संदीप यादव संवाददाता
दैनिक (अमर स्तम्भ) /!शेर की दहाड़ थे आजादी की तलवार थे। स्वतंत्रता आंदोलन के मानों ये पहाड़ थे।
छटपटा रहा था मुल्क गुलामी की बेड़ी में,
फिरंगियों के खून से नहाने वाले लाल थे।
आजादी की बलिबेदी पे कुर्बान देखो हो गए,
आँख में था लावा, ये अंग्रेजों के काल थे।
इन्कलाबी गोलियाँ से क्रांति की ज्वाला धधकी,
आजादी के हवन-कुंड में पाण्डेय एक मशाल थे।
ऐसे रणबाँकुरों से ही तिरंगा लहरा रहा,
वतन पे जान निसार किए ऐसे ये जवान थे।
पूर्वजों के शौर्य को बचानेवाले वो सेनानी,
सदा सर रखे देश का ऊँचा कितने महान थे।
कतरा-कतरा खून दिए भारत माँ के चरणों में,
बर्छी, कृपाण, तेग, खंजर, वो कटार थे।
सो रही थी जो जनता उसे ये जगा दिए,
इस क्रांतिकारी के ऐसे पावन विचार थे।
गाय,सुअर चर्बी की कारतूस से भड़की आग,
खून अपना फौलादी बनाए थे मंगल पाण्डेय,
राह कुर्बानी की जो भी सजाए अमर शहीद,
आजादी की पहली पौध रोपे थे मंगल पाण्डेय।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार), मुंबई