ऊम्र में यूँही साल जुड़ते जाते हैं।
सिर पर सफेद बाल जुड़ते जाते हैं।
बुढ़ापे की दहलीज, खैर अभी दूर है।
जवानी दिल में भरपूर है।
साल पचपन की तरफ बढ़ने लगे है।
एक नये बचपन की तरफ बढ़ने लगे है। ।
बच्चे भी बड़े हो गये ,
अपना अपना आकाश तलाशने लगे हैं।
जो कभी उंगली पकड़ के चलते थे ,
हम वो मेरा हाथ थामने लगे हैं।
कविता लिखने की नयी बीमारी हो गयी।
जिंदगी से कुछ ज्यादा ही यारी हो गयी।
गाना आए या ना आए हम गाने भी लगे हैं।
दोस्तों की महफिल अब ज्यादा सजाने लगे है।
हाँ कुछ देश विदेश भ्रमण अभी बाकी है।
परमपिता परमात्मा का चिंतन अभी बाकी है
कई काव्य मंच हमारे परिवार बन गए।
भाई और बहनों के नये संसार बन गए।
जिंदगी की भागदौड़ से अब दूर रहना है।
आगे बढ़ने की हर होड़ से दूर रहना है।
उम्र का ये बहुत ही खूबसूरत पड़ाव है।
आँखो मे बसता सपनों का नया गांव है।
अब दुखों की धूप से डर नहीं लगता,
कुछ मीठे रिश्तों की सुनहरी छावँ है।
माना कि पूरी नहीं हुई दिल की सभी चाहते,
लेकिन अब छोड़ दी जिंदगी से करना शिकायतें।
अब जीवन साथी के साथ ज्यादा रहना है।
मन की बात को ज्यादा साँझा करना है।
मां-बाप और सब बड़ों का आशीर्वाद बना रहे।
प्रभु की कृपा का प्रसाद बना रहे।
गिरीश गुप्ता