमान हो रहा था। हर कोई गौरवान्वित हो रहा था। उन्होंने शाही अन्दाज में महाराष्ट्रदेशा,पुस्तक का विमोचन किया। सुर-सम्राज्ञी लता दीदी ने अपने स्वर का जो समां बँधा,मुझे पूरे जीवन भर नहीं भूलेगा। उनकी बहन उषा मंगेशकर ने भी कई गीत सुनाए और लोगों का
दिल जीत लीं। इसके बाद पं. हृदयनाथ मंगेशकर ने अपने विचार रखे। महेश मांजेकर ने भी सभा को संबोधित किया । सुरेश वाडकर ने जब जय -जय महाराष्ट्र माझा ,गीत सुनाया,हर कोई उस गीत से भाव विभोर हो गया। शंकर महादेवन ने कई मराठी गीत सुनाकर सबको मंत्र मुग्ध कर दिया।
छत्रपति शिवाजी महाराज के जय घोष से पूरा
अाकाश गूँजने लगा। लाखों लोगों से खचाखच
भरा शिवाजी मैदान महाराष्ट्र के प्रति मर- मिटने का संकल्प ले रहा था। वाकई में महाराष्ट्र की संस्कृति बेजोड़ है। ९ बजकर २५ मिनट पर मा. बाला साहेब ठाकरे ने महाराष्ट्र के प्रख्यात लेखक माननीय श्री बाबासाहेब पुरन्दरे का सम्मान किया । आपकी जानकारी के लिए यहाँ बता दूँ कि बाबा साहेब पुरन्दरे यहाँ महाराष्ट्र के प्रख्यात लेखक हैं और इन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने सुश्री लता मंगेशकर का भी सम्मान किया। अंत में ९ बजकर ५० मिनट पर लता दीदी ने एक और गीत पेश किया। ठीक १० बजे राष्ट्रगान के साथ समारोह का समापन हुआ। इस तरह मुंबई पाने के लिए महाराष्ट्र ने सिर्फ अपना खून ही नहीं बहाया
अपितु बड़ा बलिदान भी किया। महाराष्ट्र को बनाने में जिन-जिन (१०६) लोगों ने अपने जान की कुर्बानी दी है , मैैं उन सभी को अपना श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ और तहे दिल से इस पावन धरती को शत-शत नमन करता हूँ।
इसी कड़ी में गौरतलब बात ये है कि फिल्म बनाने के मामले में भी मायानगरी मुंबई विश्व प्रसिद्ध है। मुंबई भारतीय चलचित्र का जन्म स्थान है। दादा साहेब फाल्के ने यहाँ चलचित्र के द्वारा इस उद्योग की स्थापना की। इसके बाद ही यहाँ मराठी चलचित्र का भी श्रीगणेश हुआ। तब आरंभिक बीसव़ीं शताब्दी में यहाँ सबसे पुरानी फिल्म प्रसारित हुई थी। मुंबई में बड़ी संख्या में सिनेमा हाल हैं जो हिन्दी,मराठी, अंग्रेजी फिल्में दिखाते हैं। यहाँ मुंबई में अन्तर्राष्टीय फिल्म उत्सव और फिल्म
फेयर समारोह भी आयोजित होता रहता है। यहाँ पर अनेक निजी व्यावसायिक एवं सरकारी
कला-दीर्घाएँ खुली हुई हैं। १८३३ई. में बनी मुंबई एशियाटिक सोसाइटी में शहर का पुरानतम पुस्तकालय स्थित है। यहाँ न जाने कितने लोग अपना भाग्य आजमाने आते रहते हैं। आर.के. स्टूडियो भी यहीं पर है। यहाँ बड़े पैमाने पर हिन्दी,मराठी ,भोजपुरी और दूसरी फिल्में बनती हैं। यहाँ एक समृद्ध रंगमंच संस्कृति विकसित हुई है। यहाँ कला प्रेमियों की कमी नहीं है। यहाँ पर विद्वानों, साहित्यकारों, कवियों, लेखकों और दूसरे कलाकारों का भी बड़ा सम्मान किया जाता है। महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादम़ी की तरफ से ऐसे लोगों को पुरस्कृत किया जाता है। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों से लोग आते रहते हैं जिससे यहाँ की संस्कृति
में एक अलग ही प्रकार की सुगन्ध है। यही सुगन्ध हर किसी को एक माला में पिरोये रखती
है। इस शहर में विश्व की अन्य राजधानियों की अपेक्षा बहुभाषी और बहुआयामी जीवन शैली
देखने को मिलती है। जिसमें विस्तृत खानपान मनोरंजन और रात्रि की रौनक भी शामिल है।
२६ नवंबर, २००८ को पाकिस्तान से आए १० आतंकवादियों ने १८३ बेकसूर लोगों को अन्धाधुन्ध गोलियों से भून डाले, इसे कौन भूल सकता है ? समुद्र केरास्ते से आए इन दसों आतंकवादियों में से मौकेवारदात पर सिर्फ मोहम्मद अजमल अब्दुल कसाब को ही पकड़ा जा सका । बाकी नौ आतंकवादी आमने-सामने की गोलीबारी में मारे गए। मगर पाकिस्तान मानने को तैयार ही नहीं है कि अब्दुल कसाब उसके देश का नागरिक है। धन्य हैं हमारे मुल्क के मुसलमान भाई जो नौ पाकिस्तानी आतंकवादियों के शवों को
अपनी कब्रगाह में दफनाने नहीं दिये। इसे कहते हैं देश के प्रति देश प्रेम का जज्बा। ऐसे देश के सच्चे मुसलमानों के ऊपर हम हिन्दुओं को गर्व और फख्र है जब तक इस तरह हमारे देश के हिन्दू-मुसलमान मिलकर रहेंगे,तब तक हमारे देश की ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देख सकता। इस तरह महाराष्ट्र का ऐतिहासिक और सामाजिक परिदृश्य हमेशा से ही समृद्ध रहा है।
भारत में अनेक राज्य हैं मगर जिसके नाम में राष्ट्र हो,ऐसा राज्य सिर्फ महाराष्ट्र ही है। महाराष्ट्र की महानता और श्रेष्ठता इसी में प्रतिविंबित है। महाराष्ट्र ने हमेशा देश को एक नई दिशा दी है, विचार दिए हैं। संत नामदेव,संत तुकाराम,रामदास स्वामी,संत ज्ञानेश्वर,संत एकनाथ जैसे यहाँ के महान संतों ने पूरी दुनिया को एक नया संदेश दिया। सही मायने में एक शुद्ध जीवन जीने की कला सिखाया। जातिभेद, अंधविश्वास,सामाजिक कुरीति दूर करते हुए उन्होंने सभी के लिए समान शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया और स्त्री-पुरूष समानता पर बल दिया। आगे चलकर महामानव देश रत्न बाबा साहेब आंबेडकर ने देश को एक नई दिशा दी। एक अनोखी सामाजिक क्रांति लाए। देखा जाए, तो इस तरह महाराष्ट्र का एक
गौरवशाली इतिहास रहा है। महाराष्ट्र राज्य भारत के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका इसी तरह से निरन्तर क़ायम रखे,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ…

!! जय हिन्द!! जय महाराष्ट्र!!

लेखक : रामकेश एम. यादव
( कवि,साहित्यकार), मुंबई

‌( नोट : यह लेख मेरे द्वारा 2010 में लिखा गया था और यह मेरी ही पुस्तक महाराष्ट्र का आईना भाग 2 से उद्धृत है )

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