प्रेम गीत
तुम्हारा कोई भी सानी नहीं है,
समंदर है दिल में पानी नहीं है।
सितारों में मैंने जगह है बनाई,
बनाया अंधेरों ने घर का जमाई।
किरन जिंदगी की कहीं खो गई है,
सुहानी सुबह अब आनी नहीं है।।1।।
पड़ी हैं अधूरी अजानी कथाएं,
अभागी अहिल्या की कितनी शिलाएं।
गए राम मुझको छुआ भी नहीं,
कि पत्थर में सांसें चलानी नहीं हैं।।2।।
प्रणय भावनाएं हैं अर्पण तुम्हीं को,
तपित आंसुओं का है तर्पण तुम्हीं को।
मिलूंगा तुम्हें मैं किसी भी जनम में,
कभी हार मैंने मानी नहीं है।।3।।
गए श्याम कहकर आऊंगा इक दिन,
तुम्हें नेह लीला दिखाऊंगा इक दिन।
राधा सी पावन भक्ति कहां है,
कि मीरा के जैसी दीवानी नहीं है।।4।।
— *पंकज शर्मा बरेली*