आसान नहीं होता
सबकी सुनना चुप रहना
कुछ ना कहना करते रहना
सुबह से शाम बिना थके रुके
हर काम समय पर पुरा करना।।
उसकी सुबह भी पहले आती
जग जाती सारा इंतजाम करती
कोई आस नहीं पर निराश नहीं
उसका काम है कहां आराम है
कब हुई दोपहर कब हुई शाम है।।
सभी तरफ़ देती ध्यान
तैयार रहते उसके कान
इच्छा दबाए बिना समय गंवाए
जो जन को भाए स्वादनुसार बनाए
यही है प्यार वो कहलाती शिल्पकार।।
रात भी उसकी देर से आती
कल की योजना ले सो जाती
फिर नित्य क्रम, ना कोई भ्रम
उसे बताया गया नारी का धर्म
कहते खुद पुरुष पर आती नहीं शर्म।।
उसे दर्द होता दिल रोता
आंखो में आसूं नहीं होता
उसे पता है जीवन संघर्ष है
नारी का मर्म, समाज हुआ बेरहम
वो निभाती कर्म पथ, जो है जीवन का सत्य।।
आनंदेश्वर सन्तोष पाण्डेय