70साल में देश की स्वास्थ सेवाओं पर एक बारीक नजर!

*स्वास्थ्य मेला एक क्रूर मजाक *
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1953 मे भारत मे चिकित्सा व्यवस्था के ढ़ांचागत विस्तार व आवश्यकता पर डा .जोसेफ भोर कमेटी का गठन किया गया था , डा .भोर ने 1956 मे अपने अध्ययन की एक रिपोर्ट तत्कालीन सरकार को सौपी ! ज़िसे लोक सभा मे विचार के लिए स्वास्थ्य मंत्री राज कुमारी अमृत कौर ने प्रस्तुत की , ज्ञातब्य है कि राज कुमारी अमृत कौर संविधान सभा की सदस्य भी थी,
रिपोर्ट मे 1000 आवादी पर 25 बेड के अस्पताल , 3 चिकित्सक , 50 _तकनीकी सहायक ,नर्स ,मैटरनिटी नर्स ,फार्मेसिस्ट , वार्ड ब्याय , सफाई कर्मी सहित अन्य चिकित्सीय स्टाफ , प्रति 1 लाख आबादी पर एक सर्व सुविधा सम्पन्न ( multi speciality hospital ) , सुशिक्षु चिकित्सको के लिए हर 30 लाख आबादी पर एक मेडिकल कालेज , व 5 पैरा मेडिकल कालेज की स्थापना , चिकित्सा के सम्पूर्ण ढ़ांचे पर सरकारी नियंत्रण व इसे सेवा क्षेत्र मानकर सम्पूर्ण व्यय भार सरकार के ऊपर , वरसात , जाडा ,गर्मी ,व मौसम के संक्रांति काल मे होने वाली सामूहिक बीमारियो , महामारियो से निपटने के लिए सरकारी नियंत्रण स्थाई उप इकाईयो का निर्माण व राष्ट्रीय अभियान संचालित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग मे विशेषज्ञ सहित स्थाई बेडे की ढ़ांचागत व्यवस्था , औषधि उत्पादन पर सरकारी एकाधिकार , अनुसंधान पर एकाधिकार व कुल बजट का 7 % अनुसंधान मे व 5 % ढ़ांचागत निर्माण ,व्यवस्था व 1.75% चिकित्सीय शिक्षा मे खर्च की अनुसंशा की थी ,

यह भारत जैसे गरीब देश के सामने कठिन चुनौती थी ,. और अपने लोगो को मरने से बचाने के लिए ज़रूरी भी था ,किंतु जो देश खाद्यान्न के लिए फ्रांस की लाल ज्वार पर निर्भर हो , जिस मुल्क की दो तिहाई आबादी भूखी सोती हो ,उस देश मे यह कतई स्वप्न ही था , पर एक दृढ संकल्प के साथ डा . भोर की सिफारिस स्वीकार कर उस दिशा मे देश चल पडा ,

अस्पतालो का जाल बिछने लगा , एम्स , मेडिकल कालेज ,पी जी कालेज खडे होने लगे ,अनुसंधान केन्द्रो की स्थापना हुई , मलेरिया , तपेदिक , हैजा ,बडी चेचक के खिलाफ राष्ट्रीय अभियान के लिए अलग विभागो की स्थापना हुई और इन पर विजय पाने के लिए स्वास्थ्य विभाग रातो दिन जूझने लगे , हमारी इस यात्रा मे कुपोषण बडी बाधा थी , ज़िसको हरित क्रांति के ज़रिये कृषि उत्पादो मे उसी दशक मे छलांग लगाकर हमारे देश ने काफी कुछ नियंत्रित किया ,

