आज देश जिन हालातों से गुजर रहा है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है __फासीवादी ताकतें सत्ता में काबिज हैं और सत्ता में बने रहने के लिए वे तमाम साजिशों को अंजाम देते रहते हैं __और सोने में सुहागा ये कि पूंजीवादी ताकतें भी उनके साथ हैं __फासीवादी पूंजीवादी व्यवस्था में आम आदमी को मशीन समझा जाता है __मशीन मतलब गुलाम/दास/रोबोट __धर्म,जाति और तथाकथित राष्ट्रवाद के नाम पर हमारी चेतना को मार दिया गया__हम अपना भला-बुरा समझने की स्थिति में भी नहीं हैं क्योंकि मीडिया और फासिस्ट नुमाइंदे आपने झूठ,फरेब से आमजन के मानस पर हर पल तीखे हमले करते रहते हैं ___लोकतांत्रिक संस्थाएं सत्ता की चाकरी कर रहीं हैं ___छात्रों, बुद्धजीवियों, साहित्यकारों, कलाकारों, समाज सेवकों, किसानों, मजदूरों, व्यापारियों से लेकर हर उस आदमी को जो सच बोलना चाहता है उस पर सरकारी शिकंजा कसा जाता है __सरकार के विरुद्ध बोलने वाले को देशद्रोही करार देकर जेल की सलाखों के पीछे कैद कर दिया जाता है __अदालतों में चुटकुले लिखे जाते हैं और पुलिस का रवैया बर्बरता पूर्ण है___कानून का राज समाप्त हो चुका है __न्याय सड़कों पर भीड़ के हवाले हैं किसी भी व्यक्ति को उन्मादित भीड़ कभी भी कहीं भी कुचल कर मार डालती है __संविधान की चिंधिया उड़ चुकी हैं भीतर के सारे पन्ने बदल दिए गए हैं सिर्फ ऊपर का पन्ना बाकी है ___उद्योग धंधे, कल कारखाने सब चौपट हो चुका है, बेरोजगारी अपने चरम पर पंहुच चुकी है, सरकारी संस्थाओं और संपत्तियों को औने-पौने दामों में कुछ पूंजीवादी घरानों के हाथों बेचा जा रहा है__श्रम कानूनों को निरस्त कर दिया गया है, किसानों की जमीनें हथियानें के लिए हर हथकंडा अपनाया जा रहा है __नेपाल जैसा पड़ोसी देश हमें आंख दिखाने का दुस्साहस कर रहा है चीन भारतीय सीमा में घुसता चला आ रहा है, दुनिया भर के देश हमें नसीहतें बांट रहे हैं और तानाशाह पोशाकें बदलने और फोटो शूट में व्यस्त हैं __मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है, विपक्ष को समाप्त कर देने का पूरा प्रयास चल रहा है __महगाई अपने चरम पर है, आदमी के पास पैसा नहीं है बाजार नष्ट हो रहे हैं __हमारा बाजार 80% चीनी उत्पादों से भरा हुआ है __देशी उद्योगों को नोटबंदी और जीएसटी जैसे कानूनों से चौपट कर दिया गया है ___और हम खामोश बैठे हैं राष्ट्रवाद की चासनी हम कब तक चूसते रहेंगे, प्याज और टमाटर की बढ़ती कीमतों पर इस देश के नागरिकों में सरकारें गिरा देने की कुबत हुआ करती थी,जो देश उस ब्रिटिश हुकूमत से टकरा गया जिसके साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था, फिर ये खामोशी क्यों?? देश में आजादी का अमृतकाल चल रहा है और सात साल की संतोषी भात भात चिल्लाते हुए भूख से मर जाती है__तानाशाह का फरमान है घर घर तिरंगा लगाया जाये, जबकि आजादी के पहले और आजादी के बाद इन्होंने कभी भी राष्ट्रीय ध्वज को महत्व नहीं दिया __राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय पर तिरंगा फहराने को लेकर 2001में तीन लोगों को जेल जाना पड़ा था__इतिहास बदला जा रहा है, स्कूल बंद किये जा रहें हैं विश्वविद्यालयों के नाम पर डिजिटल युनिवर्सिटी बनाने की तैयारी हो रही है __इन्हे शिक्षित और जागरूक नागरिक नहीं चाहिए __शिक्षित नागरिक सवाल करेगा,जो इनकी सत्ता के लिए चुनौती खड़ा करेगा इन्हें गुलाम चाहिए __अब ये तय आपको करना है कि आजादी चाहिए या गुलामी __संविधान का राज चाहिए या तानाशाही__लोकतंत्र चाहिए या फासिस्ट राज।
हम सब को मिलकर इन देशविरोधी ताकतों का मुकाबला करना होगा, सड़क से संसद तक लड़ाई का ऐलान करना होगा। हां लड़ाई-क्योंकि लड़े बिना कुछ नहीं मिलता__लड़ो वरना आने वाली पीढ़ियां हमारे मुंह पर थूकें गी और पूंछेगी कि जब वे देश को बर्बाद कर रहे थे तब तुम बोले क्यों नहीं, लड़े क्यों नहीं। उम्मीद है कि आप इस लड़ाई में जरूर शामिल होंगे।
डा राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
एवं विचारक।