*स्त्री मन की पहचान है ” आशा प्रभात के उपन्यासों में इक्कसवीं सदी की स्त्री : डॉ दीपिका चौहान*
घनश्याम सिंह
समाचार संपादक
दैनिक अमर स्तम्भ
नई दिल्ली
विकल्प प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित “आशा प्रभात के उपन्यासों में 21वीं सदी की स्त्री” आलोचनात्मक उपन्यास प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य प्रेमी डॉ . दीपिका चौहान स्त्री के उन सामाजिक समस्याओं को अपनी रचनाओं में स्थान देना चाहती हैं जो कहीं न कहीं आज दमित हैं। सिर्फ लाइब्रेरी की शान के लिए नहीं बल्कि समाज में स्त्री की दशा और दिशा की परिवर्तन लाने के लिए लिखना चाहती हैं दीपिका, दीपिका चौहान की अब तक दो किताबें प्रकाशित हो चुकी है। यह किताब अमेजॉन में भी उपलब्ध है जिसका पाठक सीधा लुफ्त उठा सकते हैं।
भावनाएं , ज़रूरतें , महत्वकांक्षाएं ऐसी बहुत सी कड़ियां हैं जो स्त्री को स्त्री की पहचान देती है। विभिन्न परिस्थिति अनुसार स्त्री की जिंदगी समझौता बनकर रह जाती है। स्त्री की स्वतंत्र पहचान को बनाए रखना अहम है। संबंधों और घर परिवार में पिसते स्त्री की पहचान ऐसे ओझल हो जाती है जैसे धूप की किरणें पडने पर ओस की बूंदे ! अपनी जिंदगी की डोरी अपने ही हाथ किस प्रकार लेती हैं सीता , उर्मिला ,लता एवं मुक्ता जो अपने अस्तित्व का निर्माण भी स्वयं किस प्रकार करती है, इस उपन्यास में जाना जा सकता है।।
डॉ दीपिका चौहान ऐसे युवा साहित्यकारों में से एक हैं जो ना केवल स्त्री विषय केंद्रित लिखती है बल्कि उनके अंदरूनी मन को भी पहचानने का प्रयास करती हैं।