फटे वसन अब घूम रहा है,समझ रहा धनवान रे।
लगता आवारा अनपढ़ सा,बदल गया इंसान रे।।
झूठ और बेईमानी कर,समझ रहा है शान रे।
घूम रहा कंकाली सा ये,नहीं बची है जान रे।।
नशा किये ही घूम रहा है,लगता है शैतान रे।
लगता आवारा अनपढ़ सा,बदल गया इंसान रे।।
मान और मर्यादा खो दी,खुला करे विष पान रे।
तन पूरा है खोखा जैसा,नहीं बचा हो प्राण रे।।
हुआ दम्भ में चूर बहुत ही,बनता बहुत महान रे।
लगता आवारा अनपढ़ सा,बदल गया इंसान रे।।
एसी कूलर में जो बैठे,नहीं बचा ईमान रे।
छोड़ उन्हें बस बाकी के सब,दिखते बेईमान रे।।
आमद से हैं खर्चे ज्यादा,संकट में है जान रे।
लगता आवारा अनपढ़ सा,बदल गया इंसान रे।।
दुष्यन्त के द्विवेदी