अर्थात किसी के लिखे हुए को वहां से बखूबी चुराकर अपने नाम से छाप देना और वाहवाही पाना । दोस्तों आज सोशल मीडिया पर चलते इस प्रचलन ने प्रचंड रूप धारण कर लिया है। जब किसी का वह कृत्य सामने आता है तो उस दंश की पीड़ा से हृदय और मन दोनों ही विचलित हो उठते। हैं और हम फिर दोषारोपण करते चलते हैं उनके इस कृत्य पर उन्हें तरह-तरह के नाम देते । ना जाने किन-किन शब्दों से उन्हें जलील करते हैं और हमारी इस पीड़ा में हमारे सहयोगी मित्र उस साहसिक कार्य के प्रति प्रोत्साहनवश इस प्रकार नारे लगाते जैसे माता के जगराते में लगाते हैं तो मेरे साहित्यकार आदरणीय सर्व माननीय मित्रों मेरी बात ध्यान पर सिर्फ एक गौर फरमाएं कि आप इतने बड़े साहित्यकार होकर उससे उलझ रहे जिसे साहित्य अ आ इ भी नहीं पता । क्या फर्क रह गया आप में और उन कॉपी पेस्ट कर परोसने वालों में।
इस टेक्निकल दुनिया में प्रवेश करने से पहले हम सभी को अच्छी तरह से संज्ञान होता है कि जिस तकनीकी का आप प्रयोग कर रहे हैं आज दुनिया का शायद कोई ही व्यक्ति होगा जो इससे अछूता रहा हो और कब क्या कहां क्यों कैसे कितना प्रयोग करना इसका फायदा और नुकसान सब भली भांति जानता है। कहते हैं हर कार्य में लाभ और हानि दोनों निहित होते हैं पहले समय में साहित्य केवल अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में ही छपते थे और वह भी बहुत ही कम और वो भी केवल उनके जिनकी जानकारी संपादकों से बहुत अच्छी हुआ करती थी । उस वक्त भी यह चीज होती थी। किंतु उस वक्त साहित्यकारों की संख्या बहुत कम होती थी और चोरी किए गए साहित्य पर आसानी से नजर चली जाती थी इस डर से यह कार्य लोग बहुत कम कर पाते थे। दूसरा समाचार और पत्रिकाओं में भी हर कोई रुचि लेकर नहीं पढा करता था केवल साहित्यकार एवं लेखक या फिर इसमें विशेष रुचि लेने वाले लोग ही पढ़ते थे इस प्रकार साहित्य केवल साहित्यकारों और लेखकों की व्यक्तिगत डायरियों और कॉपी में ही सिमटकर रह जाता था ।किंतु कब तक एक समय पश्चात यदि इन कॉपियों का संरक्षण सही से नं किया गया हो तो या तो उनमें दीमक लग जाता था या बहुत पुरानी होने पर फट जाया करती थी और फिर जिस मकसद से वह साहित्य लिखा जाता वह दुनिया तक पहुंच ही नहीं पाता था। अब आया आधुनिक युग यानि आज का यह टेक्निकल जमाना इसके बारे में शायद कोरोना काल के पश्चात हर व्यक्ति इसके हानि लाभ और बारीकियों से पूर्णतः अवगत है जिसने हर व्यक्ति को एक नई दिशा प्रदान की एक साहित्यकार जिसका साहित्य उसकी डायरी तक ही सीमित था आज वह इसके माध्यम से जन-जन पहुंचा सका चाहे वह ई पेपर हो या ई मेगजीन हो या अनगिनत काव्य संस्थान और साहित्यिक मंचों के माध्यम से ही सही। अब बात आती है कॉपी पेस्ट की तो हम सभी पढ़े लिखे और अनुभवी साहित्यकारों की श्रेणी में स्वयं को रखते हैं और हम भी इस टेक्निकल दुनिया का भाग ही है और कॉपी पेस्ट का प्रयोग हम भी कर रहे हैं अपना कंटेंट वर्ड पैड़ या नोट पेट पर टाइप कर वहां से कॉपी पेस्ट कर तब पोस्ट करते तो मेरे दोस्तों यह बात क्यों नहीं समझते यदि हम इस सोशल मीडिया से जुड़े टेक्निकल टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं तो हम दूसरों को उस तकनीकी से अनभिज्ञ क्यों समझते जबकि हम इसके नियम और कानून पहले से जानते हैं कि यह एक ऐसा माध्यम है जहां सभी को इसके लाभ हानि नियम और इसकी बारीकियां पहले से पता हैं। लाभ यह है कि आज आपका और हमारा साहित्य डायरी और कॉपी में घुटन महसूस नहीं करता वह दूसरों तक पहुंच रहा है हानि आपको यह हो रही कि आपके उसी साहित्य को कॉपी पेस्ट कर कोई दूसरा अपने नाम से छपवा रहा और मेहनत आप कर रहे हैं….
