गरियाबंद जिला के वन क्षेत्रों में न वन सुरक्षित न वन प्राणी सुरक्षित जंगल व वन प्राणियों की सुरक्षा छोड़ सिर्फ निर्माण कार्यो में जुटा वन विभाग।


वन विभाग निर्माण में ही भिड़े रहेगा या फिर जंगलों में मर रहे जानवरों का भी रखेगा ध्यान?

विभाग की बड़ी लापरवाही,वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर विभाग निश्चिंत


गरियाबंद/ पाण्डुका(अमर स्तम्भ)। गरियाबंद वन मंडल के वन परिक्षेत्र पांडुका अंतर्गत कोसमपानी बीट के कक्ष कं 126 में दिनांक 22.03.2022 को एक नर गौर मृत अवस्था में पाया गया है जिसकी सूचना सात दिवस बाद स्थानीय फायर वाचरों द्वारा चिरनिद्रा में लीन वन परिक्षेत्र अधिकारी पाण्डुका को देने पर पोस्ट मार्टम हेतु डॉ.आर.एन. शर्मा पशु चिकित्सक सहायक शल्यज्ञ गरियाबंद,डॉ.सुधीर पंचभाई पशु चिकित्सक सहायक शल्यज्ञ गरियाबंद एवं डॉ.तारा सोनवानी पशु चिकित्सक सहायक शल्यज्ञ गरियाबंद के 03 डाक्टरों की टीम के द्वारा मौका स्थल पर मयंक अग्रवाल वनमंडलाधिकारी गरियाबंद वनमंडल,उदय सिंह ठाकुर उपवनमंडलाधिकारी राजिम, तरूण तिवारी परिक्षेत्र अधिकारी पाण्डुका,गुलशन कुमार यादव व.र एवं स्थानीय फायर वाचरों की उपस्थिति में मौका पंचनामा लेकर नियमानुसार पोस्ट मार्टम किया गया एवं मृत गौर के शरीर को पूर्णतः राख होने तक जला दिया गया ज्ञात हो कि जंगल में गौर (बाईसन)का शव मिला था जो कि सात दिन पहले गौर के मरने की खबर हैं जंगल में मृत मिले गौर के शव को वन विभाग द्वारा आननफानन में पोस्टमार्टम कराकर अंतिम संस्कार कर दिया गया हैं।ज्ञात हो कि वन विभाग का मूल्य काम वन व वन्य प्राणियों की रक्षा करना है पर यही काम गरियाबंद वन विभाग पूरी ईमानदारी के साथ नहीं कर पा रहा,ना तो वन बचा रहा और ना वन प्राणीयो को।वन परिक्षेत्र पाण्डुका के कोसम पानी के जंगल में एक गौर का सड़ा गला शव मिला था जिसे देखकर ऐसा लगता है कि काफी समय पहले उसकी की मृत्यु हुई है और उसका शव पूरी तरह से सड़ गया था जबकिं वन विभाग को हर दिन जंगल का दौरा कर वन प्राणियों की गतिविधियों पर ध्यान देना होता हैं लम्बे समय पहले मरे गौर पर वन विभाग की नजर नहीं गई सूत्रों का मानना है कि जंगली सूअर को मारने के लिए जंगलों में करंट बिछाया जाता है जिसमें कई बार वन प्राणी भी उसकी चपेट में आकर मर जाते हैं ऐसा ही कुछ गौर साथ होना बताया जा रहा है।गरियाबंद जिले का वन विभाग फिर एक बार सुर्खियों में है और इसबार मामला वन्य जीवों की सुरक्षा साथ ही उनके मृत्यु पर उनके अंतिम संस्कार से जुड़ा हुआ है जो वन विभाग द्वारा अपनी निगरानी में किया जाने वाला अनिवार्य कार्य होता है जिसे संपादित करना विभाग के लिए नितांत आवश्यक होता है जिससे वन्य जीवों के अवशेषों को लेकर किसी भी तरीके की तस्करी या वन्य जीवों के शव मिलने पर उसकी मौत स्वाभाविक है या हत्या जैसी वजहों की पुष्टि के बाद उसके शव का अंतिम संस्कार करना विभाग की तरफ से किया जाने वाला अनिवार्य कार्य होता है जिसे विभाग द्वारा किया ही जाना है जो जरूरी भी है लेकिन गरियाबंद वन मण्डल के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा लापरवाही बरती जा रही है और गरियाबंद वन मण्डल के पांडुका के जंगल मे एक मृत मिले गौर के शव प्राप्त होने की सूचना के बाद भी विभाग द्वारा न तो गौर की मौत की वजहों को लेकर कोई जानकारी जुटाने की कोशिश की गई और गौर का शव धीरे धीरे स्वयं ही गलकर सड़कर नष्ट होता रहा और विभाग फिर भी ध्यान नहीं दिया।

