विषय-गर्मी की छुट्टी
विधा-संस्मरण
दिनांक-12-5-2022
स्थान -मेरी जन्म भूमि इन्दौर के पास ग्राम धन्नड़ ।
समय-लगभग 55 वर्ष पहले घटित बचपन का संस्मरण ।
“गर्मी की छुट्टी” नाम सुनते ही बरबस दिल बल्लियों उछलने लगता था।बचपन में चाचा ताऊ के मिलाकर हम सब 17 भाई बहन थे , चार काकी और एक माँ भरा पूरा संयुक्त परिवार था । बचपन में सारे दिन धमा- चौकड़ी चलती थी,गाँव का अद्भुत आनंद दादा -दादी का प्यार गाँव की मस्त अमराई में खेलना गाय बछड़े को घंटो देखते रहना । माँ काकी सब मिल कर बच्चों को कहती जाओ बगीचे में दादा जी बुला रहे है ,पर कहाँ सुनने वाली (बच्चे) बाल सेना। करीब 55 वर्ष पहले की यह घटना है, जब हमारे गाँव में बिजली भी पूरी तरीके से नही आई थी ,केवल लालटेन की रोशनी ही सब कुछ थी।गाँव में रात नौ बजे तक सब सो जाते थे, शाम हुई की चूल्हे पर खाना बनने लगता था। आज मैं एक संस्मरण सुना रही हूँ जो आज भी ह्रदय तल में बसा हुआ हैऔर याद आते ही मन को गुदगुदा जाता है।हुआ यूँ कि ,शाम का समय था ,हम सभी भाई-बहन खेलने में मस्त थे तभी दादी ने कहा” जाओ तो सब मिलकर टीन पर बिस्तर लगा दो तो ,रात तक ठंडे हो जायेगें”। बाल सेना ने मिलकर जितने बिस्तर थे सब बिछा दिये,नये पुराने, गद्दे ,रजाई, चादर,खेस आदि -आदि।
बिस्तर बिछा रहे थे तब तक अंधेरा होने लगा था,नीचे चूल्हे पर खिचड़ी बन गयी थी खुशबूदार , कुछ बच्चे खाने पहुँच गये थे,कुछ बिस्तर पर अपनी जगह सुरक्षित रखने के चक्कर में ऊपर बिछे बिस्तर पर लेट गये थे,उनमें से एक मैं भी थी।हम तीन लोग ऊपर लेटे थे, मैं मेरे बड़े भैय्या और एक काका जी का बेटा जो मुझ से छोटा था ।बस बातों ही बातों में भूतों की बात करने लगे और फिर डरने भी लगे।मेरा छोटा भाई बड़ा चंचल और मस्ती खोर था,उसने हमको बात करते सुन लिया और जल्दी से एक लम्बी लकड़ी से नीचे जाकर टीन को ठक-ठक कर के बजाने लगा और अजीब सी आवाजें निकाल रहा था,मैंने धीरे से ऐसे ही डराने के लिए कहा, भैय्या भूत आ गया है देखो सीढी चढ़कर आ रहा है । बस सबको डराते -डराते मैं भी डरने लगी और हम सब डर-कर चिल्लाकर रोने लगे,हमारे पड़ोस वाली दादी ने आवाज सुनी और दौड़कर मेरी दादी के पास जाकर कहा’ काशी तेरे बच्चों को कुछ हो गया है देख ऊपर चिल्लाए जा रहे है, सारे घर के लोग ऊपर आ चुके थे ।लेकिन हम रजाई में छुपे हुए थेऔर निकलने का नाम नही ले रहे थे।दादी ने तीनों से पूछा क्या हुआ है क्यों रे,क्यों रो रहे हो?? हम तीनों ने एक स्वर में कहा “भूत आया है” दादी ने कहा “कहाँ है रे भूत?कोई भूत नही है।पहले यह बताओ कि भूत आया है , किसने कहा ?? भैय्या बोले सुषमा ने।मैं समझ चुकी थी अब तो डंडा पिटाई होगी और जबरदस्त डाँट भी पड़ेगी यही सोच कर ,अंधेरे का लाभ लेकर मैं नीचे उतर कर गली में खड़ी होकर, सब तमाशा देखने लगी।बेचारी मेरे काका जी की बेटी, को मेरा समझ कर दादी ने दो चाँटे जड़ दिये और कहा क्यों? तुमने सबको क्यों ?डरा दिया। बेचारी मेरी छोटी बहन गाल सहलाकर रोकर, कहने लगी मैंने क्या किया है,मुझे क्यों मार रही हो, गल्ती तो सुषमा दीदी ने करी हैऔर वो तो नीचे गली में खड़ी है देखो सब।अंधेरा था किसी को मैं दिखी किसी को नही दिखी । किस्सा समझ आते ही सब लोग जोर-जोर से हँसने लगे थे और मैं खुद भी हँस रही थी , लेकिन दादी ने आकर एक जोरदार चाँटा लगा दिया ,गाल पर एक सटाका पड़ते ही मेरा भूत भाग गया था मेरी वीरता कहीं गायब हो गई थी,मेरे पास से।वह गर्मी की छुट्टी सदैव याद आती है। सुंदर सुखद ठंडी पीपल की छाँव और सरल सीधा सादा गाँव और गर्मी की छुट्टी।