1990 तक आते आते स्वास्थ्य का सरकारी ढ़ांचा काफी सुदृढ और जन सुलभ हो गया था , तभी इस विशाल क्षेत्र पर पूंजी_ पतियो ने नजर गडाई और फिर शुरु हुआ विनाश का नया दौर , जहां एक सिरे से निजी चिकित्सा संस्थानो , मेडिकल कालेज ,अस्पताल ,अनुसंधान आदि के लिए पूरी आजादी देकर सार्वजनिक ढ़ांचे को नष्ट करने का अभियान शुरु हुआ ,
सरकारी क्षेत्र मे कर्मचारियो की भर्ती बन्द कर निजी कम्पनियो को सप्लाई के ठेके दे दिये गये ,संविदा और आउट सोर्श कर्मचारियो के मालिक परदे के पीछे से सरकारी चिकित्सा क्षेत्र के भाग्य विधाता बनते गये ,इनकी गुण वत्ता का विनाश होता गया ,और समानांतर निजी चिकित्सा व्यवसाय ने इस विशाल क्षेत्र मे लगभग कब्जा जमा लिया ,बचा खुचा पी पी मॉडल के नाम पर उन्ही मगरमच्छो के हवाले करने की तरफ सरकार बढ़ रही है ,

स्वास्थ्य हमारा अधिकार के बजाय स्वास्थ्य भी एक व्यापारिक क्षेत्र हो गया और आम और वंचित हिस्सा इस से भी पूरी तरह महरूम होता जा रहा है ,आज़ _____

कोविड जैसे संक्रामक रोग के साथ देश मे संचारी रोग ( एनसीडी ) काफी तेजी से बढ रहे हैं , ज़िसमे जागरुकता ,जांच और उपचार तीनो के विना निपटना तो दूर रोक थाम करना भी सम्भव नही है ,
जागरुकता और जांच आशा वर्कर्स के ज़िम्मे है , ज़िन्हे इस कार्य का 3 रू प्रति दिन के हिसाब से प्रतिफल अनुमन्य है ,वह भी सालो साल नही मिलता , ड़ेंगू ,चिकन गुनिया , तपेदिक जैसी बीमारियां भी जीवन के लिए संकट बनी हुई हैं , इनकी भी खोज ,खबर का काम आशा वर्कर्स के कंधो पर है , ज़िन्हे इन सब के बदले कोई प्रत्यक्ष पारिश्रमिक नही मिलता ,
इसी तरह देश मे पिछले कई वर्षो से सर्वाधिक मौतें हृदय रोग ,सीओपीडी या क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और स्ट्रोक से हुई हैं , बच्चे व किशोर जे ई के सर्वाधिक शिकार होते हैं ,
पर हमारे देश मे स्वास्थ्य विभाग को निरन्तर नीचे ढ़केला ज़ा रहा है , बजट निरंतर घटाया जा रहा है , कर्मचारियो की नई भर्ती दूर की बात है खाली होते जा रहे पद भी नही भरे जा रहे हैं , सरकारी क्षेत्र अब लगभग कम्पनी के हवाले हो चुका है , निजी चिकित्सा जगत का हाल अद्भूत है , ज़िसमे सजावट तो है पर गुणवत्ता का अता पता नही ,
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट मे निजी क्षेत्र की आलोचना करते हुये उसे जन स्वास्थ्य के अनुपयोगी बताते हुये सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ करने ,विकसित करने ,ढ़ांचा गत सुधार के नाम पर कम्पनी राज के बजाय दक्ष कर्मचारियो की स्थाई भर्ती करने व उन्हे कम्पनी के बजाय जनता व राज्य व्यवस्था के प्रति जवाब देह बनाने की ज़रूरत की सलाह दी है ,
पर सरकार है कि सब कुछ निजी कम्पनियो के हवाले करने पर आमदा है ,
#स्वास्थ्य मेला जनता और स्वास्थ्य विभाग के संविदा और आउट सोर्श कर्मचारियो के साथ ही नही जनता के साथ एक क्रूर मजाक है , सिर्फ उत्तर प्रदेश मे 1.26 लाख पद नही भरे गये हैं ,उनमे अधिकांश जगहो पर संविदा और आउट सोर्श कर्मचारी नियोजित हैं ज़िन्हे न न्यूनतम वेतन है न समाजिक सुरक्षा , यही हाल प्रदेश मे आशा व आशा संगीनियो का है ,इन सबका खून निचोड कर बीमार समाज को लुटेरे स्वस्थ बनाने का सपना दिखा रहा है।
विजय विद्रोही
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
सामाजसेवी, विचारक एवं
प्रदेश अध्यक्ष आल इंडिया सेन्ट्रल
कौंसिल आफ ट्रेड यूनियन, उत्तर प्रदेश।

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