आपसी लड़ाई में हुई गौर की दर्दनाक मौत,लोगों ने वन विभाग पर लगाए लापरवाही के आरोप

वन परिक्षेत्र पाण्डुका के आमझर के जंगल मे एक मृत गौर मिला है। इस गौर की मौत को ग्रामीणों द्वारा बताया जा रहा हैं कि इनकी आपस मे लड़ाई हुई थी जिसके शरीर सहित घुटनो पर गंभीर चोंट के निशान थे जिसके चलते उसकी दर्दनाक मौत हुई हैं।जिसकी खबर ग्रामीणों द्वारा वन विभाग को दी गई थी लेकिन विभाग ने कोई निगरानी नही की। स्थानीय लोगों ने कहा कि गौर की मृत्यु वन विभाग की लापरवाही के कारण हुई है और उन्होंने कहा कि इसे मौत के शिकंजे में फंसे एक जानवर का विषय न समझा जाए, यह वन विभाग की असंवेदनशील तथा क्रूर मानसिकता का प्रमाण है।
लोगों ने कहा कि घायल बेजूबान को अगर ईलाज मिलता तो वह शायद बच जाता, मगर उसे बचाने की कोशिश नहीं की गई।
लोग ने आरोप लगाया कि जंगलों को बचाना तो दूर इस विभाग ने जंगलों को और अधिक नुकसान पहुंचाया है। न ही यह विभाग जंगल बचा पा रहा है और न ही जंगली जीव।

वन परिक्षेत्र पाण्डुका के जंगल मे मिला मृत गौर का शव

जैसा कि बताया जा रहा है कि गरियाबंद वन मण्डल के पाण्डुका के जंगल मे मृत गौर के शव मिलने की सूचना प्राप्त हुई और यह सूचना वन विभाग के अधिकारियों तक भी पहुंची लेकिन विभाग द्वारा सूचना मिलने के बाद भी न तो मृत गौर के संबंध में उसकी मृत्यु के करणों को लेकर ही कोई जिज्ञासा दिखाई गई  शव खुद ही सड़ गलकर वहीं पड़ा रहा जैसी सूचना मिल रही है। जबकि वन विभाग का सबसे पहला कर्तव्य है वह जीवों की सुरक्षा और वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए ही वन अधिकारियों सहित वन विभाग के कर्मचारियों की तैनाती की जाती है उनकी नियुक्ति की जाती है और इस मामले में गरियाबंद वन मण्डल के उदासीन रवैये को लेकर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि मामला निश्चित रूप से गम्भीर है और वन्य जीवों की सुरक्षा से जुड़ा है और उनके अवशेषों की सुरक्षा से भी जुड़ा हैं और जिसकी जिम्मेदारी वन विभाग की है और जिसने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।

निर्माण में ही रहता है वन विभाग के अधिकारियों का ध्यान

गरियाबंद वन मण्डल के अधिकारियों का केवल एक सूत्रीय अभियान है कि ज्यादा से ज्यादा निर्माण कार्य वन विभाग के अंतर्गत वह करें और जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा आय अर्जन करने का मौका मिल सके और वह खुद को धनवान बनाते रहें। वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर सजग रहने की बजाए विभाग निर्माण कार्यों की स्वीकृति साथ उसके खुद संपादन को लेकर ज्यादा व्यस्त और तत्तपर रहता है अधिकारी कर्मचारी तत्तपर रहते हैं यह भी लगातार देखने और सुनने को मिलता है,जबकि वन विभाग को वन्य प्राणियों की सुरक्षा पर सबसे पहले ध्यान देना चाहिए बाद में निर्माण कार्यों से खुद को धनवान बनाने की कोशिश उन्हें करनी चाहिए।

