पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने निलंबन की घोषणा की है।
रायपुर (अमर स्तम्भ):-छत्तीसगढ़ राज्य का वन विभाग इन दिनों भारत देश का सबसे बड़ा भ्रष्ट्राचार का केन्द्र बना हुआ है,जहाँ वन विभाग के अधिकारियों के सबसे अधिक मामले सामने आ रहे है जिन्हें ऊपर से ही पूरा संरक्षण मिला हुआ है, फ़िर “सैय्या भये कोतवाल तो अब डर काहे का?” छत्तीसगढ़ वन विभाग में अधिकारी तो छोटी मछलियाँ है जो पदस्थापना की वफ़ादारी के एवज में सरकारी पैसो को भ्रष्ट तरीके से अपने आका तक पहुंचाने का काम करते है,जिस तरह से महाराष्ट्र में छगन भुजबल ने भ्रष्टाचार किया था जिन्हे जेल जाना पड़ा था उसी तरह छत्तीसगढ़ में भी कई छगनभुजबल है जिनके भ्रष्टाचार की देर-सबेर जाँच के दायरे में आने ही वाली है।अभी ये पॉवर में है जी भरके सत्ता का खूब मज़े ले रहे है और छत्तीसगढ़ की जनता की गाढ़ी कमाई को दोनों हाथो से लूट रहे है,जिस दिन पाप का घड़ा भरेगा मुँह छिपाने के लिए जेल में ही जगह मिलने वाली है? वैसे भी इनके पुराने पापों की जाँच भी अभी होनी बाकि है क्योकि सबूत तो दस्तावेजों में है देर सबेर न्यायपालिका जरूर न्याय करेगा अब छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय जॉंच एजेंसियों पर भरोसा करना बेईमानी होगा क्योकि यहाँ तो सर से पाँव तक सब के सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे नज़र आते है।या ए कहे कि हमाम में सभी नग्गे हैं।अब राज्य स्तरीय जाँच करने के स्थान पर सी.बी.आई.जाँच कराने की आवश्यकता है।लेकिन सत्ता में आते ही भूपेश सरकार ने तो छत्तीसगढ़ राज्य में सीबीआई पर रोक लगा दी हैं।अगर सीबीआई से जांच करवा दी जाए तो फिर देखिए कैसे बड़ी मछलियाँ जाल में फंसती है ? वैसे भी एक अयोग्य और नकारे व्यक्ति से क्या उम्मीद की जा सकती है ?वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियो के खिलाफ इतने आरोप और प्रकरण लंबित होने के बाद भी कोई कार्यवाही का नहीं होना कई संदेहो को जन्म देता है की इन भ्रष्ट्राचारों के पीछे कौन है ? जनता देख भी रही है और समझ भी रही है।बताना लाजमी होगा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में अनियमितता पर बड़ी कार्रवाई हुई है।पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने 15 अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित करने की घोषणा की है। इसमें जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी शामिल हैं। एक रिटायर्ड डीएफओ से वसूली की कार्रवाई भी की जा सकती है।ज्ञात हो कि यहां मामला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के मरवाही वन मंडल से जुड़ा हुआ है। कांग्रेस विधायक गुलाब कमरो ने ध्यानाकर्षण के जरिए यह मामला उठाया था। उनका कहना था,मरवाही वन मंडल के ग्राम चुकतीपानी,टाड़पथरा,पकरिया, केंवची,पंड़वनिया और तराईगांव में पुलिया और स्टापडैम का निर्माण कराना था। इन गांवों में 33 काम के लिए सामग्री की राशि निकालकर गबन कर लिया गया, जबकि काम हुआ ही नहीं है। गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही कलेक्टर की जांच में यह साबित भी हो गया है।जवाब में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव ने बताया, मरवाही के वन मंडलाधिकारी ने नियमों का उल्लंघन किया है। वन और पंचायत दो विभागों के बीच का मामला होने की वजह से कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही है। उसके बाद विपक्ष के विधायक भी खड़े हो गए। उनका कहना था, जब अनियमितता साबित हो गई तो दोषी अधिकारियों को क्यों बचाया जा रहा है।मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा हैं कि हमारे काम करने की एक सीमा है। हम प्रथम श्रेणी के अधिकारियों और रिटायर्ड डीएफओ पर कैसे कार्रवाई कर सकते हैं। उन्होंने कहा, प्रथम श्रेणी के अधिकारियों का मामला उनके विभागों में समन्वय के लिए भेजेंगे। शेष 14 लोगों को निलंबित कर दिया जाएगा। इस मसले पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने भी हस्तक्षेप किया। उन्होंने कहा कि आप जिम्मेदारों को निलंबित कर सामान्य प्रशासन विभाग को सूचना भेज सकते हैं। इसके बाद सिंहदेव ने कहा, अगर ऐसा हो सकता है तो मैं जिला पंचायत के तत्कालीन सीईओ सहित 15 अधिकारियों-कर्मचारियों के निलंबन की घोषणा करता हूं।
कार्रवाई की जद में आए अफसर अभी जांजगीर-चांपा के सीईओ
निलंबन की कार्रवाई की जद में आए गजेंद्र सिंह ठाकुर अभी जांजगीर-चांपा जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी हैं। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ठाकुर के बिलासपुर जिला पंचायत सीईओ रहते हुए मनरेगा में यह गड़बड़ी हुई थी। कलेक्टर की जांच में भी उनकी भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। प्राथमिक जांच में दोषी दिख रहे अधिकारियों-कर्मचारियों को इस घोटाले का जिम्मेदार मानकर कार्रवाई की गई है। ठाकुर को मई 2020 में बिलासपुर का सीईओ बनाया गया था। दिसम्बर 2020 में उन्हें वहां से हटाकर जांजगीर-चांपा भेज दिया गया। पोस्टिंग के 8 महीनों में ही यह बड़ा खेल हो गया।
इन वन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई
राकेश कुमार मिश्र, सेवानिवृत्त – तत्कालीन प्रभारी वन मंडलाधिकारी
केपी डिंडौरे – तत्कालीन उप वन मंडलाधिकारी गौरेला
गोपाल प्रसाद जांगड़े – तत्कालीन वन परिक्षेत्र अधिकारी
अंबरीश दुबे – तत्कालीन परिक्षेत्र सहायक गौरेला
अश्वनी कुमार दुबे -तत्कालीन परिक्षेत्र सहायक केंवची
उदय तिवारी – तत्कालीन परिक्षेत्र सहायक पिपरखुंटी
अनूप कुमार मिश्रा – तत्कालीन परिक्षेत्र सहायक पंकरिया
राजकुमार शर्मा, सेवानिवृत्त – तत्कालीन प्रभारी परिक्षेत्र अधिकारी गौरेला
वीरेंद्र साहू – तत्कालीन वन रक्षक चुकतीपानी
दीपक कोसले – तत्कालीन वन रक्षक ठाडपथरा
देवेंद्र कश्यप – तत्कालीन वन रक्षक पंडवनिया
पन्नालाल जांगड़े – तत्कालीन वन रक्षक आमानाला
नवीन बंजारे – तत्कालीन वन रक्षक, पकरिया
लाल बहादुर कौशिक – तत्कालीन वन रक्षक, केंवची
नीतू ध्रुव – तत्कालीन वन रक्षक ठेंगाडांड
वन विभाग में टेंडर घोटाला में 9 अफसरों को नोटिस,इन अफसरों में से 6 भारतीय वन सेवा के अधिकारी भी,जिसमे आयुष जैन भी हैं शामिल।
छत्तीसगढ़ में वन विभाग में एक बड़ा टेंडर घोटाला सामने आया है। वन विभाग के अफसरों ने 37 टेंडर निकाले थे, उनमें से 33 में गड़़बड़ी पाई गई है। इसके लिए जिम्मेदार 9 अफसरों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इन अफसरों में से 6 भारतीय वन सेवा के अधिकारी हैं। वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि नोटिस का जवाब आने के बाद दोषियों पर कार्रवाई होगी। सरकार किसी भी मामले में कोई कोताही नहीं बरत रही है।बजट सत्र के दौरान दरअसल विधानसभा में मंगलवार को यह मुद्दा उठा। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने पूछा कि टेंडर में क्या अनियमितता मिली थी और दोषियों पर क्या कार्रवाई की गई है। वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने अनियमितता और नौ अफसरों के दोषी होने की पुष्टि की। वन विभाग के टेंडर गड़बड़ी की प्रारंभिक जांच में नौ अधिकारी दोषी पाए गए हैं। इनमें छह भारतीय वन सेवा के अधिकारी हैं। उन्हें नोटिस दी गई है, जवाब आने पर कार्रवाई की जाएगी।मंत्री अकबर ने बताया कि निविदा में 30 दिन की अवधि होनी चाहिए लेकिन 21 दिन का समय दिया गया था। निविदा में भंडार क्रय नियमों का पालन नहीं किया गया। वन मंत्री ने बताया, अभी मामले में किसी को जांच अधिकारी नहीं बनाया गया है। विभागीय कार्यवाही जारी है। इसके तहत कारण बताओ नोटिस जारी हुआ है। अधिकारियों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया गया है। सदन के बाहर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने बताया कि 33 टेंडरों में गड़बड़ी का मामला तो केवल चार जिलों का था। अभी बलरामपुर में भी एक मामला सामने आया है। सामग्री खरीदी में लगभग हर जगह गड़बड़ी मिल रही है। नियमों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। इसके बाद भी सरकार समय से जो कार्यवाही होनी चाहिए वह नहीं कर रही है। इससे भ्रष्टाचार के बढ़ावा मिल रहा है।
इन अधिकारियों का आ रहा नाम
जिन 9 अधिकारियों का नाम टेंडर गड़बड़ी में आ रहा है, उनमें 6 भारतीय वन सेवा के अधिकारी हैं। इनमें नायर विष्णुराज नरेंद्रन, आयुष जैन,अमिताभ बाजपाई, स्टाइलो मंडावी और विजया विनोद कुर्रे और केएल निर्मलकर का नाम शामिल है। वहीं राज्य वन सेवा के तीन अफसरों में एनके शर्मा, डीके साहू और डीके मेहर काे नोटिस जारी हुआ है।
जोगी ने उठाया नवा रायपुर के किसानों का मुद्दा
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की विधायक डॉ. रेणु जोगी ने नवा रायपुर विकास प्राधिकरण के NPA होने का मामला उठाया। उन्होंने वहां चल रहे किसान आंदोलन का मामला उठाया। जवाब में वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने बताया, मंत्रिमंडलीय उप समिति के साथ 3 बार और मुख्यमंत्री के साथ भी एक बार किसानों की चर्चा हो चुकी है। उनकी 8 में से 6 मांगे मान ली गई हैं। उन्होंने किसानों से आंदोलन वापस लेने का आग्रह किया।
डीएमएफ में फर्जीवाड़े का आरोप
बसपा विधायक केशव चंद्रा ने जांजगीर-चांपा जिले में डीएमएफ मद की राशि के खर्च का मसला उठाया। विधायक चंद्रा ने कहा, केवल प्रशिक्षण के नाम पर 16 करोड़ 21 लाख रुपए की राशि डीएमएफ मद से खर्च की गई है। उन्होंने पूछा कि क्या 2019 के बाद जिले में डीएमएफ की राशि के उपयोग को लेकर कोई ऑडिट या जांच कराया गया है। जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, कहीं भी कोई शिकायत है तो मुझे लिखकर दे दें या कलेक्टर को दे दें। हम जांच करने में पीछे नहीं हटेंगे।
प्रशिक्षण पर 16 करोड़ खर्च के ऑडिट की मांग
भाजपा विधायक नारायण चंदेल ने प्रशिक्षण पर 16 करोड़ रुपए खर्च करने पर सवाल उठाया। चंदेल ने पूछा कि इसका अनुमोदन किसने किया और इतने प्रशिक्षण की जरूरत क्यों पड़ी। विधायक सौरभ सिंह ने कहा, डीएमएफ का हर साल ऑडिट करने की गाइडलाइन है। जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा, वे ऑडिट की जानकारी अलग से दे देंगे।