जाँ से ज्यादा मुहब्बत करते हैं हम
खुद से ज्यादा वतन पर मरते हैं हम
माँ बेटे के जैसे नाता हमारा
हमें देश है अपनी जान से प्यारा
खुद से पहले वतन को रखते हैं हम
जाँ से ज्यादा मुहब्बत करते हैं हम
खुद से ज्यादा वतन पर मरते हैं हम
राम, कृष्ण, गुरुनानक की ये धरा है
आजादी हेतु कितना वीर मरा है
अमर गाथाएं हरदिन पढ़ते हैं हम
जाँ से ज्यादा मुहब्बत करते हैं हम
खुद से ज्यादा वतन पर मरते हैं हम
यह सिर्फ धरती नहीं, माँ है हमारी
जिसकी गोद में ज़िन्दगी है गुजारी
धूल चन्दन समझ माथ मलते हैं हम
जांँ से ज्यादा मुहब्बत करते हैं हम
खुद से ज्यादा वतन पर मरते हैं हम
मेरा गौरव व अभिमान तिरंगा है
मेरा तन- मन व पहचान तिरंगा है
तिरंगे की महिमा को भजते हैं हम
जाँ से ज्यादा मुहब्बत करते हैं हम
खुद से ज्यादा वतन पर मरते हैं हम
हम भगतसिंह की तरह वीर बलिदानी
चन्द्रशेखर की अनमिट अमर कहानी
सिंह की तरह अरि गर्दन धरते हैं हम
जाँ से ज्यादा मुहब्बत करते हैं हम
खुद से ज्यादा वतन पर मरते हैं हम
शत्रु के हाथ देश नहीं मिटने देंगे
देश में अब लहू नहीं बहनें देंगे
काल बन निज दुश्मन से लड़ते हैं हम
जाँ से ज्यादा मुहब्बत करते हैं हम
खुद से ज्यादा वतन पर मरते हैं हम
रचना -राम जी तिवारी “राम” उन्नाव (उत्तर प्रदेश)