हम सबने प्राचीन सभ्यताओं और उनके नष्ट होने की कहानियां पढ़ी होंगी। सभ्यताएं विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के महत्व को बिसर जाती हैं। हम कई बार सवाल पूछते हैं कि अतीत की तमाम सभ्यताएं अचानक कैसे नष्ट हो गई। इसका सटीक उत्तर तो अभी तक हमारे वैज्ञानिक, पुरातत्ववेत्ता, इतिहासकार नहीं ढूंढ पाए। लेकिन मेरा मानना है कि विकास की अंधी दौड़ जिसे आदमी अपनी उपलब्धि और उच्च सभ्यता का प्रतीक मान लेता है। और प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करता चला जाता है, दरअसल इसे विकास मान लेना ही गलत है। ये तो आदमी का पागलपन है, उसकी हवस है, सारे सुख खुद ही भाग लेने की भूख है। उसी हवस के चलते वह बाग खा गया, वन खा गया, झीलें, पोखर और तालाब खा गया, पहाड़ खा गया, जीव जंतु और पशु पक्षियों को खा गया। उसका परिणाम सामने है। प्रकृति अपना रंग बदल रही है, और रौद्र रूप धारण करती चली जा रही है। आदमी अभी भी कुछ समझने को तैयार नहीं है। वह अपनी चिंताएं तो जाहिर करता है। इस समस्या पर तमाम दस्तावेज पेश किए जाते हैं। प्रकृति संरक्षण के नाम पर अरबों खरबों खर्च किए जाते हैं । तमाम गोष्ठियां और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। लंबे लंबे भाषण दिए जाते हैं। लेकिन जमीन पर हालात जस के तस बने हुए हैं। प्रकृति का दोहन बदस्तूर जारी है। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी ने पेड़ों की सही संख्या बताने का दावा किया है रिपोर्ट के हवाले से। ‘नेचर’ जर्नल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में अभी 30 खरब,40 अरब पेंड हैं । पूरी दुनिया में हर साल 15 अरब पेड़ काटे जा रहे हैं। जबकि लगाए जाने वाले पेड़ों की संख्या कुल 7 अरब है। दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर सभी देशों के लोग चिंतित हैं। पेड़ों को काटने सहित अन्य बहुत सारी गतिविधियां भी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं। वायुमंडल में इन ग्रीन हाउस गैसों की उच्च सांद्रता पृथ्वी पर अधिक गर्मी बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित गैर सरकारी संगठन फाउंडेशन के निदेशक मेग लोमन कहती हैं कि जंगल हमारी दुनिया की लाइफ लाइन है। उनके बगैर हम पृथ्वी पर जिंदगी की कल्पना तक नहीं कर सकते। इस दुनिया को पेड़ जो सेवाएं देते हैं, उनकी फेहरिस्त बहुत लंबी है। पेड़ इंसानों और दूसरे जानवरों के छोड़े हुए कार्बन को सोखते हैं। जमीन पर मिट्टी की परत को बनाए रखने का काम करते हैं। पानी के चक्र के नियमितीकरण में भी इनका योगदान है। इसके साथ ही पेड़ प्राकृतिक और इंसान के खानपान के सिस्टम को भी चलाते हैं। और ना जाने कितने जीव जंतुओं की प्रजातियों को भोजन प्रदान करते हैं। पेड़ हमें ऑक्सीजन उपलब्ध कराते हैं। जिसे हम प्राणवायु भी कहते हैं । यह वृक्ष हमारे लिए इतने काम के हैं बावजूद इसके हम बेरहमी से इन्हें काटते चले जाते हैं। हम अपने आर्थिक लाभ के लिए पेड़ों की कुर्बानी देने से कतई गुरेज नहीं करते हैं। हम जिसे विकास की प्रक्रिया मानते हैं उसमें बाधा बनने वाले लाखों पेड़ों को हम निर्दयता के साथ काट डालते हैं। जब से मानव जाति ने 12000 वर्ष पहले खेती करना शुरू किया तब से हमने दुनिया के कुल छह खरब पेड़ों में से आधे को काट डाला। यह अनुमान है विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ ने 2015 में प्रकाशित रिसर्च में लगाया था। हम अंधाधुंध पेड़ों को काटते चले जा रहे हैं। कई बड़े-बड़े जंगलों में वर्षों से आग धधक रही हैं। हम अपनी ही बनाई हुई दुनिया को कब्रगाह में तब्दील करने पर आमादा हैं। अगर दुनिया ने इस गंभीर समस्या पर अभी पहल नहीं की तो वह दिन दूर नहीं जब प्रकृति अपने आप से हमारी इस तथाकथित सभ्यता को भी अन्य सभ्यताओं की तरह जमींदोज कर देगी। आज विश्व पर्यावरण दिवस है। इस दिन हम सब को संकल्प लेना चाहिए। और हर नागरिक को इसके प्रति अपनी कर्तव्यनिष्ठता के चलते एक पेड़ जरूर लगाना चाहिए।
डा.राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
एवं विचारक।