राजनीत का रूप
राजनीति का रूप निराला!
पड़ी किसी के जीत की माला!!
किसी के माथे हार का टीका!
गम से मुंह में लगा मुसीका!!
राजनीति में सगा न कोई!
राजनीति से बचा न कोई!!
अपने भी हो जाएं पराये!
कौन कंहाँ पर गिर जाये!!
राजनीति की कुर्सी खातिर!
भोले भी बन जाते शातिर!!
राजनीति से बचना भैया!
राजनीत है भूल भुलैया!!
~~घनश्याम सिंह~~
वरिष्ठ पत्रकार/त्रिभाषी साहित्यकार