शिशिर की सरकार / अंतिमा सिंह की कलम से
दिन-दिन बढ़ता कोहरा अस्त हुई है धूप।
जाने कब दिखलाएंगे दिनकर अपना रूप।।
दिनकर अपना रूप धुंध चहुं ओर है छाई।
कांपे नित कंगाल पास में नहीं रजाई।।
ठिठुर -ठिठुरकर हाय! रात काटे वह गिन-गिन।
निर्दय निष्ठुर पूस बढ़ावे जाड़ा दिन-दिन।।
शिशिर सजी है देख लो, धवल रंग के संग।
चाल चले इस भांति जनु, सरपट चले भुजंग ।।
सरपट चले भुजंग संग कोहरे को लाई।
मौसम है विपरीत धुंध आंखों पर छाई।।
पली बर्फ के गांव, पवन पुर्वा बिंधती सर।।
हाड़ कंपाती सर्दी लेकर आयी शिशिर।।
-अंतिमा सिंह “गोरखपुरी”