यह देश बड़ा ही पावन है
यह धरती का रखवाला है ,
सीता ,गीता , सलमा में इसने
अंतर नहीं निकाला है !
उत्कर्षों का है हर्ष और
त्योहारों का उजियाला है ,
सुरभित पूजन की थाल कहीं
चल रहा पवन मतवाला है !
गंगा के हर कण में बसता
शिवशंकर डमरू वाला है ,
ये भगीरथी भी पावन है
संगम का छलका प्याला है !
हैं भक्त और भगवान जहां
सब बंधे एक ही माला है ,
विश्वासों की शहनाई मैं
हर बाला जलती ज्वाला है !
कल-कल गिरते झरने कितने
गायों के पीछे ग्वाला है ,
भारत है सोने की चिड़िया
यह अदभुत और निराला है !
-उदीयमान साहित्यकार अंजली मिश्रा(देवरिया)
सम्पादन~घनश्याम सिंह
समाचार संपादक दैनिक अमर स्तम्भ कानपुर