बृजेश कुमार तिवारी
ब्यूरो चीफ उन्नाव
अमर स्तम्भ उन्नाव के हर एक कोने से किसानो की सिसकियाँ, रुकने का नाम नही ले रही है, एक तरफ महगाई का चाबुक, तो दूसरी तरफ कुदरत की मार, इस कदर मुसीबत की चक्की मे पिसता बेचारा किसान आखिर अपना दुखड़ा किससे, रोये सुनने वाला कोई नही पूरे साल की गाढ़ी कमाई प्रकति के कहर मे समा गई, आखिर क्या किया क्या पाया के प्रश्न मे सिसकियाँ भरता किसान आज अपने जीने के लिए कोई बिकल्प नही तलास पा रहा है आखिर क्या होगा इसके जीवन की नौका कौन पार लगायेगा जैसे बहुत सवाल पहेली बने हुए है,
हा एक किसान का दर्द समझ तो वही सकता है जिसके विरासत मे किसानी हुई है अन्यथा हर किसी के बस की बात नही है कि किसान के पहलू पर विचार तक कर सके जिसने, अपना तन ,मन धन सब कुछ समर्पण कर डाला आखिर मे हाथ लगी सिर्फ निरासा, असफलता, पता नही कुदरत किस किये की सजा देरहा है बेचारे भोले भाले किसान को और कबतक लेगी कुदरत किसान की परीछा समझ नही आरहा है कैसे पालेगा अपने बच्चे और फिर दोबारा किस उम्मीद पर अपनी पुनः फसल उगायेगा, कहासे लायेगा इतना पैसा, हिम्मत, साहस सबकुछ तो आज प्रकति ने छीन लिया है, आखिर इस उहापोह की स्थिति मे भगवान उसे सद्बुधि दे जिससे उसको धैर्य, रहे और आत्महत्या जैसे कठोर कदम ना उठाये किसान को नुकसान सहन करने की शक्ति प्रदान करे थक गई मेरी कलम किसान का दर्द अभी बया नही होपाया,,,