जंगल से भटक कर गांव पहुंचे चीतल की तालाब में डूबने से हुई मौत

बता दे कि गरियाबंद वन मंडल अंर्तगत देवभोग वन परिक्षेत्र के ग्राम केकरजोर में मंगलवार को दोपहर के एक वन्य प्राणी चीतल अचानक जंगल से भटक कर केकरजोर के तालाब में आवारा कुत्ते के डर से गहरी पानी के अंदर जा घुसा जिसे देखने के  लिए आसपास के ग्रामीणों की भीड़ लग गई चीतल को तालाब के बीचों-बीच पानी में लगभग 04 घंटे तक तैरता रहा,जिसे ग्रामीणों के द्वारा निकाल कर सुरक्षित वन विभाग को सौंपा गया था पर आज रात देवभोग वन कैम्पस में तड़प-तड़पकर मौत हो गई ,
वन विभाग एस डी ओ राजेंद्र सोरी ने मीडिया से चर्चा के दौरान बताया कि ढेड़ साल का चीतल तालाब में घुस गया था जिसे सुरक्षित निकाल उपचार किया जा रहा था जिसकी रात में मौत हो गई आज बुधवार को सुबह पोस्टमार्टम किया गया है उसके बाद उसका संस्कार कर दिया गया है बता दे कि चारा-पानी की तलाश में जंगल से भटक कर गांव के करीब पहुंचे एक चीतल पर आवारा कुत्तों की नजर पड़ गई।उसे अपना शिकार बनाने घेर लिया और हमला कर दिया। कुत्तों से बचने चीतल पानी तालाब में कूद गया।पर बाहर नहीं निकल सका। तालाब के पानी में डूबने से उसकी मौत हो गई।ग्रामीणों के अनुसार जंगल से भटक कर यह चीतल गांव के आस-पास घूमते देखा गया था। तभी गांव के आवारा कुत्तों की नजर उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे दौड़ाना शुरू कर दिया। जान बचाने के लिए चीतल यहां वहां भागता रहा और जब बचने की कोई राह न दिखी तो तालाब में छलांग लगा दिया। इससे वह कुत्तों से तो बच गया,लेकिन तालाब गहरा होने के कारण वह बाहर नहीं निकल सका। डूबने से उसकी मौत हो गई। इस क्षेत्र के घनघोर वन्य क्षेत्र में काफी संख्या में वन्य प्राणियों का बसेरा है। इनकी सुरक्षा के ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे और ऐसी घटनाएं हो रही।साथ ही जंगलो की लगातार कटाई से जंगली जानवरों का प्राकृतिक आवास भी सिमटता जा रहा है। इससे वन्य प्राणी एक ओर वे भोजन और आवास के साथ अपनी सुरक्षा के लिए भटक रहे तो पीने के पानी के लिए विवश होकर रिहायशी क्षेत्र में आना पड़ता है। ऐसी दशा में वे कभी दुर्घटना तो कभी कुत्तों का शिकार हो जाते हैं। कई बार जागरूक ग्रामीण उन्हें बचाने का प्रयास भी करते हैं पर हमले में लहुलुहान हो जाने के कारण काफी देर हो चुकी होती है। ऐसे में गांव की वन समितियों की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में आती है।

