क्या गोडसे की गोलियां गांधी को मार पाईं??

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बिडेन ने अपने भाषण में गांधी का महिमामंडन करते हुए कहा, कि “अमेरिका गांधी के बताए रास्ते पर चलेगा”। यह वैसे तो कोई बड़ी बात नहीं होती, क्योंकि दुनिया भर ने गांधी दर्शन को मानवता की रक्षा के लिए प्रासंगिक माना हुआ है। और समय-समय पर दुनिया के सभी मंचों पर जाने- अनजाने गांधी दिखाई और सुनाई पड़ते हैं। इससे पहले अमेरिका के ही राष्ट्रपति ओबामा ने शपथ ग्रहण के समय कहा था कि ‘मैं महात्मा गांधी के जीवन और उनके दर्शन से बेहद प्रभावित हूं”। इसके अलावा एक बात और- पाकिस्तान और चीन समेत दुनिया के 84 देशों में महात्मा गांधी की प्रतिमाएं लगी हैं। प्रतिमाएं यूं ही नहीं लगाई जातीं। प्रतिमाओं का अपना वजूद होता है, उसके पीछे लंबा इतिहास, विचारधारा और उस व्यक्ति का प्रेरणादाई विराट व्यक्तित्व होता है। बाइडेन का बयान भी उन्ही में से एक हो सकता है। लेकिन यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है कि भाषण उस समय दिया जा रहा था जब भारत के प्रधानमंत्री जिनकी राजनीतिक पार्टी और उसके मातृ एवं अनुषांगिक संगठनों ने गांधी के हत्यारे को महिमामंडित करते हुए उनकी मुर्तियां तक देश में लगवा कर उन्हें महान बनाने का प्रयास चल रहा है। गोडसे और सावरकर का यशोगान चल रहा है। अभी तो भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वीकार नहीं किया है, की गोडसे और सावरकर का संघ के साथ तालमेल था । लेकिन जिस तरह मोदी जी सहित तमाम नेता गोडसे की पूजा अर्चना में लगे हैं। उससे ऐसा प्रतीत होता है ,कि थोड़ा इंतजार करने की जरूरत है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यह स्वीकार कर ले कि गांधी की हत्या हमारे इशारे पर ही हुई थी। क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालयों से लेकर लेकर भाजपा तक जिस तरह छद्म राष्ट्रवाद की परिभाषा गढ़ी जा रही है, इससे यह तय है कि गोडसे की राष्ट्रवादी विचारधारा ने गांधी की हत्या करने का भावुकता में लेकिन देश हित में लिया गया फैसला था ऐसा प्रचारित कर सकते हैं। राष्ट्रपति बाईडेन जब बोल रहे थे। तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से जुड़े भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति वहां थी, यह बात अमेरिकी राष्ट्रपति के दिलो-दिमाग में रही होगी और यह अचानक नहीं लंबे समय के मानसिक द्वन्द का परिणाम रहा होगा। यह वक्तव्य मोदी पर करारा तमाचा था। गोडसे ने गांधी की हत्या की, उसने गांधी को तीन गोलियां मारी। इस तसल्ली के लिए कि वह जीवित ना बचे। लेकिन वह गांधी को नहीं मार पाया। गांधी को मारने का उसका प्रयास असफल हो गया। गांधी जिंदा है। भारत ही नहीं समूची दुनिया के परिदृश्य में वह दिखाई देते हैं। उनके शब्द सुनाई देते हैं। वह अमर हैं। वह मर ही नहीं सकते। क्योंकि वह व्यक्ति नहीं संस्था हैं, प्रतीक हैं, विचार हैं, दर्शन हैं। दुनिया के किसी भी कोने में अन्याय और जुल्म के खिलाफ लड़ाई में हम गांधी को आसानी से देख सकते हैं। दलित उत्पीड़न हो या फिर महिला उत्पीड़न, मजदूरों पर जुल्म हो, नस्लवादी भेदभाव हो या फिर छात्रों का दमन, आदिवासियों से लेकर दक्षिण अफ्रीकी देशों में आजादी की उत्कट अभिलाषा लिए नागरिक हों या अमेरिका के नागरिकों के उत्पीड़न पर उनकी लड़ाई का नेतृत्व करते हुए गांधी आज भी दिखाई पड़ते हैं। पिछले कुछ वर्षों से भारत फासिस्ट ताकतों की गिरफ्त में है। चारों तरफ स्कूलों, कालेजों, कारखानों, खदानों हर तरफ दमन और शोषण का खेल चल रहा है। सरे आम महिलाओं का चीर हरण और हत्या जैसी घटनाओं ने समूचे देश को हिला कर रख दिया है। किसानों की जमीनें छीन लेने का प्रयास हो रहा है। फासीवादी ताकतों ने दमन तीव्र कर दिया है। इस दमन की छटपटाहट से लोग बिलबिला रहे हैं। उनका दम घुटने लगा है, तो वह आंदोलित हैं। चारों तरफ सरकारी दमन के खिलाफ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। गौर से देखिए,, आप पाएंगे हर आंदोलन की, हर शोषित समाज की, मजदूरों की, छात्रों की, महिलाओं की लड़ाई में आपको गांधी दिखाई पड़ेंगे। और शोषण और दमनकारी सरकार अचंभित है कि जिस गांधी को हमने 70 साल पहले मार डाला, वह जीवित कैसे हैं। वह हमारे खिलाफ हर लड़ाई का नेतृत्व कैसे कर रहा है। तो अब दूसरा प्रयोग शुरू किया गया है। कि जो गांधी गोलियों से भी नहीं मरा, उसे मिथ्या प्रचार से मार दो। उसे राष्ट्र विरोधी घोषित कर खलनायक बना दो। तभी तो गोडसे और सावरकर के मंदिर बनाए जा रहे हैं। इतिहास के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। लेकिन इनका यह प्रयोग तो क्या- गांधी को मारने का हर प्रयोग असफल होगा। क्योंकि गांधी देश की सीमाओं में सिमटे हुए नहीं हैं। वह तो पूरी दुनिया में हवा के साथ फैले हैं। गांधी को कोई मार नहीं सकता, क्योंकि विचारधाराएं मरा नहीं करती। और ना ही मिटाई जा सकती है। कोई लाख प्रयास करें लेकिन गांधी रहेंगे /आएंगे हर उस जगह लड़ते हुए दिखाई पड़ेंगे, जहां जुल्म होगा, अन्याय होगा, शोषण होगा। वह कालजई हैं। कुछ सिरफिरे लोगों की समझ में नहीं आता कि यह गांधी का देश है। गोडसे को स्थापित करने का फांसी वादियों का सपना कभी साकार नहीं होगा। हमारे प्रधानमंत्री जी शायद अमेरिकी राष्ट्रपति वाइडन की बात के मर्म की गहराई तक जाएंगे और उम्मीद है कि गोडसे की मूर्तियों पर दोबारा माल्यार्पण नहीं करेंगे।
डा राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
एवं विचारक

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