यू सबकुछ बोल देना
कला नही हादसा होता हैं।
बड़ी खुदगर्ज़ हैं दुनिया
यँहा कौन किसी का होता हैं।
सलीके से चुरा लेते है कुछ लोग बातें
कुछ लोगो को बातों का
ज़रा न सलीका होता हैं।
अदाओं से मार दे मेहबूब को अपने
अब कँहा गोया
ऐसा मेहबूब नज़ा होता हैं।
बला की नज़र से
बचाके रखों अपने दिल के आख़री कोने को,
यँहा हर इंसा बड़ा नासूर
नज़र-अंदाज़ लिए होता हैं।
डिम्पल राकेश तिवारी
अयोध्या, उत्तर प्रदेश