ये अँधेरे मिट सकें सूरज उगाते हैं
खूबसूरत इस जहां को जगमगाते हैं
हद हुई ऐसी कि चलना भी नहीं मुमकिन
हर कदम पर चूभते कांटे हटाते हैं
नफरतों से जल रही हैं वादियां सारी
प्यार की बौछार से इसको बुझाते हैं
ख्वाब देखे पर हुये पूरे नहीं जिनके
टूटते अरमान उनके फिर जगाते हैं
नीच हरकत पे नही होती शिकन जिनको
सामने लाकर उन्हें सबको बताते हैं
देश हित में जान जाती हो चली जाये
नाम अपना भी शहीदों में लिखाते हैं
बर्फ से ठंडे पड़े रहने लगे हैं दिल
गर्मियां अहसास की कृष्णा दिलाते हैं
कृष्ण कान्त बडोनी