माह भर पहले हुई थी तेन्दुआ की मौत

वन जीवों की मौत का सिलसिला यंही नही रुका हैं ज्ञात हो कि एक माह पूर्व गरियाबंद जिला मुख्यालय से  4 किमी की दूरी पर मौजुद भिलाई गांव में 6 वर्षीय नर तेंदुआ का शव मिला था तेंदुए की मौत की खबर पाकर मौके पर वन विभाग की टीम पहुंच गई थी जिसमे एसडीओ मनोज चन्द्राकर ने कहा था कि यह प्रथम दृष्टया  नेचुरल डेथ है,ऐसा लगता है कि कुछ खाने पीने में गड़बड़ी के वजह से इसकी मौत हुई होगी? तीन सदस्यी चिकित्सको के दल से पोस्टमार्टम कराया गया था रिपोर्ट के बाद ही सही कारण की जानकारी लगने की बात कही गई थी कहा जा रहा था कि पिछले कुछ दिनों से पाथर मोहदा व भिलाई इलाके में यह तेंदुआ दिख रहा था।आपको बता दे कि बीते एक पखवाड़े से गरियाबंद जिला मुख्यालय में दो शावकों के साथ लगातार रिहायसी इलाके में मादा तेंदुआ विचरण कर रही थी।इस तेंदुए के दहशत से मुख्यालय के सरहदी इलाके में शाम ढलते ही सन्नाटा पसर जाता है।मुख्यालय के आसपास गांव में गरियाबंद परीक्षेत्र में लगातार तेंदुए के भ्रमण व उसके आतंक के किस्से आम हो गए थे।जानकारों के मूताबिक वनों की घटती संख्या इसकी मुख्य वजह मानी जा रही थी।

छत्तीसगढ़ में कुएं में गिरकर हो रही जंगली जानवरों की मौत, जानें- क्या है कारण

छत्तीसगढ़ में जंगली जानवरों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं।वन्य प्रेमी नितिन सिंघवी ने सैकड़ों वन्य प्राणियों की मौत कुएं में गिरकर होने का दावा किया है।
छत्तीसगढ़ में कई वन्य प्राणियों के लिए जंगल अनुकूल है। हर क्षेत्र में तरह-तरह के जंगली जानवर हैं।लेकिन जंगली जानवरों की सुरक्षा पर पहली बार सवाल उठाया गया है. वन्य प्रेमी नितिन सिंघवी ने सैकड़ों वन्य प्राणियों की मौत कुएं में गिरकर होने का दावा किया है और इसके लिए वन विभाग को जिम्मेदार ठहराया है। दरअसल वन क्षेत्रों और इसके आस-पास खुले-सूखे कुओं में दुर्घटनावश वन्य प्राणियों जैसे- तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा, हाथी, लोमड़ी आदि की गिरने से मौत हो रही है।नितिन सिंघवी का कहना है कि खुले कुओं में गिरने से वन्य प्राणियों के चोटिल होने से रोकने के लिए कुएं के चारों ओर उचित ऊंचाई की दीवार बनाने या जाली से ढकने के साथ-साथ सूखे कुओं को बंद करने के भारत सरकार और छत्तीसगढ़ शासन के निर्देशों की वन विभाग अनदेखी कर उल्लंघन कर रहा है।इसलिए वन मंत्री को पत्र लिख कर कार्रवाई की मांग की गई है।

27 जनवरी को हुई थी तेंदुए की मौत


हाल ही में 27 जनवरी को कांकेर वन मंडल में ऐसे ही एक खुले कुएं में गिरकर एक तेंदुए की मौत हो गई। इस खुले कुएं के चारों ओर उचित ऊंचाई की दीवार नहीं बनाई गई थी।अगर जागरूकता बरती गई होती तो तेंदुए की मौत नहीं होती। सिंघवी ने आरोप लगाया कि वन विभाग को खुलासा करना चाहिए कि किस बात का अभिमत उन्हें अधीनस्थों से चाहिए? वन विभाग को नहीं मालूम कि राज्य निर्माण पश्चात सैकड़ों वन्य जीव खुले कुएं में गिर कर मर गए हैं।

पिछले साल केंद्र सरकार ने दिए थे कार्रवाई के निर्देश

पूरे मामले की जानकारी देते हुए शिकायतकर्ता नितिन सिंघवी ने बताया कि 2017 में सूखे कुएं में गिरने से एक हाथी की मौत हो गई थी।इसके बाद 2021 में सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार को पत्र लिखकर कर खुले कुओं को बंद करवाने की मांग की गई थी। शिकायत पर भारत सरकार ने 27 सितंबर 2021 को छत्तीसगढ़ शासन के सचिव, वन विभाग को पत्र लिखकर मामले में जांच कर आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।

