बारूद के ढेर पर खड़ा भारतीय जनमानस

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां बहुसंख्यक हिंदू एवं अल्पसंख्यक मुसलमान ईसाई सिख और बौद्ध आदि सद्भाव से रहते हैं और अनेकता में एकता ही दुनिया में हमारी एक बड़ी पहचान है ।इसके बावजूद हमारे देश की राजनीति धार्मिक उन्माद के सहारे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने का प्रयोग करती रही है ।लगभग सभी राजनीतिक दल समय समय पर अपनी तरफ से सत्ता हासिल करने के लिए धर्म का इस्तेमाल करते रहे हैं । प्रोफेसर डोनाल्ड स्मिथ ने ‘इंडिया ए सेकुलर स्टेट’ में धर्मनिरपेक्ष राज्य का आशय स्पष्ट करते हुए लिखा है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यक्तिगत एवं सामूहिक आधार पर अपने नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता देता है। व्यक्ति एक नागरिक होता है। व्यक्ति के प्रति इसका दृष्टिकोण इस तथ्य पर आधारित होता है कि वह राज्य का एक नागरिक होता है ना कि इस पर कि वह किस धर्म से संबंधित है। संवैधानिक रूप से यह किसी धर्म विशेष से संबंधित नहीं होता और ना ही किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहित करने के लिए अथवा अवरुद्ध करने के लिए प्रयास करता है। इस प्रकार धर्मनिरपेक्ष राज प्रत्येक नागरिक को सामूहिक रूप से कोई भी धर्म अपनाने की स्वतंत्रता तो देता है लेकिन राज धार्मिक आधार पर नागरिकों के बीच कोई भेदभाव नहीं रखता तथा राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता। और किसी भी धर्म के प्रसार अथवा अवरोध में सहयोगी नहीं रहता स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति के कारण तत्कालीन बड़े नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता पर विशेष जोर देते हुए अपनी ताकत को बिखरने नहीं दिया। अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग ,हिंदू महासभा आदि कुछ फिरका परस्त संगठनों को प्रोत्साहन देकर हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश की अंग्रेजों की इन्हीं नीतियों के चलते भारत का विभाजन करवा दिया। भारत में धर्म एवं सांप्रदायिक विभेद के सर्वप्रथम कारण अंग्रेज ही थे। लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन ने कभी भी इस धर्म आधारित राजनीति को स्वीकार नहीं किया। इसीलिए आजादी के बाद संविधान ने राज्य को निर्विवाद रूप से धर्मनिरपेक्ष स्वरूप प्रदान किया। लेकिन आजादी के बाद हमारे देश में सांप्रदायिक विद्वेष को समाप्त करने में हम असफल रहे हैं। समय-समय पर हमारी राजनीति ने धार्मिक विवाद पैदा किए और उन्हें अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया । हमारे देश में आज भी राजनीतिक दल संविधान की भावना के विपरीत कार्य करते हैं और धार्मिक भावनाओं को भड़का कर चुनाव लड़ते हैं ।दरअसल पिछले 50 वर्षों में भारतीय समाज में सांप्रदायिक शक्तियों ने अपने आप को बहुत मजबूती से संगठित कर लिया है जो वस्तुतः शिक्षा एवं लोकतांत्रिक चेतना के प्रसार की कमी तथा सामाजिक और आर्थिक प्रगति के बंद होने के कारण है। अशिक्षा और बेरोजगारी के चलते सांप्रदायिकता का भूत पूरे समाज में इस कदर सिर चढ़कर बोलने लगा कि आज सत्ता ऐसे लोगों के हाथ में हाथ में है जो संविधान की भावना के उलट भारत को धर्मनिरपेक्ष की जगह एक कट्टर हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने का एजेंडा लेकर आगे बढ़ रही है । जिसके चलते देश के हालात गृह युद्ध जैसे बनते जा रहे हैं । विकास अवरुद्ध है, उद्योग धंधे बंद हो रहे हैं ,बेरोजगारी बढ़ती चली जा रही है । देश तबाही के मुहाने पर खड़ा है। करोड़ों लोग सड़कों पर हैं । जगह-जगह आंदोलनकारियों की भारी भीड़ के जमावड़े किसी बारूद के ढेर से कम नहीं हैं कि कब विस्फोट हो जाए और देश अस्थिर हो जाए । अभी हाल ही में दिल्ली में इसी तरह की विस्फोटक स्थिति में सैकड़ों जानें गई और बहुत बड़ी आर्थिक क्षति भी हुई। हम पूरी दुनिया में हंसी के पात्र बनते जा रहे हैं । देश के हुक्मरानों को जिद छोड़ कर भारत के संविधान की भावना के अनुसार इसे धर्म निरपेक्ष भारत के निर्माण का दृढ संकल्प लेना चाहिए । अभी समय है- कट्टरता , आतंकवाद को जन्म देती है । जिसके उदाहरण हमें दुनिया भर में देखकर उन्हें कुछ सीख ले कर आगे बढ़ना चाहिए ।
डा.राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक
एवं विचारक

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