कई करोड़ो विकास योजना पर होता है खर्च, नही दिखता विकास,
कमीशन का रहता है टेंसन
जनपद में फर्जी तरीके से किये गए आवास पूर्ण,
अभिषेक बुन्देला
ललितपुर ब्यूरो (अमर स्तम्भ)। उत्तर प्रदेश के जनपद ललितपुर में कई वर्षों से मनरेगा (महात्मा गांधी रोजगार योजना) में लूट और सरकारी पैसे का दुरुपयोग होता आ रहा है, मनरेगा’ यानी महात्मा गांधी रोजगार गारंटी कानून योजना को हम सब मोटे तौर पर मजदूरों को रोजगार देने वाली योजना के रूप में जानते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में मैं ‘मनरेगा’ को मजदूरों के नाम पर लूट की योजना कहना चाहूंगा। आपको यह अटपटा लग सकता है लेकिन सच्चाई यही है। आप पूछ सकते हैं कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं तो मैं ग्राउंड रियल्टी देख रहा हूं क्योंकि अभी गांव में हूं।मनरेगा में मचे भयंकर लूट को लेकर जब मेरी बात एक ठेकेदार से हुई तो उसने कई चौंकाने वाली बात बताई। उसने बताया कि मनरेगा योजना के तहत काम पूरा करने का टेंशन नहीं बल्कि कमीशन पहुंचाने का सबसे बड़ा टेंशन होता है। जब मैं जानना चाहा कि कितना कमीशन जाता है तो उसने बताया कि अगर 1 लाख रुपये का कोई काम मनरेगा के तहत आता है तो कम से कम 30 हजार रुपये कमीशन देना होता है। यानी कमीशन का स्लैब 30% है। मैंने पूछा कि किस-किस को कमीशन जाता है तो उसने बताया कि मनरेगा की इस लूट में पंचयात का मुखिया (ग्राम प्रधान)से लेकर, ब्लॉक के ऑफिसर, काम को सुपरविजन करने वाला इंजीनियर, जिला के ऑफिसर और कुछ हद तक मजदूर भी शामिल हैं। कमीशन के स्लैब को समझाते हुए ठेकेदार ने बताया कि जूनियर इंजीनियर जो काम का सुपरविजन करता है उसे 6% फीसदी कमीशन जाता है। इसी तरह मुखिया(प्रधान) से लेकर अधिकारी को अलग-अलग स्लैब में कमीशन पहुंचाया जाता है। मनरेगा में प्रोजेक्ट जमीन पर नहीं बल्कि कागजों में ज्यादा पूरा करना होता है। मेरा सवाल था कि मनरेगा के तहत काम का पैसा तो सीधे मजदूरों के बैंक खाते में जाता है तो फिर यह कमीशन और घोटला करना कैसे संभव है तो ठेकेदार ने बताया कि इसमें मजदूरों की भी मिली भगत है। पंचायत का मुखिया (ग्राम प्रधान)वैसे मजदूर को ठेके के काम में नाम देते हैं जिसके खाते में पैसा आए तो वह कुछ रकम रखकर सारा पैसा वापस कर दें। वह मजदूर गांव में हो या नहीं उससे फर्क नहीं पड़ता। अगर मजदूर की पत्नी गांव में है तो उसके पति का नाम भी दे दिया जाता है मैंने पूछा की अगर मजदूर पैसा नहीं लौटाया तो उसने बताया कि इस तरह के मामले आते हैं लेकिन बहुत कम। जो मजदूर पैसा देने में आनकानी या मना करता है उसे हम अगले काम में शामिल नहीं करते हैं। मजदूर को भी बिना काम किए कुछ पैसा मिल जाता है। यह सब पंचायत का मुखिया (ग्राम प्रधान)को सेट करना होता।
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मनरेगा में काम कैसे होता है
ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संचालित महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत पात्र एवं इच्छुक परिवारों को जॉब कार्ड प्रदान किया जाता है। मनरेगा में 100 दिनों की रोजगार की गारंटी प्रदान करती है। ये कार्य उन्हें 5 किलोमीटर के दायरे में दिया जाता है। सभी जॉब कार्ड धारक मनरेगा के तहत होने वाले कार्य में काम करने हेतु आवेदन कर कर सकते है। इस कार्य के लिए उन्हें निर्धारित प्रतिदिन मजदूरी दिया है जो सीधे उनके खाते में जमा हो जाती है।
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जनपद में नही है मुरम की कोई लीज
अगर हम बात करे मनरेगा में मैटेरियल की तो 60 प्रतिशत मजदूरो पर और 40 प्रतिशत मैटेरियल खर्च होता है जिस में पक्के कामो को करना पड़ता है लेकिन बात करे मुरम की जो कि संपर्क मांर्ग में इस्तेमाल होती है ,सफ्लायर इस के बिल तो देता है पर कहा से पर्चेस करता है ये पता नही,क्यों कि mm11 के बिल जब बन सकते है ? जब कोई लीज हो ,इस मे अधिकारी और सफ्लायर मिल के मोटी रकम का बंदर बाट करते है,अगर अधिकारी इस का संज्ञान ले बड़ी मात्रा में पैसे का बंदरबाट निकलेगा।
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ललितपुर में मनरेगा में फर्जी लोगो के खाते में डाला जाता है पैसा
ललितपुर में मनरेगा ग्राम प्रधान ओर सचिव मिल कर गांव के उन लोगो के खाते में पैसे डालते है या तो प्रधान के खास हो या एक कमीशन में हिस्सा तय हो,ये आलम पूरे जिले में है ।और जनपद में कुछ मजूदर तो जो लोग इनकमटैक्स भी भरते है और फर्म भी रजिस्टर है उन के खातों में पैसा डाला जाता है। आखिर किस की सय पर इतना हेर फेर होता है क्या। किसी को जानकारी नही रहती …रहती तो है पर कार्यवाही कोंन करे क्यों की पैसा सभी जगह जाता है।
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उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने बिठाई जांच
जनपद ललितपुर के ब्लॉक मड़ावरा के 19 ग्राम पंचायत की जांच उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री /ग्राम विकास मंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ललितपुर के ब्लॉक मड़ावरा की शिकायत हुई जब मामले का संज्ञान लिया तो 19 ग्राम पंचायत पर मनरेगा से हुए कामो का पैसा रोक कर जांच के एक टीम गठित की गई जांच अभी चल रही है।