मिसरा– झूठी हंसी ये जिंदगी हंसती चली गई
आदत दिलों के साथ कुछ सजती चली गई
झूठी हंसी ये जिंदगी हंसती चली गई।
रौनक बहार की जो कभी रूठ कर गई,
बिगड़ी हुई जो बात थी बनती चली गई।
दिल में छिपा के रख लिया हर दर्द क्या कहें,
हर अक्स आरसी ये दिखाती चली गई।
मांगी दुआ खुदा से वो पूरी नहीं हुई,
फिर भी इबादतों को निभाती चली गई।
हमराह साथ है तो कमी क्या रही मुझे,
ख्वाबों के जश्न जीत मनाती चली गई।
दिल जख्म खा के बैठ गया, आंख में नमी,
चलनी थी जिंदगी तो ये चलती चली गई।
भाई न शहर की ये हवा और रोशनी,
आकर यहां फरेब में फंसती चली गई।
जब सच कहा कभी तो वो मंहगा पड़ा मुझे,
यूँ जिंदगी थकी सी संभलती चली गई।
जो था किरण के पास नहीं आज वो रहा,
अपना हरेक चैन लुटाती चली गई।
किरण पाण्डेय