वन विभाग की तरफ से अभी नहीं मिला है कोई जवाब

उन्होंने बताया कि भारत सरकार और छत्तीसगढ़ शासन के निर्देशों के अनुसार प्रदेश भर में वन क्षेत्रों और उसके आसपास खुले हुए कुओं, जिनमें वन्य प्राणियों के गिरने की संभावना हो, उसके चारों तरफ ऊंची दीवार और जाली से ढका जाना चाहिए. लेकिन सरकार के आदेश को नजरंदाज किया जा रहा है।इसलिए नितिन सिंघवी ने पूरे प्रकरण में छत्तीसगढ़ के वन मंत्री से शिकायत की है।फिलहाल इस मामले वन विभाग की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है।

छत्तीसगढ़ में एक साल में छह से अधिक वन्यजीवों की कुएं में गिरने से मौत गर्मी शुरू होते ही पानी पीने के लिए जंगल से निकलते हैं बाहर, खुले कुएं में अक्सर गिरते हैं वन्यजीव

गौरतलब हो कि  छत्तीसगढ़ के जंगल वन्यजीवों के लिए अनुकूल नहीं रहा हैं,क्योंकि जंगल में खुले कुओं में गिरकर वन्यजीवों की मौत हो रही है।और वन विभाग वन एवम वन्य जीवों को छोड़कर अतिरिक्त धन कमाने की लालच में सिर्फ निर्माण एजेंसी बनकर रह गया हैं।वन्य जीवों की सुरक्षा के दृष्टिगत वन विभाग कुओं को ढंकने के लिए विशेष योजना अभी तक शुरू नहीं की है। इस कारण गर्मी शुरू होते ही वन्यजीव पानी पीने के लिए बाहर निकलते हैं और कुएं में गिरने से उनकी मौत हो रही है।प्रदेश में छह से अधिक वन्यजीवों की कुएं में गिरने से हर साल मौत हो चुकी है।

वन विभाग को खुले कुओं में जाली लगाने का निर्देश

वन्यजीवों की मौत का जिम्मेदार वन विभाग को बताए हुए वन्यजीव प्रेमी ने सचिव, पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार को पत्र लिखा था। भारत सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए वन विभाग को प्रदेश भर के जंगलों में खुले कुओं में जगत बनाने तथा जाली के लगान के लिए निर्देशित किया है। जिससे कुएं में गिरकर वन्यजीवों की हो रही मौत पर अंकुश लगाया जा सके।

वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने लिखा था पत्र

गौरतलब है कि प्रदेश के जंगलों में खुले कुओं में गिरकर लकड़बग्धा,भेड़िया,हाथी,भालू, तेंदुआ,हिरण आदि वन्यजीवों की मौत हो रही है तो वहीं प्रति वर्ष एक दर्जन से अधिक वन्यजीव घायल हो रहे हैं,क्योंकि जंगलों के अंदर के ज्यादातर कुएं सपाट हो गए हैं। इसको लेकर वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार को पत्र लिखकर कर खुले कुओं को बंद करवाने की मांग की गई थी। शिकायत पर भारत सरकार ने 22 फरवरी, 2022 को छत्तीसगढ़ शासन के सचिव, वन विभाग को पत्र लिखकर मामले में जांच कर आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

वन विभाग को खुले कुओं को करना है चिह्नित

सूत्रोें की मानें तो कुएं में गिरकर वन्यजीव की मौत रोकने के लिए वन विभाग को ऐसे गांव को चिह्नित करना है, जहां वन्यजीवों की आवाजाही होती है। जिन खेतों में कुएं खुले हैं, उनके मालिकों को सुरक्षा दीवार बनाकर जाली लगानी है। ऐसा नहीं करने और कुएं में वन्यजीव के गिरने से मौत होने पर प्रथम दृष्टया कुएं के मालिक की लापरवाही मानकर भारतीय दंड संहिता की धारा 379, 428, 429 तथ वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत 39, 51 तथा पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम के तहत कठोर कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन वन विभाग सिर्फ खानापूर्ति के नाम पर कार्रवाई कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।

बजट का करना चाहिए प्रवधान

छत्तीसगढ़ में खुले कुएं और सूखे कुएं में गिरकर वन्यजीवों की मौत हो रही है। इसके लिए तत्काल बजट का प्रविधान कर इस पर कार्रवाई की जानी चाहिए।

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