1997 योजना आयोग ने अपनी सिफारिश मे तत्कालीन सरकार से अपेक्षा की कि उदारीकरण को समुचित ढंग से अगर लागू करना है और उसके निहितार्थ को हासिल करना है तो प्रति वर्ष 10 लाख स्थाई सेवा के पद का विलोप करना , स्वेक्षिक सेवा निवृत्ति के ज़रिये आकर्षक प्रतिफल देकर सेवा से कर्मचारियो को बाहर करना व उनकी जगह पर संविदा व आउट सोर्श के ज़रिये विना सामाजिक सुरक्षा वाले अंश कालिक किंतु शतत अस्थाई प्रकृति के कर्मचारियो के ज़रिये कार्य कराने की ओर बढना चाहिए ,
योजना आयोग की यह सिफारिश संसद के दोनो सदनो मे करतल ध्वनि से विधि और क्रियान्वयन का हिस्सा बन गई , और सिर्फ चन्द बाम पंथी सांसदो के विरोध की आवाज सभी शासक वर्गीय दलो की करतल ध्वनि के नीचे दब कर रह गई ,
उसके परिणाम स्वरूप सेवा ,प्रशासन , राज्य प्रशासन , परिवहन , उत्पादन , शिक्षा ,चिकित्सा , रक्षा सहित सभी ज़गह करीब 15 करोड लोग और उनके पद कब गायब हो गये पता ही न चला ,
जो कुछ बचा तो उसमे संविदा व आउट सोर्श के जरिये कानून विहीन जंगल राज व श्रम ,मेधा का शोषण , ,
गौर करने की बात यह है कि इन्ही दिनो मे हमारे हितो की बडी बडी बातें करने वाले लोग रंग विरंगे रूप मे आकर हमारे सामाजिक और मानसिक पिछडे पन का लाभ उठाकर सत्ता के शीर्ष मे जाकर श्रम की लूट के लिए सरमायेदारो के हितो के कानून बनाकर हमे उजरती गुलामी की ओर ले ज़ाने मे लगे रहे , आज़ हमारे पास न अवसर हैं ,न अधिकार , संविधान का ऊपर वाला पृष्ठ वही है भीतर सब बदल गया ,और जो बचा है उसे तेजी से बदलने का काम जारी है ,
निजीकरण के सवाल पर हम सब सभी राजनीतिक दलो की सहमति क्यो नही देख पा रहे हैं , संविदा ,आउट सोरसिंग के विरुद्ध कोई दल क्यो अपने होठ नही खोलता , रेल ,बैंक ,बीमा,. शिक्षा ,चिकित्सा ,रक्षा , जल ,वायु , ईंधन , खनिज , विजली और सब कुछ कौडी के भाव पूंजी पतियो को बेचा जा रहा है ,और हमारे बीच स्थापित राजनीतिक दल जाति ,जाति ,धर्म _धर्म , उत्तर ,पश्चिम , भाषा , भाषा खेल रहे हैं ,
श्रम की लूट के रास्ते के वे सारे अवरोध जो संविधान मे खडे किये गये थे ज़िन्हे श्रमिको ,कर्मचारियो ने लड़कर हासिल किये थे , वे सब लगभग खत्म हो गये हैं , संविधान प्रदत्त 44 कानून समाप्त कर गुलामी की ओर ले ज़ाने वाली 4 संहिताये सरकार ने संसद के दोनो सदनो मे पारित करवा ली हैं ,उनके लागू होते ही हम 1886 के पहले के दौर मे पहुँच जायेंगे ,जहाँ काम के घंटे असीमित हो जायेगे वैसे उस विधान मे 12 की ही अनिवार्यता प्रदर्शित की गई है और टर्म इमप्लोयमेंट जैसे विधान के ज़रिये सेवा का स्वरूप ही बदल जायेगा कि नियोजन कुछ घंटे ,महीने य वर्ष का होगा किंतु कोई न सेवा नियमावली होगी न कोई वेज़ स्ट्रक्चर ,न सामाजिक सुरक्षा ,
संविदा और आउट सोर्शिंग के विरुद्ध संघर्ष और स्थाई सेवा की मांग के साथ श्रमाधिकारो की रक्षा की लडाई अगर हम सब के एजेंडे का हिस्सा न बनी तो हम आप तो यह नारकीय पीडा झेल ही रहे हैं हमारी आने वाली संताने किस हाल मे होंगी सहज ही हम अंदाजा लगा सकते हैं !
विजय विद्रोही ,
अध्यक्ष
एआईसीसीटीयू ( ऐक्टू )
उत्तर प्रदेश