कैम्पा मद की मची हैं गरियाबंद वन मंडल में खुली लूट बिना बोर्ड लगाए वन विभाग करवा रहा हैं सड़क निर्माण कार्य।

ठेकेदार सड़क निर्माण में बरत रहे लापरवाही,मुरूम की जगह खेतों की मिट्टी का हो रहा उपयोग लाखों की लागत से बन रही सड़क निर्माण में ठेकेदार और वन परिक्षेत्र अधिकारी जमकर काट रहे हैं चांदी


पाण्डुका/गरियाबंद(अमर स्तम्भ)। सच और झूठ को लेकर अक्सर यह कहावत सुनने को मिलती है कि जंगल में मोर नाचा, किसने देखा?इस कहावत से वनमंडल गरियाबंद भी प्रभावित है।ज्ञात हो कि गरियाबंद जिला के वनपरिक्षेत्र पाण्डुका अंतर्गत कैम्पा मद से करीब तेविस लाख अठत्तर हजार सात सौ सड़सठ रुपए की लागत से 1.5कि.मी.की आमझर से गातादादर तक डब्लू बी एम सड़क निर्माण कार्य स्वीकृत हुआ है जिसकी ठेकेदार कुमारी पूजा सिंन्हा धमतरी निवासी को दिया गया हैं जिसका निर्माण कार्य प्रारंभ भी कर दिया गया हैं ज्ञात हो कि वन विभाग के रेंजर और ठेकेदार की सांठगांठ से लाखों की लागत से बन रही इस सड़क निर्माण में ठेकेदार और वन परिक्षेत्र अधिकारी जमकर चांदी काट रहे है। निर्माण एंजेसी व ठेकेदार नियमों को ताक पर रखकर गुणवक्ताहीन सड़क का निर्माण कर रहे है।इतना ही नही अधिक पैसा कमाने की लालच में चोरी की मुरम का उपयोग शासन की रॉयल्टी की भी चोरी की जा रही हैं। सड़क में बेस के नाम पर खेतों की चिकनी मिट्टी डाल रहे है। जबकि बेस में दानेदार मुरूम का उपयोग किया जाना चाहिए। ताकि मजबूती से सड़क का निर्माण हो सके।लेकिन इस सड़क निर्माण में वन परिक्षेत्र अधिकारी की सांठगांठ और मौन स्वीकृति कई सवालों को जन्म दे रहा है।विभाग के अधिकारी मॉनिटरीग के नाम पर केवल औपचारिकता निभा रहे है।फलस्वरूप ठेकेदार जैसे मन कर रहा है वैसे सड़क का निर्माण कर रहे है। इधर ग्रामीण भी इस मामले में जानकारी के अभाव में शांत बैठे हुए है।लाखों की लागत से बन रही इस सड़क निर्माण में ठेकेदार और अधिकारी जमकर चाँदी  काट रहे हैं।

मुरम की जगह मिट्टी का उपयोग

ज्ञात हो कि पहले सड़क उबड़ खाबड़ होने की वजह से ग्रामीणों को आवाजाही में बेहद परेशानी होती रही है। ग्रामीणों की कई बार शासन प्रशासन व नेताओं से मांग की गई जिसके बाद यह पक्की सड़क की सौगात मिली है। इस पर अब ठेकेदार अधिक कमाई के चक्कर में मुरम की जगह मिट्टी का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहा है।और शासन को रॉयल्टी के रूप में मिलने बाले राजस्व का नुकसान भी पहुंचा रहा हैं आमझर गांव के ही किसान बीजो कमार को खेत बनाने के लालच देकर उसके खेत से जेसीबी से मिट्टी खनन कर रोजाना ट्रेक्टर से परिवहन कर 150से200 ट्रिप मिट्टी का अबैध परिवहन किया जा रहा हैं वन विभाग द्वारा उक्त सड़क निर्माण में किसी तरह की देख रेख नही की जा रही हैं सारा कार्य ठेकेदार के द्वारा ही किया जा रहा हैं।इसके कारण सड़क ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएगी। ऐसे में सड़क भी जल्द खराब हो जाएगी।

सूचना पटल तक नही लगाया

सूचना बोर्ड तक नही लगाएं है
विभाग के अधिकारीयों द्वारा किस तरह लापरवाही व मनमानी की जा रही है। इससे निर्माण हो रहे सड़क की गुणवक्ता से ही लगाया जा सकता है। जबकि निर्माण संबधी किसी तरह का सूचना बोर्ड तक नहीं लगाया गया है।सड़क की लागत तेविस लाख अठत्तर हजार सात सौ सड़सठ रुपए बताई जा रही है। सूचना बोर्ड नहीं होने से ग्रामीणों को निर्माण संबधी जानकारी नहीं हो रही है।

कैंपा मद में हर साल करोडों के होते हैं काम लेकिन सोशल ऑडिट नहीं कराते वन अफसर


वन मंडलों में कैंपा मद से करोड़ों के कार्य कराए जाते हैं। गरियाबंद जिले के वन मंडलों में हर साल  करोड़ के काम मंजूर होते हैं, लेकिन वन विभाग के अधिकारी सोशल आडिट ही नहीं कराते। मनरेगा की तरह कैंपा मद से राजस्व जमीन पर काम कराने पर सोशल आडिट का प्रावधान है। इसके लिए पंचायतों में समिति बनाने के साथ ही योजना की जानकारी देने का प्रावधान है। कैंपा (वनारोपण निधि प्रबंधन व योजना प्राधिकरण) के तहत क्षतिपूरक वनीकरण,जलग्रहण प्रबंधन क्षेत्र का उपचार,वन्य जीव प्रबंधन,वनों में आग लगने से रोकने के उपाय,वन में मृदा व आर्द्रता संरक्षण के कार्य कराए जाते हैं। इसके तहत नालों में स्टापडेम,बोल्डर चेक डेम,तालाब का निर्माण,पौधरोपण,फेंसिंग समेत अन्य कार्य होते हैं।लेकिन जनमानस को इसकी जानकारी ना और और कैम्पा मद को लूट सके इस बजह से वन विभाग द्वारा एक भी स्थान पर सूचना पटल ही नहीं लगाया जाताहै। गांव में डब्लू बी एम रोड,तालाब में भी कोई सूचना पटल और गांव में मजदूरी भुगतान को लेकर कोई सूचना बोर्ड नहीं बनाया जाता है।

सोशल आडिट कराने यह है प्रावधान

ग्राम सभा की बैठक लेकर जानकारी देना व 3 सदस्यों का चयन।

कार्य की लागत,मापदंड,मजदूरी भुगतान की दर पढ़कर सुनाना
मजदूरी भुगतान की जानकारी महत्वपूर्ण स्थलों पर चस्पा करना


मजदूरों का नाम व भुगतान ग्राम सभा में पढ़कर सुनाना।

पूर्ण किए गए कार्यों की मात्रा व मानकों का परीक्षण कराना।

सरपंच ग्रामसभा लेकर मूल्यांकन प्रतिवेदन डीएफओ को प्रस्तुत करें।

परियोजना के लिए प्रोजेक्ट अधिकारी की नियुक्ति डीएफओ करेंगे, डिप्टी रेंजर या परिसर रक्षक के साथ ही अलग से अधिकारी भी हो सकता है।लेकिन जिला गरियाबंद में वन विभाग के अधिकारियों द्वारा सोशल आडिट नही करवाया जाता हैं क्योंकि सोशल आडिट करवाने से वन विभाग की गोपनीयता भंग होगी और इन्हें कैम्पा मद की राशि को लूटने का मौका नही मिलेगा।

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