*दिनांक_12/5/2022*
*विधा_संस्मरण*
*वीर रस आधारित*
*विषय*
*गर्मी की छुट्टियाॅं*
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आज बचपन के दिन याद आ गए, अपने नयन पटल पर फिर वही शरारतें, मामा जी का गाॅंव, मस्ती भरे वह दिन चलचित्र की तरह दिखाई देने लगे।
गर्मियों के दिनों में बुआ, चाचा- चाची, ताऊ जी ताइ जी, और हम सब भाई बहन एकत्रित हमारे घर में होते थे। हमारे घर में एक बहुत पुराना कुआॅं है, वहीं पर नहाना कपड़े धोना मस्ती करना यह सब दिन भर चलता था।
मेरे आस पडोस की सभी सहेलियाॅं हमारे घर ही आती थी, और दिन भर खूब मौज मस्ती हुआ करती थी।
शाम हो जाने पर छत पर पानी डालना और छत पर ही सब मिलकर सोना इन बातों की मजा ही कुछ और थी।
एक दिन हम सब सहेलियां ऊपर छत पर खेल रही थी, जोर से हवा के झोंके से मेरी सहेली का दुपट्टा दूसरे छत पर चला गया, मैं छत पर चढ़ने का प्रयत्न करने लगी तो सभी सहेलियों ने मुझे मना किया, क्योंकि पहले कवेलू के छत हुआ करते थे, और जो हमारे पड़ोस में मकान बना हुआ था, वह बहुत सालों से बंद था और उसके कवेलू भी कच्चे हो गए थे।
पर मैंने किसी की एक न सुनी, और धीरे-धीरे कवेलू पकड़ते हुए ऊपर छत पर चढ़ गई।
अपनी सहेली का दुपट्टा उसे वापस फेंक कर दे दीया, और आधार लेते हुए जब नीचे उतरने लगीं तो कवेलू और छत कच्ची होने की वजह से छत ढह गई,
और मैं नीचे बंद कमरे में जाकर गिर गई।
मेरी सभी सहेलियाॅं जोर जोर से रोने लगी, और मेरी माता जी और दादी जी को आवाज देने लगी, मेरी माता जी और दादी जी घबराई हुई ऊपर छत पर दौड़ी चली आई, और देखा कि मैं छत के नीचे गिर गई हूं। दादी जी ने आवाज देकर सब लोगों को एकत्रित कर लिया, आसपास के सभी लोग इकट्ठे हो गए और चाचा जी और पिताजी सब छत पर आ गए।
तुरंत उस बंद घर का ताला तोड़ा गया, और मुझे बाहर निकाला गया। पिताजी ने मुझे बहुत डाॅंट लगाई, परंतु दादी के समझाने से वो चुप हो गए, दादी ने मुझे प्यार से अपने पास लिया, और थोड़ी देर हो जाने के बाद सारा वाकया मुझसे पूछा मैंने भी अपनी दादी को सब बता दिया।
तब दादी ने बड़े आश्चर्य से कहा अरे वाह हमारी बिटिया तो झांसी की रानी है। घर के सभी लोग खिलखिला कर हॅंसने लगे।
उस दिन घर पर जो भी मेहमान आता था, दादी बड़े ही फक्र से उन्हें यह बात बतातीं थी।
उस दिन मुझे विशेष प्रेम सभी का मिल रहा था। मुझे भी मन ही मन बड़ी ही प्रसन्नता हो रही थी।
ऐसे शरारत भरे बचपन के दिन आज फिर से याद आ गए।
*धन्यवाद*
*स्व लिखित* 🙏🖋️
*शुचिता नेगी संगमनेर*