गरियाबंद के खेल मड़ई में पारंपरिक खेलों ने भरा उत्साह का रंग, खेल-मड़ई बन गई है ग्रामीणों के आकर्षण का केन्द्र
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर को ध्यान में रखते हुये विशेष जनजातीय समूहों के लिये पारम्परिक खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।प्रदेश के मुखिया
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप छत्तीसगढ के पारम्परिक खेलों को बढ़ावा देने का लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। पारंपरिक खेलों को पुनर्जीवित करने एवं लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से ज़िले में विश्व आदिवासी दिवस के अवसर विशेष पिछड़ी जनजाति समूहों का खेल प्रतियोगिता खेल मड़ई का आयोजन गरियाबंद हाई स्कूल के प्रगाण में किया जा रहा है। आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा आयोजित इस खेल मड़ई का आरम्भ आज हुआ ।इस खेल मड़ई में छत्तीसगढ़ के कई ऐसे पारंपरिक खेलों का आयोजन भी हो रहा है, जिसे लोगों ने भुला दिया था।
खेल मड़ई में होने वाले पारंपरिक खेलों को लेकर लोगों में अच्छा खासा उत्साह है और बड़ी संख्या में ग्रामीणजन इन खेलों को देखने और खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन करने के लिए खेल मड़ई में आ रहे हैं। पारंपरिक खेलों के आयोजन से यह खेल मड़ई पूरे गरियाबंद क्षेत्र में लोगों के आकर्षण एवं मनोरंजन का केन्द्र बन गई है। खेल मड़ई के शुभारंभ कार्यक्रम में मुख्यअतिथि ग्वाला सिंह शोरी भूँजिया विकास अभिकरण अध्यक्ष एवं सुखचंद कुमार कमार विकास अभिकरण बद्री सुखदेवे सहयक आयुक्त आदिवासी विकास एवं खेल एवं युवा कल्याण विभाग की संचालक दीनु पटेल, की उपस्थिती में हुआ
गरियाबंद में आयोजित हो रही खेल मड़ई में कहीं कबड्डी का नजारा देखने को मिल रहा है, तो कहीं तिरनदाजी एक नए रूप में नजर आ रही है। इसी तरह से कबडडी, खोखो, फुगड़ी, गिल्ली डंडा, भौंरा सहित अन्य कई खेल, सहज ही दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे है। प्रदेश की संस्कृति से जुड़े ये सभी खेल विलुप्ति के कगार पर थे। इन खेलों को फिर जीवनदान देने के लिए गरियाबंद की खेल मड़ई संजीवनी बन गई है। मड़ई में चल रहे इन खेलों को देखकर बुजुर्गजन अपने किशोरावस्था को याद करने लगते हैं, जबकि नई पीढ़ी के युवाओं को छत्तीसगढ़ी पारंपरिक खेलों को जानने और सीखने का अवसर मिल रहा है। एक दिवसीय इस आयोजन में संपूर्ण ज़िले के करीब 200 खिलाडी करीब 9 पारंपरिक खेलों में भाग ले रहे हैं। परियोजना अधिकारी बी.के सुखदेवे ने बताया कि खेल प्रतियोगिताओं में विभिन्न जनजातीय समुदाय तथा विशेष रूप से कमजोर जनजाति समुदाय द्वारा पारम्परिरिक रूप से खेले जाने वाले खेल जैसे-तीरंदाजी, गुलेल, मटका दौड़, गिल्ली डंडा, गेड़ी दौड़, भौंरा, फुगड़ी (बालिका वर्ग), बिल्ला (बालिका वर्ग), कबडडी, रस्सीखींच, सत्तुल (पिठुल), भारा दौड़, बोरा दौड़, सुई धागा दौड़, (बालिका वग), मुदी लुकावन (गोटी लुकावन), तीन टंगड़ी दौड़ तथा नौकायन (वयस्क वर्ग हेतु) आदि खेल शामिल है। इसके अलावा इनमें कुछ खेल तो ऐसे है, जिन्हें पहली बार लोगों को देखने और सुनने का मौका मिल रहा है।वही मंच का संचालन सहायक कोच आनंद झा सर ने किया ये रहे उपस्थित- विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के लिए पारंपरिक खेल प्रतियोगिता 2022 (खेल मड़ई) में उपस्थित मुख्य अतिथिगणों की ग्वाल सिंह सोरी, अध्यक्ष, भुंजिया विकास अभिकरण गरियाबंद सुखचंद कमार, अध्यक्ष, कमार विकास अभिकरण गरियाबंद नरेन्द ध्रुव, युवा अध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज गरियाबंद बद्रीश सुखदेवे, परियोजना अधिकारी कमार / भुजिया विकास अभिकरण गरियाबंद पिलेश्वर सोरी, सदस्य, कमार विकास अभिकरण गरियाबंद अगनु राम कमार, सदस्य, कमार विकास अभिकरण गरियाबंद दुखराम सोरी, सदस्य, कमार विकास अभिकरण गरियाबंद मैतूराम सोरी, सदस्य, कमार विकास अभिकरण गरियाबंद टिकम नागवंशी, सदस्य, भुंजिया विकास अभिकरण गरियाबंद. रामेश्वर, सदस्य, भुंजिया विकास अभिकरण गरियाबंद परस राम मरकाम, सदस्य, भुंजिया विकास अभिकरण गरियाबंद अवध राम, सदस्य, भुजिया विकास अभिकरण गरियाबंद ,
अलबट चोबे संजीव साह आनंद झा, सूरज महाडिक, नंद कुमार रात्रे कैलाश साहू , निलेश देवांगन. देवेन्द्र कुमार , भाग रिंग, गंगा साहू, माहेश्वरी मंडल योगेश्वरी देवांगन, रहे उपस्थित