युग चरित्र व राष्ट्रीय एकता के निर्माण के सूत्रधार है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

अयोध्या वासी श्री मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म अयोध्या के महाराज राजा दशरथ के पुत्र के रूप में चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि में हुआ ! इस दिन को हम रामनवमी के रूप में उत्साह के साथ मनाते हैं , हिंदू धर्म में रामनवमी का विशेष महत्व है। नव संवत्सर के प्रारंभ के साथ साथ चैत्र नवरात्र में होने के कारण यह और भी महत्वपूर्ण तिथि हो जाती है जिसे धूमधाम से पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है।
पौराणिक धार्मिक कथाओं व मान्यताओं के अनुसार श्री राम का जन्म त्रेता युग के समय राक्षसों एवम अन्य दुष्ट शक्तियों से हमारे ऋषि-मुनियों और धरती को मुक्त करा कर सुख, शांति एवम समृद्ध राज्य की नींव रखने हेतु भगवान विष्णु अवतार के रूप में श्री राम का जन्म हुआ। महर्षि बाल्मीकि ने रामायण एवं गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस के द्वारा श्री राम प्रभु की स्वर्णिम गाथा का वर्णन किया गया है।
श्री राम के व्यक्तित्व के बारे में शब्दों से वर्णन नहीं किया जा सकता क्योंकि श्री राम प्रभु और उनका पूरा जीवन ही त्याग, धैर्य ,सहनशीलता संयम ,मर्यादा और अपने दृढ़ संकल्प के परिचायक है। विषम परिस्थितियां पड़ने पर भी वह नीति सम्मत रहे एवं सत्य के लिए निर्भीक होकर धर्म के रास्ते पर चलते रहे। इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम राम का यदि अंश मात्र भी हमारी युवा पीढ़ी या हमारे जीवन में हम राम का अनुसरण करते हैं तो यथार्थ है की एक स्वर्णिम युग चरित्र का निर्माण होने एवं हिंदू राष्ट्र का एक नवीन अध्याय स्थापित होने से हमें कोई नहीं रोक सकता। हमें हमारी राम में पूर्ण आस्था रखनी चाहिए। यदि देखा जाए तो हमारे सर्वगुण संपन्न राम ही हमारे सूत्रधार भी है ,जीवन में जब भी कोई विपरीत परिस्थिति आती है तो हम हमारे धार्मिक ग्रंथ रामायण का ही अनुसरण करते हैं जो कि राम के जीवन पर ही आधारित है ।यह हमारे जीवन की आधारशिला बनकर हमारा मार्गदर्शन करती है।
राम के कर्तव्यनिष्ठ होने एवम वचनबद्ध होने के लिए , रामायण में कहा गया है।
।।रघुकुल रीत सदा चली आई ,
प्राण जाए पर वचन ना जाए।।
इन पंक्तियों से श्री राम का जीवन स्पष्ट है कि उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में अपनी सभी भौतिक सुख साधन एवम खुशी का त्याग सिर्फ रघुकुल की नींव रखने के लिए किया। राम से बढ़कर तपस्वी शायद ही पृथ्वी पर कोई दूसरा हुआ होगा। उन्होंने 14 वर्ष का वनवास अपने पिता के द्वारा माता को दिए गए वचन को निभाने हेतु ,खुशी से स्वीकार किया 14 वर्ष के वनवास की इस भूमिका में राम ने वन वन घूम कर श्रेष्ठतम ऋषि-मुनियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के साथ-साथ इस पृथ्वी पर विचर रहे राक्षसों व दुष्ट शक्तियों का अंत कर अपने जन्म को सार्थक किया। ऐसे तपस्वी श्री राजा राम प्रभु का हैं अनुसरण करना चाहिए । श्री राम के कई स्वरूप है जो इनके व्यक्तित्व को एक अच्छे राष्ट्र के निर्माण की सूत्रधार होने के परिचायक के रूप में हमें प्रेरित करते हैं। अपने कुशल प्रबंधन द्वारा लंका चढ़ाई हेतु मार्गदर्शन के साथ अपने संरक्षण में सेतु की स्थापना की! अपनी सेना में सभी को समान रूप से सम्मान देने के साथ-साथ सभी से मित्रवत व्यवहार करना। अपनी प्रजा के लिए सदैव समर्पित रहना ही सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । जब राजा भरत ने श्रीराम से प्रजा से कर वसूलने के लिए पूछा तब उन्होंने बड़ी ही सहजता से राजा भरत से कहा राजा को सूर्य के समान होना चाहिए जो कि अपनी प्रजा के लिए खुशी का कारण बने अर्थात राजा को अपनी प्रजा से कर वसूलने में बिल्कुल भी संकोच नहीं करना चाहिए परंतु राजा को यह भी याद रखना चाहिए कि उस कर से प्रजा के लिए कल्याणकारी कार्य किए जाते हैं तो प्रजा स्वयं ही सुखी व संपन्न होती है । इस प्रकार एक सफल राजा होने का भी उन्होंने राजा भरत को मार्गदर्शन दिया। भगवान श्री राम की सेना में मानव , दानव एवं पशु पक्षी सभी के साथ समान व्यवहार व स्थान होने के साथ-साथ सभी को सम्मान प्रेम व स्नेह भी दिया करते थे, इसीलिए उन्हें करुणा और दया का सागर भी कहा गया है। महर्षि बाल्मीकि ने बालकांड में कहां है कि राजा राम की नगरी में कोई भी नास्तिक नहीं था। यहां तक कि राजाराम में शत्रुओं के प्रति भी शत्रुभाव नहीं था। रावण के वध के बाद भी उन्होंने उसका अंतिम संस्कार पूरे रीति रिवाज के साथ एक शूरवीर योद्धा के रूप में ही करवाया और रावण को बह पूरा सम्मान दिया जिसका वह पात्र था । राजा राम की यही नीतियां उनको विशाल हृदय का स्वामी बनाती है।
राजा राम के लक्ष्मण से कहे वाक्य ! ” है लक्ष्मण मुझे सोने की लंका मैं बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है ” यह राम के अपनी जननी और जन्मभूमि के प्रति कृतज्ञ होने का उदाहरण है। भगवान श्री राम का यह कथन हमें हमारी मातृभूमि के प्रति प्रेम की भावना एवं समर्पित रहने की प्रेरणा देता है।हम कह सकते हैं हमारे भारतीय समाज में , एक श्रेष्ठतम उदाहरण हमारे श्री मर्यादा पुरुषोत्तम राम ही है जो मर्यादा, सहनशीलता,
धैर्य , श्रेष्ठ आदर्श ,विवेक, नीति कुशल, न्याय प्रिय, प्रजा के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम ही है श्री राम ।
श्री राम हिंदुत्व और भारत के कण-कण में रमे हुए हैं, उनका पावन चरित्र, सत्ता समाज जातिवाद से कहीं ऊपर है तभी तो श्री राम प्रभु ने शबरी के झूठे बेर को भी सहजता से स्वीकार किया यह गुण भक्तों से प्रेम के रूप में भक्ति का भाव स्पष्ट करता है । श्री राम के इन गुणों का अनुसरण हमें सदैव ही करना चाहिए हम कह सकते हैं की “हमारे युग चरित्र निर्माण में ” एवं ” राष्ट्र की एकता के निर्माण में ” सूत्रधार है श्री मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।

प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
महाराज बाड़ा ग्वालियर मध्य प्रदेश

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