मैं कवियत्री हूँ, श्रृंगार सजाती हूँ!

मैं कवियत्री हूँ, श्रृंगार सजाती हूँ
सभी रस भाव छंद बंध लिखती हूँ
प्रेम के सभी अनुबंध लिखती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
श्रृंगार सजाती हूँ

मै ही ओज हास्य विभत्स और रस सार लिखती हूँ
विश्व व्यापक सर्वोच्च अभिसार लिखती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
अंलकार सजाती हूँ
मण्डन खण्डन अभिनन्दन में ही रचती हूँ
कृष्णा माधव केशव सा चितरंजन रचती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
शिवात्व सजाती हूँ

दैवित् निमित्त उद्धत ब्रह्मत्व बुनती हूँ
आकाश निमित्त प्राणो के श्वास बुनती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
संसार सजाती हूँ
कोमल समता रमता में ही होती हूँ
प्राणो से भी प्रिय प्रिया ममता होती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
मातृत्व सजाती हूँ

रोली अक्षत दीप मोती ज्योती सी जलती हूँ .
बागो की ठण्डी छाव हूँ पलको पर चलती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
अर्चन सजाती हूँ
लक्मी दुर्गा काली चन्डी शिव को लिखती हूँ
मन के भीगे अहसासो को सत्य मेव लिखती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
सौन्दर्य सजाती हूँ

ईद दीवाली होली कभी गुरुवाणी सी खिलती हूँ
भावो के भीने पोखर में पंकज कभी जलज सी खिलती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
एकत्व सजाती हूँ

दरिया नदिया सागर से जलाभिषेक करती हूँ
देवालयो की आरती में शंख नाद सी बजती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
यह धरा सजाती हूँ
सत्यम शिवम सुन्दरम को होने से गुनती हूँ
पर्वत राज हिमालय सी शिखा सी तन जाती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
बह्माण सजाती हूँ

फूल कलियाँ गुल दरीचों में महकती हूँ
उड़ते परिदों की वाणी सी चहकती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
सुगन्ध सजाती हूँ
कोमल मन की सच्ची भावना भावों में पीरोती हूँदीपों की माला बन जुगुनू सी चमकती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
अंलकार सजाती हूँ

विश्वास आविष्कार चमत्कार सौंदर्य की मूरत हूँ
रत्नो की अभिमाला माणिक मोती सा अभिराम हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
वैभव सजाती हूँ
वाह राह स्वधा स्वाह आह में बहती हूँ
जल बन कर सागर में निर्बाध बहती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
अभिज्ञान सजाती हूँ

वरद बह्माणी सरस्वति की बेटी कहलाती हूँ
श्वेत हँस पर हो विराजित शब्द बहाती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
ज्ञान सजाती हूँ

कभी राम की मीठी वाणी श्याम की बासुरी सी बजती हूँ
गोकुल ब्रजधाम की ध्वनी – स्वर लहर ताल – में बजती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
श्रृंगार सजाती हूँ
मैं ही प्रवाह मत्यु में – सर्वत्र व्याप्त जीवन हूँ
मैं ही अद्भुत अक्षुण अद्वितिया धड़कन हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
शास्वत सत्य सजाती हूँ

प्राण वायु श्वास उच्छवास – मैं ही उतार चढ़ाव हूँ
दुख सुख – दिन रैन – गर्माहट और शीतल ठहराव हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
विस्तार सजाती हूँ
हाँ मैं एक कवियत्री हूँ
संसार सजाती हूँ
हाँ मैं कवियत्री हूँ
श्रृंगार सजाती हूँ

डॉ अलका अरोड़ा
देहरादून, उत्तराखंड

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