भक्त प्रह्लाद और होलिका / डॉ शिवदत्त शर्मा (शिव) जयपुर की कलम से
प्रह्लाद दानव हिरण्यकश्यप का पुत्र था उसके साथ 7-8 वर्ष की आयु में ही एक प्रसंग ऐसा गठित हुआ जिसने उसके जीवन को आध्यात्म की और मोड़ दिया!
हुआ ये की एक दिन वह सायंकालीन नगर भृमण को मित्रो के साथ निकला था तभी उसने देखा कि एक स्थान पर एक कुम्हार दम्पत्ति बर्तन पकाने की भट्टी जिसमे पूर्ण रूप से अग्नि भड़क उठी थी के पास बिलख रहे थे और उस भट्टी के चारो और घूम घूम कर बेचैनी से निहार रहे थे साथ ही मन ही मन प्रभु का स्मरण भी करते जा रहे थे मुहँ से शब्द इसलिए नही निकाल पा रहे थे कि उस नगर में दैत्यराजा हिरण्यकश्यप का आदेश था कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार से ईश्वर पूजा-पाठ-यज्ञादि नही करेगा! क्योकि मैं ही ईश्वर हूँ मैं ही संसार का सर्वेसर्वा हूँ यदि किसी ने इस आदेश की अवहेलना की तो उसे मृत्युदंड मिलेगा।
प्रह्लाद ने वहां खड़े अन्य लीगो से पूछा तो लोगों ने बताया कि इस कुम्हार दम्पत्ति ने कच्चे बर्तन बनाकर सूखने के लिए रखे थे तभी एक बिल्ली ने एक मटके में चार बच्चों को जन्म दे दिया था और आज भूलवश वही मटका पकाने के लिए भट्टी में रख दिया गया दम्पत्ति को भट्टी में पूर्ण अग्नि भभकने के पश्चात याद आई तो ये तड़प उठे औऱ अब पश्चाताप से आसूं बहा रहे हैं, साथ ही प्रभु स्मरण भी करते जा रहे हैं कि हे प्रभु उन बच्चों की रक्षा करना!ये सुनकर साथी बच्चे ठहाका मारकर हंसे और कहने लगे इतनी जोरदार आग मे से कौंन से ईश्वर उन बच्चों को बचा सकेगा? असम्भव है लेकिन प्रहलाद गम्भीर होकर बोला कि देखो लोगों …. कल जब ये भट्टी ठंडी हो जाए और बर्तनों को निकालने लगो तब मुझे सूचना दे दीजिए मैं भी देखना चाहूंगा कि क्या होता है।
प्रह्लाद की रात बेचैनी से कटी प्रातः हुई एक प्रहर गुजरा तो कुम्हार दम्पत्ति का बुलावा आगया प्रह्लाद उसी समय मित्रो की टोली के साथ कुम्हार की भट्टी स्थल पर जा पहुंचा और फिर प्रारम्भ हुई बर्तन निकालने की प्रतिक्रिया ज्यों ज्यों बर्तन निकलते जाते थे सभी की उत्सुकता बढ़ती जारही थी कुम्हार दम्पत्ति का दबे स्वरों में प्रभु स्मरण अभी भी अनवरत चल रहा था! और मित्रो अब उस बर्तन तक कुम्हार पहुंच चुका था जिसमे बिल्ली के बच्चे थे और उसने ज्यों ही बर्तन उठाया बिल्ली के बच्चे म्याऊं-म्याऊं करके ऐसे भागे की जैसे रातभर किसी सुरक्षित स्थान पर बैठे थे।
सभी उपस्थित लोग आश्चर्य से उस दृश्य को देखरहे थे किसी के मुख से कोई बात नही निकल रही थी और सभी मन ही मन उस प्रभु को धन्यवाद दे रहे थे! उधर इस दृश्य को देखकर प्रह्लाद मित्रो सहित चमत्कृत हो रहा था और तभी उसके कोरे मष्तिष्क पटल पर ईश्वर स्मरण की ऐसी छाप छप गई कि उसके विचार अपने पिता के आदेशों को झूंठे मानने को बाध्य हो गए और उसी क्षण से वह रात-दिन उठते-बैठते खाते-पीते प्रत्येक क्षण प्रभु का नाम लेने लगा।
उसके विचार से जब एक रात के स्मरण मात्र से इतनी भयंकर अग्नि से बिल्ली के बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं तो यदि मनुष्य जीवन भर यदि प्रभु स्मरण करे तो बहुत कुछ कष्टों से बचा जा सकता है।
जब हिरण्यकश्यप को इसका पता लगा तो उसने प्रहलाद को अनेकानेक यातनाएं देना प्रारम्भ करदिया
और जिन 8 दिनो तक यातनाओं से भक्तप्रह्लाद गुजरा उनको होलाष्टक नाम दिया गया इन दिनों में हिन्दू धर्म मे किसी भी प्रकार के शुभकार्य नही किए जाते।
आठ दिन पश्च्यात होलिका ने अपने भाई से कहा कि भैया हमे बृह्मा से एक ऐसा दुशाला मिला हुआ है जिस पर अग्नि का कोई प्रभाव नही होता यदि आप चाहें तो मैं प्रह्लाद को लेकर स्वयं दुशाला ओढ़कर अग्नि में बैठ जाऊँगी तो मैं तो बच जाऊँगी और प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाएगा हिरण्यकश्यप ने ऐसी ही व्यवस्था कर दी होलिका प्रह्लाद को लेकर स्वयं दुशाला ओढ़कर बैठी लेकिन प्रभु कृपा ऐसी हुई कि वह दुशाला फिसल कर प्रह्लाद पर आ गिरा और होलिका अग्नि में जल मरी। आज भी होली में प्रह्लाद का प्रतीक एक हरे पेड़ का मोटा तना लगाया जाता है जिसे होली में अग्नि प्रज्वलित होते ही निकल लिया जाता है।
मित्रो आगे जाकर इन्ही भक्त प्रह्लाद की भक्ति से प्रभावित होकर इसकी रक्षार्थ इनकी पुकार सुनकर खम्बे को फाड़कर नृसिह अवतार हुआ था। समाप्त!
डॉ शिवदत्त शर्मा शिव
जयपुर ग्रेटर राजस्थान