जिंदगी भर जिन्हें कहते रहे दुनिया काफ़िर
अब जमाने की परवाह नहीं आरजू तेरे दीदार
लाख धन दौलत मुहैय्या कर ले जमाने में
सुहाना नही लगता अब जमाना बिन तेरे दीदार
फना हो जाए फूँक दे खार-ओ-ख़स जमाना
खुदा खुद नजर आएगा अब रूह-ए-अशआर
इक तन्हा तन्हा गुजर जा रही जिंदगी कारवाँ
तू ही मुमकिन है मेरी मोहब्बत का ला दे बहार
मौत का सामान से वाकिफ होने लगी जिंदगी
अर्श से कहीं ऊँचा है मेरे जानम तेरा दीदार
खुद मशरूफियत तेरी एक एक अदा निसार
तेरी सूरत मैय्यसर जो मेरी मैय्यत पूर्व दीदार
सर-ए-मोहब्बत-ए-आब-ए-हयात मेरी जिंदगी
कुव्वत से वाकिफ नहीं मुझे अब जमाने का डर
तू और तेरा एहसास ही कॉफी होगा जीने वास्ते
गर मुमकिन हो तो फलक तले तेरा हो जाए दीदार
राजेन्द्र कुमार पाण्डेय “राज”
बिलासपुर