कविता : नवगीत गुनगुनायें हम

नवगीत गुनगुनायें हम
चलो साथियो नववर्ष में नवगीत गुनगुनायें हम
कुछ बुराई तुम भूल जाओ कुछ भूल जायें हम।

सुख दुःख आते हैं , आते जाते यूं ही रहेंगे
कुछ दर्द तुम अपने कहो कुछ कह जायें हम।

छीने न निवाला न आंखों से आंसू बहें किसी के
कुछ आंसू पोछ लो तुम , किसी के पोछेंगे हम।

कुछ कर सकें या ना कर सकें ये बात अलग है
किसी का दिल न दुखायें,आज ये कसम खायें हम।

नफरत से जीत न सका कोई इस जग को
भुला दें नफरतें दिलों की आओ प्यार से रहें हम।।

कमला वेदी
स्वरचित और अप्रकाशित रचना

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