मैं आपसे बस इतना पूछना चाहती हूं कि ,कोई कितना भी कॉपी पेस्ट कर ले जिस प्रकार गूगल पर सर्च करने से किसी शब्द का आप कॉपी पेस्ट तो कर सकते हैं लेकिन उसके भावों को तो आप ही समझकर भरेंगे या अपने हिसाब से समझाएंगे उन शब्द को अपने अनुसार तो आप ही लिखेंगे।
दूसरी बात एक लेखक और एक साहित्यकार को तो इस बात को सोचने की न तो फुर्सत न ईर्ष्या और ना ही जरूरत ही होनी चाहिए क्योंकि उसकी मानसिकता यदि इतनी संकीर्ण रहेगी तो लिखने के समस्त भाव एवं उद्देश्य समाप्त हो जाएंगे। इसीलिए करने दीजिए आप अपने लिखे को कॉपी पेस्ट कोई यदि कॉपी पेस्ट भी करता है तो जरा सोचिए समय दे रहा उसको पढ़ने के लिए उसको वह पढ़कर अच्छा लगा कॉपी कर लिया और फिर चाहे वाह वाही पाने हेतु ही सही अपने नाम से पेस्ट कर छपवा दिया लेकिन एक बात सोचिए ईश्वर की नजरों में तो आप ही का विचार था कब तक और कितनी बार कर लेगा वह यह कार्य सोचिए एक दिन तो उसकी आत्मा अवश्य कचौटेगी उसको क्योंकि झूठी वाह वाही ज्यादा समय तक हर कोई पचा नहीं पाता । बस आप यह सोचकर संतुष्ट रहिए कि आपके पास जो ज्ञान संचित था वह लिखकर बांट दिया यह दुनिया है उसको पढ़कर क्या कर रही यह न सोचिए केवल आपने अपना कर्तव्य था जो लेखन के माध्यम से पूर्ण कर दिया। यदि इस डर से आए दिन इनमें उलझे रहे तो कोई औचित्य नहीं रह जाएगा एक लेखक और एक साहित्यकार के लेखन का । आपके अंदर की अनमोल प्रतिभा और उन भावों को किसी की ताकत नहीं की कोई कॉपी पेस्ट कर सके इसीलिए ईश्वर के द्वारा बनाए नेचुरल वर्जन पर स्वयं को थाम कर रखिए। दोस्तों कहते हैं पानी यदि एक स्थान पर ज्यादा समय तक ठहरा रहे तो उसमें सड़न हो जाती है दुर्गंध आने लगती है और काई लग जाती है। फिर वह न पीने लायक रहता न किसी अन्य कार्य के। वही बात प्रत्येक कार्यक्षेत्र में भी लागू होती है।
जिस ज्ञान का अमृत आपकी कलम में संचित है उसको बहने दें ।ना सोचे कि वह कहां-कहां से होकर बहेगा कौन उसे रोककर इकट्ठा करेगा कौन पीकर प्यास बुझाएगा । क्योंकि जल सरीखे ज्ञान की प्रवृत्ति बहना है जिसकी समझ आए वह पी जाएगा जो रोकना अर्थात कॉपी पेस्ट करना चाहेगा ज्यादा समय उसके अंजुल में नहीं रुकेगा गिर जाएगा । पीकर प्यास बुझाना ही ज्ञान का उद्देश्य है।
चाहे कोई भी हो न मैं न आप उसे अपने पास किसी भी प्रकार के डर से रोक सकते हैं और यदि मैं चाहती हूं कि ,मेरे द्वारा प्रसारित ज्ञान सभी तक पहुंचे तो किसी भी प्रकार का भय एवं नकारात्मक विचार सर्वप्रथम अपने अंदर से निकालना होगा ।
एक शिक्षिका एवं एक साहित्यकारा होने के नाते सभी से यही अपेक्षा एवं विनती है कि यह सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता अपनी सोच को संकीर्ण न बनाकर इस निर्मल साहित्यिक महासागर को अनवरत बहने दे सभी का भला हो यही शिक्षा का और हमारे लेखन का सच्चा उद्देश्य है। सकारात्मक सोच एवं प्रसन्न भाव से लिखें। बिना किसी अपेक्षा के…..
क्योंकि सच्ची प्रशंसा ना किसी प्रमाण पत्र के वशीभूत होती ना ही किसी पारितोषिक की और न ही 400 -500 लाइक्स और कमेंट्स की अगर आप ये चाहते हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए…
सीमा शर्मा”तमन्ना”
नोएडा उत्तर प्रदेश