नव सामंतवादी व्यवस्था की ओर बढ़ता भारत।

मुंशी प्रेमचंद जी की लगभग 86 साल पहले 15 जनवरी 1934 को छपी एक मशहूर टिप्पणी है। “सांप्रदायिकता और संस्कृति ” वे इसमें रेखांकित करते हैं- सांप्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है, उसे अपने असली रूप में निकलते शायद लज्जा आती है, इसीलिए संस्कृति का को ओढ़ कर आती है । देश में नफरतों की आंधी चल रही है। सांप्रदायिक हिंसा का दौर चल रहा है। समूचा जनमानस नफरत की आग में झुलस रहा है। पिछले एक महीने में जिस तरह देश में सांप्रदायिक हिंसा की बाढ़ सी आई है, यह अचानक नहीं हुआ। यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत लंबी साजिश का परिणाम है। यह तो उसी दिन तय हो गया था जब 2014 में फासीवादी ताकतें सत्ता में काबिज होने में सफल हो गई थी। वह भारतीय लोकतंत्र का सबसे मनहूस दिन था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो कि हिटलर और मुसोलिनी की फासीवादी विचारधारा से लैस है, भारत को बर्बाद करने पर आमादा है। पिछली पूरी सदी संघ के फासीवादी मंसूबों की घटनाओं से भरी हुई है। लेकिन देश के लोकतंत्र की मजबूत जड़ें उन्हें कामयाब होने में बाधक बनी हुई थी। लंबे विचार मंथन और लंबी पराजय को देखते हुए उन्होंने अपनी रणनीति को बदला और पूंजी वादियों का साथ किया। फासीवादी पूंजीवादी गठबंधन एक बड़ी ताकत के रूप में खड़ा हुआ।एक मजबूत संगठन और पूंजी के साधनों के सहारे देश के युवाओं को गुमराह किया गया, उन्हें गलत इतिहास पढ़ाया और बताया गया। इसमें तमाम शिशु मंदिर और सरस्वती विद्या मंदिरों एवं हजारों प्रकाशनों पर पैसा पानी की तरह बहाया गया। अपने लोगों को लोकतंत्र की प्रहरी संस्थाओं में बैठाया गया। सूचना एवं प्रसार की हाई टेक्नालॉजी जो पूंजी के हाथों में है उसका दुरुपयोग झूठ को सच के रूप में स्थापित करने में किया गया। और अपने निश्चित लक्ष्य के लिए काम करना शुरू किया। अब सोचने वाला विषय है कि आखिर कोई अपने ही देश और समाज को तबाह और बर्बाद क्यों करना चाहेगा, वह कौन सा लक्ष्य है जिसे हासिल करने के लिए करोड़ों लोगों को मौत के मुंह में झोंक दिया गया है। इस हकीकत से अनजान आमजन नहीं समझ सकता है कि उसे उलझा कर रखा गया है। धार्मिक प्रतीकों राम मंदिर, हनुमान, हिंदू राष्ट्र, हिंदुत्व,गाय जैसे तमाम प्रतीकों से उनको फंसा कर रखा गया। दुनिया के इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी कि जब किसी राजा ने अपनी ही प्रजा को एक दूसरे के खिलाफ युद्ध में झोंक दिया है। अपने ही नागरिकों के बीच विभाजन कर के उनके हाथों में एक दूसरे का कत्ल करने के लिए हथियार थमा दिये हों। अपने ही नागरिकों की चेतना पर हमला किया गया हो। लेकिन भारत में ये हो रहा है। लोग इंसानियत भूल चुके हैं। यह जो संघी गुंडे भगवा पहन कर तलवारे, भाले, बंदूकें और फरसे लेकर चीखते चिल्लाते, नफरती नारे लगाते, उन्मादित हो कर एक दूसरे का कत्ल करने को आमादा है। यह इंसान नहीं हो सकते, यह दरिंदों की फौज है। जो उन्माद में है। उन्हें अच्छा बुरा समझ नहीं आता। सार्वजनिक मंचों से हथियार खरीदने और नरसंहार के लिए ललकारा जा रहा है। खुलेआम एक धर्म विशेष को पीटा जा रहा है उनके घरों को ,पूजा स्थलों को जलाया जा रहा है। उनकी जान तक ले ली जाती है। शासन प्रशासन मूकदर्शक बना देखता रहता है। झूठ का मानस तैयार किया गया है। नागरिकों को झूठ की खुराक और 5पांच किलो राशन देकर उन्हें भिखारी बनाया जा रहा। अभी संघ के शीर्ष नेता ने अखंड भारत बनाने जुमला फेंका। जो सबसे बड़ा झूठ है। अपना देश संभल नहीं रहा और चले हैं अखंड भारत बनाने। जो असंभव है क्योंकि जिस अखंड भारत की मोहन भागवत बात कर रहे हैं उसमें श्री लंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यामार, अफगानिस्तान, नेपाल और तिब्बत के एकीकरण की प्रक्रिया को अंजाम देना होगा। जो फिलहाल करता भविष्य में भी कभी नहीं हो सकता। लेकिन ये झूठ परोसकर आमजन की‌ राष्ट्रवादी भावनाओं को झकझोरने का काम कर दिया गया। जब हम अपने ही देश को खंड खंड करने में जुटे हुए हैं। देश को विभाजन के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। तो हम ऐसे में अखंड भारत की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। लेकिन आम आदमी फर्जी राष्ट्रवाद में उलझ कर अपनी समझ को खो चुका है। कार्रवाई मार्क्स ने धर्म को अफीम बताया था, वह आज परिलक्षित हो रहा है। हम अपने हकोहकूक के लिए बोलने से डरते हैं लेकिन किसी मस्जिद के सामने बहादुर बन जाते हैं। हम तबाही की कगार पर खड़े हैं। उन्मादी भीड़ नरसंहार के लिए तैयार खड़ी है। यह किसके बच्चे हैं ,? यह कौन लोग हैं? जो अपने बच्चों को हत्यारा बनाने पर जुटे हुए हैं। उन्हें आज सत्ता में बैठे फासीवादी लोग अपना लक्ष्य साधने में हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। इन फ़ासिस्टों को सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य से ही मतलब है। लक्ष्य,जो गोलवलकर ने बंच आफ थॉट्स में लिखा है। लक्ष्य, जो सामंतवादी व्यवस्था को स्थापित कर सके। देश की तमाम पूंजी चंद हाथों में सौंप कर बाकी आबादी को गुलाम बनाने का लक्ष्य। बहुत कुछ खत्म हो चुका है देश बर्बादी की कगार पर खड़ा है। लेकिन अभी वक्त है देश को बचाया जा सकता है। इस बर्बादी से देश को बाहर लाया जा सकता है। इसीलिए उठो और उठकर इन फासिस्ट ताकतों के बरखिलाफ जंग का ऐलान करो। वरना आने वाली पीढ़ियां तुम्हारे मुंह पर थूकेंगी।
*डा. राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
एवं विचारक*

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