रूप बांटते चलो,निखार बांटते चलो
फूल बांटते चलो बहार बांटते चलो
मरुथलों को सावनी फुहार बांटते चलो
दिल से दिल मिलाओ और प्यार बांटते चलो
मिट रही मनुष्यता पे अब ज़रा रहम करो
दिल से दंभ द्वेष का ये सिलसिला ख़करोकरो
और कुछ न कर सको तो ये तो कम से कम करो
दूसरों के दुख पे अपनी आंख को भी नम करो
कोपलों को ऐसे संस्कार बांटते चलो
दिल से दिल मिलाओ और प्यार बांटते चलो
तीन लोक,सात सुर दो जहान प्यार है
चार वेद दस दिशा का भेद ज्ञान प्यार है
प्यार ही वसुंधरा है आसमान प्यार है
प्यार ही ममत्व,और स्वाभिमान प्यार है
ज़िंदगी को प्रेम का श्रृंगार बांटते चलो
दिल से दिल मिलाओ और प्यार बांटते चलो
प्रेम के बग़ैर रिक्त रिक्त हर चरित्र है
प्रेम के बग़ैर कोई शत्रु है न मित्र है
प्रेम के बग़ैर पाप,वासना का चित्र है,
प्रेम मे करो तो काम साधना पवित्र है
प्रेम का ये भाव निर्विकार बांटते चलो
दिल से दिल मिलाओ और प्यार बांटते चलो
भूमिका जैन “भूमि”
आगरा
8279942648