योग फाॅर लिबरेशन’ फोरम के तत्त्वावधान में आयोजित ‘जूम’ पर आनलाइन ‘चार दिवसीय योग महोत्सव’ के दूसरे दिन का शुभारम्भ प्रातः 4.55 बजे ‘गुरु सकाश’, ‘शंखध्वनि’ और ठीक पाॅंच बजे ‘पाञ्चजन्य’ के साथ हुआ जिसमें आचार्य गुणीन्द्रानन्द अवधूत ने ‘भजो रे इष्ट नाम, मन आमार…..’ प्रभात संगीत का गायन किया वहीं सुराश्री देव सिंगरौली ” ने ‘बाबा नाम केवलम’ सिद्ध अष्टाक्षरी महामन्त्र का कीर्त्तन किया। तदुपरान्त आनलाइन शामिल सभी साधक- साधिकागण मिलित ईश्वर प्रणिधान के बाद व्यंजना आनन्द ने सामूहिक रूप से सम्पन्न ‘गुरुपूजा’ अर्पण का नेतृत्व किया। आचार्य जी ने सबों के अच्छे दिन के शुरुआत की शुभकामनाओं के साथ ठीक 6.00बजे सुबह योगाभ्यास में शामिल होने के लिये सबों को दिशानिर्देश दिया। योगाभ्यास सत्र की शुरूआत आज फोरम की योग प्रशिक्षिका विजया मोरे(सोलापुर) ने सूक्ष्म व्यायाम से किया, वहीं आचार्य गुणीन्द्रानन्द अवधूत ने सबों को श्वास क्रिया (ब्रीदिंग एक्सरसाइज) तथा आग्नेय प्राणायाम की बारीकियों को बताते हुये इनका अभ्यास करवाया। इसके बाद विजया मोरे ने स्वाधिष्ठान और मणिपुर चक्र से सम्बन्धित योगासन व मुद्राओं यथा : ‘योग मुद्रा’, ‘भस्त्रिकासन’, ‘गोमुखासन’, ‘उड्डयन मुद्रा’ आदि का अभ्यास करवाया तथा फोरम के योग प्रशिक्षक श्री पंकज बजाज(देहरादून) ने सबों को कर्मासन व धनुरासन का विधिवत् अभ्यास करवाया। व्यंजना आनन्द ने अभ्यास किये गये सभी आसन-मुद्राओं के लाभ और परहेज के बारे में विस्तृत जानकारी दी। इसके बाद आज पुरुष वर्ग के बीच ‘कौशिकी नृत्य प्रतियोगिता’ का आयोजन हुआ जिसमें श्री कौशल किशोर जी(फरीदाबाद) प्रथम, श्री रन्दीप सिंह (गाज़ियाबाद) द्वितीय तथा श्री संजयचतुर्वेदी (कोटा-राजस्थान) तृतीय स्थान पर रहे। झूलासन के अभ्यास के बाद डॉ. गीता ने सबों को सम्पूर्ण बाॅडी मसाज करवाया, वहीं श्री संजय चतुर्वेदी जी (कोटा) ने ‘शवासन सत्र’ का बखूबी अभ्यास करवाया।
योगाभ्यास सत्र के उपरान्त पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत ‘फीड बैक’ सेशन में श्री रन्दीप सिंह (गाज़ियाबाद), मेनका महतो(जमशेदपुर-टाटानगर), अन्तिमा निर्मल (बेतिया), सुदर्शन राव (सीनी) तथा श्री राजेन्द्र प्रसाद जी(टाटानगर-जमशेदपुर) ने दो वर्ष के अपने अपने अनुभवों को साझा किया जो अत्यन्त ही मनमोहक, हृदय-स्पर्शी तथा प्रेरणादायक रहा। मेनका की बातें सबों को छू गयी जब उसने कहा कि इस फोरम से जुड़ने के बाद उसकी सोच, जीवन का दृष्टिकोण, व्यवहार आदि सभी बदल चुका है, अब आध्यात्मिक भावों से ओतप्रोत हो गया है। अभी वह सिर्फ 17 वर्ष की है और आनन्द मार्ग में दीक्षित होकर नियमित साधना योगाभ्यास करके बहुत खुश रहती है। उसने बताया कि नियमित योगाभ्यास एक विद्यार्थी के जीवन में सभी दृष्टिकोण से लाभ मिलेगा। आचार्य अवधूत ने ‘योग मनुष्य की जीवन यात्रा को किस प्रकार अध्यात्म की ओर प्रेरित करता है?’ विषय पर अपने संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित वक्तव्य के माध्यम से सबों को प्रेरित किया तथा आनन्दमार्ग के धर्मगुरु व प्रवर्त्तक श्रीश्री आनन्दमूर्त्ति जी की दीक्षा पद्धति का वैशिष्ट्य बताते हुये आनन्दमार्ग को महाराजा विराज योग की संज्ञा देते हुये इसे पूर्णांग योग बताया जिससे मनुष्य ऐहिक जीवन में ही मुक्ति-मोक्ष प्राप्त कर सकता है।