भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में रानी सती दादी का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके भक्त, विशेषकर मारवाड़ी समाज में, उन्हें शक्ति और साहस की देवी के रूप में पूजते हैं। सुरेश अग्रवाल जैसे समर्पित भक्तों के लिए, रानी सती दादी केवल एक देवी नहीं, बल्कि आस्था और जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।
रानी सती दादी का संक्षिप्त परिचय
रानी सती दादी, जिनका वास्तविक नाम नारायणी बाई था, का जीवन समर्पण, साहस, और नारी शक्ति का प्रतीक है। उनके पति, तनधन दासजी, की मृत्यु के बाद उन्होंने सती होने का निर्णय लिया। आज, रानी सती दादी का मंदिर राजस्थान के झुंझुनू में स्थित है, जहां हर साल लाखों भक्त उनकी पूजा करने आते हैं।
सुरेश अग्रवाल की श्रद्धा
सुरेश अग्रवाल, रानी सती दादी के एक प्रगाढ़ भक्त हैं। उनकी आस्था और विश्वास दादी के प्रति अटूट है। सुरेश अग्रवाल का मानना है कि रानी सती दादी की कृपा से ही उनके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आई है। हर वर्ष भाद्रपद महीने की नवमी को, सुरेश अग्रवाल विशेष रूप से झुंझुनू स्थित रानी सती दादी के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दादी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
भक्त के जीवन में दादी का महत्व
सुरेश अग्रवाल के जीवन में रानी सती दादी का एक विशेष स्थान है। जब भी जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई या चुनौती आती है, वह दादी का स्मरण करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। उनके अनुसार, दादी का आशीर्वाद प्राप्त होने से वह हर कठिनाई का सामना करने में सक्षम होते हैं।
दादी का मंदिर और सुरेश अग्रवाल की सेवाएं
झुंझुनू स्थित रानी सती दादी का मंदिर सुरेश अग्रवाल के लिए केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि उनकी आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। उन्होंने इस मंदिर के लिए विभिन्न सेवाएं दी हैं और मंदिर के विकास और संचालन में भी सक्रिय भूमिका निभाई है। सुरेश अग्रवाल का मानना है कि दादी की सेवा करना उनके जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है।
निष्कर्ष
रानी सती दादी के प्रति सुरेश अग्रवाल की अनन्य भक्ति और समर्पण, उन्हें न केवल दादी के एक सच्चे भक्त के रूप में पहचान दिलाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि श्रद्धा और आस्था से भरा जीवन किस प्रकार से शांतिपूर्ण और समृद्ध हो सकता है। रानी सती दादी के प्रति सुरेश अग्रवाल का यह प्रेम और विश्वास, उनके जीवन में एक प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।